jathi pratha essay
जिस तरह भौगोलिक दृष्टि से विश्व को राष्ट्रों में , राष्ट्रों को राज्यों में , राज्यों को जिलों में , जिलों को ब्लॉकों में और ब्लॉकों को गांवों में बॉटकर अच्छी शासन व्यवस्था हो सकती है , उसी प्रकार सामाजिक व्यवस्था के चुस्त दुरूस्त रहने के लिए समाज की एक एक इकाई का महत्व है। ये इकाइयां किसी भी आधार पर रखी जा सकती हैं , पर समाज का पेशे के अनुसार बंटवारा सर्वाधिक उपयुक्त होता है , जो काम बच्चे बचपन से होते देखते हैं , वो काम उनके लिए तो महत्व रखता ही है , अभिभावक भी अपने ही क्षेत्र में बच्चों की योग्यता को देखना चाहते हैं। यही कारण है कि कालांतर में एक ही पेशेवाले एक दूसरे को अधिक पसंद करने लगते हैं और क्रमश: वे समाज की एक इकाई के रूप में संगठित हो जाते हैं। भारतीय समाज में इसी कारण एक जैसे पेशों वाले के मध्य शादी विवाह जैसे संबंध बनाए जाते रहे और जाति पाति की धारणा यहीं से शुरू हुई। पर चूंकि वैज्ञानिक दृष्टि से अधिक नजदीकी संबंध आनेवाले पीढी के लिए नुकसानदेह माने जाने के कारण ऐसे संबंध भी सामाजिक तौर पर मान्यता प्राप्त नहीं होते .
पेशे के अनुसार शादी विवाह करने की प्रवृत्ति आज भी लोगों में बनीं हुई है। आज बीसवीं सदी में भी एक डॉक्टर अपना विवाह डाक्टर कन्या से ही करना चाहता है , अपने पुत्र या पुत्री को डॉक्टर ही बनाना चाहता है , फिर उनका विवाह भी डॉक्टर से ही करना चाहता है। इसी प्रकार की मानसिकता एक इंजीनियर , एक वकील , एक प्रोफेसर की भी होती है और इससे जीवन में कम समझौता करना पडता है। जहां पढे लिखे वर्ग कई कई पीढियों से अपने अपने पेशे में ही विवाह करना पसंद करते हैं , जाति पाति की बात उठाना उचित नहीं, वे कहीं भी किसी भी जाति में विवाह कर सकते हैं। कई पीढियों से अपने परंपरागत पेशों को छोड कर दूसरे पेशों से जुडे व्यक्ति भी दूसरी जाति में वैवाहिक संबंध बना सकता है, पर अपने परंपरागत पेशों से जुडे वर वधू अभी भी अपने जाति में ही रिश्ते बनाकर अधिक समायोजन कर सकते हैं, क्यूंकि बहुत सारे जातियों के 70 प्रतिशत से भी अधिक लोग आज भी अपने परंपरागत पेशे में ही संलग्न हैं।
जाति पाति के आधार पर संगठन बनने में मुझे कोई बुराई नहीं दिखती , यदि उनका लक्ष्य पूरे समाज की तरक्की हो। एक एक समाज की तरक्की से ही पूरे देश की तरक्की का रास्ता खुलता है। पर जाति से जुडा संगठन इसलिए बुरा माना जाता है , क्यूंकि इसके मुद्दे न तो राष्ट्र के हित से जुडे होते हैं और न ही अपने समाज से। उनका सारा आंदोलन समाज के 5 प्रतिशत उच्चवर्गीय लोगों के हिस्से में जाता है , उनके लिए हर सुख सुविधा का आरक्षण होता है और 95 प्रतिशत गरीबों के दिन कभी नहीं फिर पाते। वे जिन पेशों में लगे हैं , उनकी स्थिति को सुधारना जातिय आंदोलन का सबसे बडा लक्ष्य होना चाहिए , अन्यथा नेता उनके वोटों की मजबूती से अपनी स्थिति को मजबूत करते रहेंगे और उनकी हालत ज्यों की त्यों बनी रहेगी। मैं सभी जातिय संगठनों को सलाह देना चाहूंगी कि वे अपने हित के लिए अपने पेशों को नवीनतम तकनीक से युक्त करने की मांग करे , जो उनके हित के साथ साथ राष्ट्र के हित में भी होगा , क्यूंकि इससे देश की एक इकाई मजबूत हो सकती है।
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