आपत्ति काल में अनेक क्षत्रिय वंशज नवनागों के डंसने से बचकर स्वदेश और राज्य के पर हस्तगत होने के कारण शत्रुभाव से पीडित हो पूरी दुर्दशा से अपने पुरोहित सारस्वत ब्राह्मणों के आश्रित हों , कुछ तो अपने भाइयों से मिल गए थे और कुछ जंगल या पहाडों में पशुपालकों की बुरी दशा में जीवन रक्षा करते रहें और वहीं के अधिवासी हो गए। चम्बे आदि के पहाडों में ये जंगली जातियां गद्दी के नाम से प्रसिद्ध है , उनकी दशा आज भी जंगली पशुपालक जैसी है, पर उनके पुरोहित उनके विवाह आदि संस्कार वेद मंत्रों से ही कराते हैं। वे अपने को प्राचीन क्षत्रिय वंशज बताते हैं और अपने पूर्वजों को लाहौर और अमृतसर आदि के निवासी बताते हैं। उनकी जाति कपूर , खन्ना और सेठ आदि है।
एथनोलोजी के अनुसार उनमें से कितने ही मुसलमानी राज्य के उपद्रवों के दौरान वहां जा बसे थे। यह तो स्पष्ट है ही कि मुसलमानी राज्य के समय पंजाब के खत्रियों और ब्राह्मणों को अनेक कष्ट भोगने पडे थे , कितने ही दीन हीन इस्लाम को न मानने के लिए मारे गए । अत: इस गद्दी जाति के भी हिमाचल प्रदेश के कांगडा , चंबा आदि जिले के पहाडों में जा बसने की बातें निर्मूल नहीं हो सकती।
गद्दी और खक्कर खत्रियों का उल्लेख राजतरंगिनी में विशेष रूप से मिलता है , जिनके इतिहास पर कुछ प्रकाश राजतरंगिनी के अनुवादक और भाष्यकार डॉ रघुनाथ सिंह ने अपनी टिप्पणियों में डाला है , पर इनपर विस्तृत आधिकारिक खोज की आवश्यकता है।
(लेखक .. सीताराम टंडन जी)
2 टिप्पणियां:
इस जानकारी के लिए आभार!
फिर से अच्छी जानकारी शुभकामनायें
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