भारतवर्ष के इतिहास से पता चलता है कि खत्री जाति का काम प्रजा की रक्षा करना था। समाज में , राज्य में और शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में उनकी अहम् भूमिका रही है। पर कालांतर वे सिर्फ व्यवसाय में ही रम गए और आज भी उसी में रमे हैं। समाज और देश के इस बिगडे हुए हालात से , देशवासियों की दुर्दशा से वे तनिक भी विचलित नहीं हो रहे हैं। मैं इस ब्लॉग के माध्यम से उन्हें एकजुट करने और देश की स्थिति को सुधारने की अपील कर रही हूं। मेरे विचारों को पढने और अनुसरणकर्ता बनने के लिए मैने सबसे अनुरोध किया है , जो भी हमारे विचारों से इत्तेफाक रखते हों, मेरे साथ चल सकते हैं। मेरा एक भी पोस्ट ऐसा नहीं है , जो स्वार्थपूर्ण होकर लिखा गया हो। इसी सिलसिले में कल इस ब्लॉग पर लेखक ... कैलाश नाथ जलोटा 'मंजू' द्वारा लिखी गयी एक बहुत ही अच्छी पोस्ट प्रेषित की गयी थी , जिसको पढकर आकाश राज जी ने हमारी पंक्तियों को लिखते हुए टिप्पणी की .......
"यदि हम चाहें , तो संपूर्ण भारत में जाति जागरण का डंका बजा सकते हैं और अपनी खोई हुई कीर्ति को वापस ला सकते हैं। हम पुन: संपूर्ण समाज का प्रेरणास्रोत बनकर विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने में समर्थ हो सकते हैं। यही हमारा जाति के प्रति धर्म और त्याग होगा।"
संपूर्ण भारत में जाति जागरण का डंका तो न जाने कब से बजा पड़ा है और इसलिए तो हमारे देश में सबसे ज्यादा शांति है हिंदू - मुस्लिम - शिख - इशाई काफी नही जो अब उप जातिओं का डंका पुरे भारतवर्ष में बजाया जाये|
मैं आप पाठकों से ही पूछती हूं कि ऊपर की पंक्तियों में क्या बुराई थी , जिसका विरोध किया गया ??
मुझे तो लग रहा है कि आज अपने को आधुनिक समझनेवाले लोग हर परंपरागत बात का विरोध करने को तैयार रहते हैं। किसी को कुछ कहने लिखने के पहले ये तो ध्यान देना ही चाहिए कि इसकी मंशा क्या है ? किसी के घर में बिना पूजा के कोई काम नहीं होगा , बिना मुहूर्त्त के विवाह नहीं होगा , असफलता मिलने पर छुपछुपकर लोग ज्योतिषी के पास जाएंगे , पर सामने ज्योतिषियों की हर बात का विरोध करेंगे , इतनी बडी आबादी के बावजूद जिस महीने में लगन नहीं होता , उस महीने में कभी कभार ही शादी होते देखा जाता है , जबकि पंडित जी जिस दिन लगन अच्छा कह दें , बुकिंग की भीड हो जाती है। समाज मे यह सब मान्य है , पर मैं यदि सामाजिक भ्रांतियो को दूर करने की कोशिश करूं , तो वह अंधविश्वास हो जाता है। कमाल की मानसिकता है लोगों की ??
युवक खुद दूसरी जाति में विवाह न करें , माता पिता की बात मानकर प्रेमिकाओं को धोखा देते फिरें , पर सामने अवश्य विरोध करेंगे , बडे बडे भाषण देंगे। अपने , अपने परिवार,अपनी जाति , अपने गांव, अपने क्षेत्र और अपने देश पर सबको अभिमान होता है। अपनी अच्छी परंपरा की रक्षा करने का सबको हक है। अब जाति के कारण समाज बंट रहा है , तो जाति का नाम ही न लिया जाए । धर्म के कारण समाज बंट रहा है , तो धर्म का नाम ही न लिया जाए , ये कोई बात है ? फिर तो क्षेत्र के कारण समाज बंट रहा है , तो क्या आप अपने गांव और जिले का नाम लेने से परहेज कर सकेंगे ? आज आवश्यकता है , अपनी मानसिकता को परिवर्तित करने की , सबको समान दृष्टि से देखने की। जब वह हो जाएगी , तो हम किसी भी जाति के हों , किसी भी धर्म के हों और किसी भी क्षेत्र के हों , कोई अंतर नहीं पडनेवाला। अभी इतनी आसानी से भारत में जातिबंधन समाप्त होनेवाला नहीं , अपनी जाति के दूर दराज के परिवार में भी हम आराम से विवाह संबंध कर लेते हैं , बीच में कोई न कोई परिचित निकल आता है। पर दूसरी जाति में तब ही करते हैं , जब वह हमारे बहुत निकटतम मित्र हों। यदि विवाह संबंध करते समय आप इसका ध्यान नहीं रखते हैं , तो कभी भी आपके समक्ष भी समस्या आ सकती है। आशा है , बिना समझे बूझे हर बात का विरोध करना बंद करेंगे।
पहले सच्चे इंसान, फिर कट्टर भारतीय और अपने सनातन धर्म से प्रेम .. इन सबकी रक्षा के लिए ही हमें स्वजातीय संगठन की आवश्यकता पडती है !! khatri meaning in hindi, khatri meaning in english, punjabi surname meanings, arora caste, arora surname caste, khanna caste, talwar caste, khatri caste belongs to which category, khatri caste obc, khatri family tree, punjabi caste surnames, khatri and rajput,
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3 टिप्पणियां:
इतनी बडी आबादी के बावजूद जिस महीने में लगन नहीं होता , उस महीने में कभी कभार ही शादी होते देखा जाता है , जबकि पंडित जी जिस दिन लगन अच्छा कह दें , बुकिंग की भीड हो जाती है। समाज मे यह सब मान्य है , पर मैं यदि सामाजिक भ्रांतियो को दूर करने की कोशिश करूं , तो वह अंधविश्वास हो जाता है। कमाल की मानसिकता है लोगों की ??
आप की इस बात मै दम है, लेकिन लोग यहां भी कोई ना कोई बात निकल लेगे, बहुत सुंदर लेख लिखा आप ने धन्यवाद
आदरणीय संगीता पूरी जी,
मुझे अपने गांव, जिला या अपने देश का नाम लेने में कोई परहेज नहीं है परन्तु मझे जाति जैसी व्यवस्था में विश्वास नही मुझे सिर्फ उन्हीं चीजों पे विश्वास होता है जिसे मैं देख और अनुभव कर सकता हूँ| वैसे मेरे कारण यदि आपके कार्यों में कोई बाधा लगी हो तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ|
मुझे आपके विचारों में कोई संदेह नहीं, मैंने उन्हीं शब्दों के लिए लिखा था जिसमे जातिवाद को बढ़ावा मिलने कि उम्मीद थी|
दरअसल मुझे ये जाति शब्द समझ नही आता मुझे मेरी किताबों, स्कूलों से जितना भी सिखने को मिला उसमे इस शब्द का कहीं जिक्र ही नही हुआ परतु जब बड़े होने के बाद मुझे मालूम हुआ मैंने जानने कि बहुत कोशिश कि और आज भी कर रहा हूँ “सबसे पहले के मानव किस जाति के थे? या सभी जातियों का जन्म एक साथ हुआ?”
परन्तु यदि आपको लगता है कि यहाँ पे जातिवाद जैसा कुछ भी नही लिखा.. है, तो मैं अपनी समझदारियों में अभाव के कारण हुयी गलतियों के लिए फिर से क्षमा चाहूँगा|
धन्यवाद आपका!!
अति व्यहवारिक विचार प्रस्तुत किये गए हैं. मैं पूर्ण रूप से सहमत हूँ. जातीयता आवश्यक है हमारे अपने आस्तित्व के लिए.
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