(खत्री सीताराम टंडन जी के सौजन्य से)
दिल्ली निवासी एक खत्री किशन दयाल द्वारा लिखे गए फारसी ग्रंथ 'अशरफुल तवारीख' के अनुसार 'सरीन' शब्द 'शरअ ए आइन' का अपभ्रंश है , जिसका अर्थ है मुसलमानी कानून को मानने वाले। सम्राट अलाउद्दीन खिलजी के राजमंत्री ऊधरमल तथा अन्य जिन खत्रियों ने विधवा विवाह संबंधी राजाज्ञा में अपनी स्वीकृति दे दी थी या हस्ताक्षर कर दिए थे , उन्हें राजाज्ञा के विरूद्ध आंदोलन करनेवाले विद्रोही खत्री नीची निगाहों से देखने लगे थे और उन्हें 'शरअ ए आइन' कहने लगे , जो बाद में बिगडकर 'सरीन' हो गया। वैसे हस्ताक्षर कर देने के बावजूद विधवा विवाह उनके यहां भी प्रचलित नहीं हुआ था।
कुछ लोगों की यह भी मान्यता है कि इन्होने विधवा विवाह का समर्थन किया था और वे इसमें डटे रहे थे। भले ही अन्य खत्रियों ने उनके साथ विवाह संबंध बंद कर दिया हो , पर इस समर्थन पर उन्हें लज्जा नहीं गर्व था और इस शूरता के कारण ही वे सूरेन और बाद में 'सरीन' कहलाए।
सरीन सभा जनरल , लाहौर के मत के अनुसार सरीन शब्द 'सद्दीन' से निकला है , जिसका अर्थ सौ होता है। अर्थात् इसमें सैकडों वंश के लोग सम्मिलित हैं।
कुछ लोगों का मानना है कि सरीन शब्द सुरेन या सुरेन्द्र से निकला है। अत: जो वंश देवताओं की भांति उज्जवल और पवित्र था , वह सरीन हुआ।
यह भी कहा जाता है कि जिन लोगों ने परशुराम जी के क्षत्रिय संहार के समय आत्मसमर्पण कर उनकी शरण ली , उनके अपराध को परशुराम ने क्षमा कर दिया। उसी 'शरण' के कारण उनके वंशज सरीन कहलाए।
( लेखक .. सीताराम टंडन जी)
1 टिप्पणी:
रोचक है जी ...मुझे तो आनंद आया पढ के
अजय कुमार झा
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