माखन लाल चतुर्वेदी जी ने कहा था .....
जिस कोख से तुमने जन्म लिया , उसको है शत शत प्रणाम ,
जिस देह का तुमने क्षीर पीया , उस देह को है शत शत प्रणाम।
जिस रज में हिल मिल बडे हुए , उस रज को है सौ बार नमन ,
जिस पथ को तुमने अपनाया , उस पथ को है सौ बार नमन।
हिन्दी की सेवा और उसकी रक्षा के लिए किए गए प्राणाहुति का नाम है पुरूषोत्तम दास टंडन।
त्रिभुवन नारायण सिंह ने कहा था .....
जहां टंडन जी हिन्दी के प्रकाण्ड पंडित विद्वान थे , वहां उनका अंग्रजी साहित्य पर भी बडा अधिकार था
डा गोविंद दास जी ने कहा था .....
प्रगतिशीलता के नाम पर भारत की शिक्षा , सभ्यता और उसकी संस्कृति रूपी धरती पर पश्चिमी या यूरोपीय ढंग का नया वृक्षारोपण करने के टंडन जी विरूद्ध थे।
मैथिली शरण गुप्त जी ने कहा था .....
अपने बल पर अटल रहा, जो धीर तपोव्रत धर्म धरे।
चला गया वह परम तपस्वी, पुरूषोत्तम भी आज हरे।।
विनोवा भावे जी ने कहा था .....
राजर्षि टंडन ने जीवन में जिन नैतिक मूल्यों की परख कर स्थिर किया , उनपर टिका रहने में उन्होने बडे से बडे लाभ को ठुकराने में हिचक नहीं दिखलायी।
मदन मोहन मालवीय जी ने कहा था .....
पुरूषोत्तम वही बोलता है , जो उसका अंत करेगा उसे आज्ञा देता है।
महात्मा गांधी जी ने कहा था .....
पुरूषोत्तम दास टंडन सरीखे लोगों से राष्ट्र निर्माण होता है।
डा राजेन्द्र प्रसाद जी ने कहा था .....
आधुनिक वातावरण और तज्जय सीमाओं में रहते हुए भी टंडन जी का जीवन प्राचीन ऋषियों मुनियों जैसा ही बीता ।
डा राधा कृष्णन जी ने कहा था .....
टंडन जी स्वतंत्रता संग्राम में निर्भय सेनानी और हमारी संस्कृति के मूल भूत मूल्यों मे अदम्य विश्वास रखने वाले रहे हैं
पं जवाहर लाल नेहरू जी ने कहा था .....
हमारा और टंडन जी का अजीब जोडा था , हमलोगों का नजरिया बहुत मामले में मुख्तलिफ था और इस कारण हम दोनो को कभी कभी एक दूसरे से चिढ होती थी .. मैने उनकी राय की हमेशा कद्र की है , कई कारणों से , मगर खासतौर पर इसलिए कि वे स्पष्टवादी थे और हमेशा निर्भय होकर सोंचते और सलाह देते थे ।
लाल बहादुर शास्त्री जी ने कहा था .....
टंडन जी की उपस्थिति ही बलदायक और प्रेरक होती थी।
हरिवंश राय बच्चन जी ने कहा था .....
टंडन जी अमूर्त्त सिद्धांत बनाने और और उसकी घोषणा करने में विश्वास नहीं रखते थे।
महादेवी वर्मा जी ने कहा था .....
जीवन के वसंत में ही टंडन जी ने सुख सुविधामय जीवन के स्थान पर निरंतर संघर्ष मय जीवन पूर्ण निष्ठा के साथ बिता दिया था ।
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने कहा था .....
हिन्दी को भारत व्यपी बनाने में टंडन जी का भगीरथ प्रयत्न प्रत्येक हिन्दी हितैषी के लिए वंदनीय है।
अलगू राम शास्त्री जी ने कहा था .....
टंडन जी की महत्ता का मूलमंत्र है , उनकी व्यक्तिगत जीवन शुद्धता , भाव निर्मलता , कोमलता मानवता और मिलनसारिता ।
राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने कहा था .....
पूज्य तुम राजर्षि क्या ब्रह्मर्षि बहुगुण धाम। व्यर्थ आज वशिष्ठ विश्वामित्र के संग्राम।।
बहुत मेरे अर्थ पुरूषोत्तम तुम्हारा नाम। सतत् श्रद्धायुक्त तुमको शत सहस्र प्रणाम।।
और हमारी मातृभाषा हिन्दी के बारे में देशभक्त राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन जी के विचार ये थे .......
मनुष्य की मातृभाषा उतनी ही महत्ता रखती है , जितनी उसकी माता और मातृभूमि रखती है।
खत्री समाज को अपने समाज में जन्म लेनेवाले ऐसे महापुरूषों पर गर्व है .. हम उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं !!
( 'खत्री हितैषी' से साभार)
2 टिप्पणियां:
राजर्षि टंडन के बारे में उनके समकालीन महापुरुषों के विचारों की यह प्रस्तुति सुंदर लगी। धन्यवाद।
अच्छा लगा उनके विषय में इन महापुरुषों के विचार पढ़कर.
आभार इस प्रस्तुति का.
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