सूद जाति का इतिहास
सूद खत्री अपनी वंशावली भगवान रामचंद्र जी के रसोइए से खोजते हैं , जिसका दावा उन्होने उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में अपनी जातीय पत्रिका 'रिसायले सूद' में किया था और कहते हैं कि इसे क्षत्रिय माना जाता है। 'इनका रंग, रूप, प्रथाएं, संस्कार , वीरता , तीक्ष्ण बुद्धिमत्ता , व्यवहार कुशलता इन्हें क्षत्री या खत्री समुदाय में ही रखती है' ऐसा मोती लाल सेठ जी का मत है (एथनोलोजी के पृष्ठ 221 में) । ये अपने को खत्री मानते थे , पर खत्री इन्हें भाटिया , अरोडे और लोहाणे की तरह खत्री नहीं मानते थे , यही कारण है कि सूद लोगों के शादी विवाह भी अपनी जमात तक ही सीमित रही , पर इनका अस्तित्व पुराना है और इन्हें खत्री मानने से इंकार नहीं किया जा सकता।
खत्री हितकार , आगरा के दिसम्बर 1881 के अंक में पृष्ठ 250 से 252 में मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के खत्री चरणदास ने अपने आसपास बसे सूद खत्रियों के विषय में जांच पडताल करके एक लेख प्रकाशित किया , जिसमें बताया गया था कि सागर , दमोह , जबलपुर , नरसिंहपुर , होशंगाबाद , भोपाल , सिवनी , छपरा , दारासिवनी , छिंदवाडा , भटिंडा , नागपुर , भटिंडा और बालाघ्घाट जैसे बडे बडे कस्बों मे आबाद सूद खत्री अपना मूल स्थान पंजाब ही बताते थे। इनके बारह गोत्र गोलर , पराशर , भारद्वाज , धारगा , खेज्जर , खूब , नजारिया , पालीदार , मानपिया , कटारिया , जाट , दानी और चौहान बहुत मशहूर थे। ये लोग भी खत्रियों की तरह ही एक गोत्र मे विवाह नहीं करते थे।
इनलोगों का पेशा सरकारी नौकरी , महाजनी , काश्तकारी , हकीमी , बजारी , दलाली , इत्र फरोशी , घोडों की सौदागिरी , सर्राफी , हलवाईगिरी , छींट और देशी कपडों का व्यापार था , पर ये लोग अपना पूर्वपेशा हिफाजत मुल्क या फौजी पदों पर नियुक्ति बताते थे। धार्मिक दृष्टि से इनलोगों में कुलदेवी का पूजन होता था , पर प्राय: सभी वैष्णव थे। कुछ लोग मेंहर के भी उपासक थे। सामान्यतया शाकाहारी ये लोग तम्बाकू का भी सेवन नहीं करते थे और गुरू नानक के अनुयायी साधुओं को बहुत मानते थे।
इनका पुरोहित तो सारस्वत ब्राह्मण ही था, पर उनके उपलब्ध नहीं होने से दूसरे पंडितो से भी वे पुरोहिताई का काम लेने लगे थे। सारस्वत ब्राह्मणों से उनका कच्ची पक्की रसोई का संबंध था और वे उस घटना की भी चर्चा करते थे , जब ब्राह्मणों ने क्षत्रियों की गर्भवती स्त्रियों की जान अपनी लडकियां कहकर उनके हाथ का किया भोजन करके श्री परशुराम जी के हाथ से बचायी थी। सन् 1895 में लुधियाना से इनकी एक पत्रिका 'रिसालाए सूद' भी छपती थी , पर इनके संबंध में विस्तृत अनुसंधान आवश्यक है।
(लेखक .. खत्री सीताराम टंडन जी)
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