सिन्ध में सोहाणे को अरोड कहा जाता था , अत: ये लोहाणे अरोडा खत्री से अलग हैं। लोहाणे खत्री सामान्यतया नागपुर की ओर के हैं। सेठ , खन्ना , कपूर , चोपडा और नंदा इनमें अल्ले हैं। सारस्वत ब्राह्मण इनके भी पुरोहित हैं। लोहाणे नाम पडने की इनकी अलग ही कथा मानी जाती है। अब इन्हें भी खत्री भाइयों ने अपना बिछुडा हुआ भाई मान लिया है और इनसे शादी विवाह आदि संबंध बनाने लगे हैं ।
इनके बारे में ये कथा कही जाती है , सिंध देश में दुर्गादत्त नामक सारस्वत ब्राह्मण 84 क्षत्रियों के साथ राजा जयचंद के प्रतिकूल गए। वहां उन्होने तपस्या की। 21 दिनों तक लोहे के किले में रहकर ये निकले , इसी से ये क्षत्रिय लोहाणे कहलाए। कैप्टन बर्टन ने इन्हें मुल्तानी बनिया लिखा है। 'जाति भास्कर' पृष्ठ 20 में इन्हें लवाणा क्षत्रिय लिखा गया है। पं ज्वाला प्रसाद जी इन्हें राजपूत बताते हैं। पहले अन्य खत्रियों के साथ इनका विवाह नहीं होता था , ये अपने विवाह संबंध अपने ही जमात में करते थे .
(लेखक .. खत्री सीताराम टंडन जी)
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