वास्तव में व्यापक व्यक्तिगत अंतरों को स्पष्ट करने के उद्देश्य से जाति प्रथा को जन्म दिया गया था। आधुनिक वैज्ञानिक व्यख्या के अनुसार 'जाति' ऐतिहासिक प्रक्रिया में विकसित एक जनसमुदाय है , जिसका उदय अपने को अभिव्यक्त करनेवाले एक समान मनोवैज्ञानिक बनावट के आधार पर होता है। जाति अपनी संस्कृति की विशेषताओं से निराली बनती है। उसका निरालापन उसके अतीत की गहराइयों से उद्भूत होता ह। रक्त और स्वरूप की एकता ने परस्पर आत्मीयता उत्पन्न की , जितनी आत्मीयता बएती गयी , उतना ही निजत्व की भावना का क्षेत्र विकसित होता गया। जाति का प्राण धार्मिक संस्कारों में है। धार्मिक संस्कारों में अनास्था जाति के प्रति अनास्था है।
जहां तक खत्री जाति की बात है , सुकर्म , सुवचन और सुविचार और इसके द्वारा अपने जीवन को उच्च बनाने की प्रक्रिया हमारे जाति जीवन का मूलमंत्र है। सत्य आस्था और लगन जीवन की प्रगति का मूल है और हम इसे जीवन के यथार्थ में उतारने का भरसक प्रयास करते हैं। हमें अपने अतीत से साक्षात्कार करने , अपने इतिहास को सुरक्षित रखने का प्रयास करना चाहिए। संस्कार पूर्वजन्म के कर्म से ही नहीं, आसपास के वातावरण से भी बनते हैं। हमें सिर्फ पैतृक संपत्ति ही नहीं , जातीय संस्कार भी पीढी दर पीढी मिलती आयी है। सबों को अपने वर्तमान से आगे बढते जाना चाहिए ।
खत्री जाति प्रारंभ से ही अपार मुसीबतों , संकटों और अपरिमित कठिनाइयों में से गुजरकर जीवन यापन करती रही है। फिर भी उसने हमेशा स्वर्ण की तरह शुद्ध होकर अपने जातीय स्वाभिमान की रक्षा की है। जब जीना असह्य हो , फिर भी जीने की क्षमता श्रेष्ठ मानव का लक्षण है। अपने जीवन को सदैव उपयोगी बनाना और अपनी जातिय विशेषता के चरित्र का निर्माण हमारी पहली शर्त होनी चाहिए। हमारा जीवन ऐसा होना चाहिए कि उसमें कायरता और तुच्छता का धब्बा न लगे। निरूद्देश्य समय गंवाने का पडतावा न रहे।
हमारी जातीय जीवन पद्धति में कुछ ऐसी विशेषताएं हैं कि हमारे समाज का गरीब से गरीब व्यक्ति भी अपनी कठिनाइयों पर विजय पाने के लिए प्रयासरत होता है। हमें साधारण जनता का विश्वास नहीं खोना चाहिए। कम शिक्षित और कम साधन संपन्न होने के बावजूद हम संस्कार हीन या संस्कृति शून्य नहीं बन सकते। तुच्छता , स्वार्थ लिप्सा और संकीर्णता खत्री मानसिकता के विपरीत चीज है। हमें इन प्रवृत्तियों से बचने का हमेशा प्रयास करना चाहिए।
('खत्री हितैषी' के स्वर्ण जयंती विशेषांक में संपादक महोदय के विचार)
3 टिप्पणियां:
Vichar achhchhe hai.likhte rahiye sankshipt satik aur bebak kyonki ab har koi sikhega.
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