आज हमारे चारो ओर सांस्कृतिक अवमूल्यण और सांस्कृतिक प्रदूषण का गंभीर खतरा हो गया है। डर तो यह भी बना हुआ है कि इलेक्ट्रोनिक मीडिया के प्रभाव से भारतीय संस्कृति बचेगी या विलुप्त हो जाएगी। आज जब पश्चिम संपन्न देश भोग और विलास से परेशान होकर भारतीय संस्कृति की अच्छाइयों को अपना रहे हैं , तब हम भारतवासी अपनी अच्छाइयों को त्यागकर , अपनी संस्कृति से कटकर पश्चिम की ओर भाग रहे हैं। फिल्म और दूरदर्शन के माध्यम से पश्चिमी संस्कृति का लगातार आयात हो रहा है। जो व्यक्ति पश्चिमी संस्कृति और पश्चिमी जीवनशैली को नहीं अपना रहा है , वो पिछडा यानि बैकवर्ड माना जा रहा है। नकल ही करना है , तो पश्चिमी देशों में जो अच्छाइयां हैं , उनकी नकल की जानी चाहिए। आज भारतीय संस्कृति के अवमूल्यण के लिए अनेक संस्थाएं और व्यक्ति जिम्मेदार हैं , पर अश्लील फिल्मों और धारावाहिकों का निर्माण कर फिल्म और दूरदर्शन ने हमारी संस्कृति पर जबर्दस्त प्रभाव डाला है।
जब स्वस्थ फिल्म के निर्माण की बारी आती है , तो फिल्म निर्माताओं का रोना रहता है कि साफ सुथरी और संस्कार देने वाली फिल्में नहीं चलती हैं। प्रश्न यह है कि जनता पसंद करती है , इसलिए एक फिल्म निर्माता को अमर्यादित , अनैतिक और अश्लील दृश्यों को खुलेआम दिखाने और फिल्माने की छूट मिलनी चाहिए ? क्या फिल्म निर्माता निर्देशक की राष्ट्र के प्रति कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं ? यदि सभी फिल्म निर्माता यह संकल्प ले लें कि वे अश्लीलता और हिंसा को प्रोत्साहन देनेवाली फिल्में कतई नहीं बनाएंगे , सरकार और सेंसर बोर्ड संकल्प ले लें कि वे गंदी फिल्में या धारावाहिक चलने नहीं देंगे , तो साफ सुथरी शिक्षाप्रद फिल्में और धारावाहिक अच्छी तरह चल सकते हैं।
यदि ऐसी फिल्में कम भी चलें , तो फिल्म निर्माताओं को राष्ट्र की जनता के चारित्रिक संरक्षण के लिए कुछ कुर्बानी और त्याग करना चाहिए। पैसा कमाना ही सबकुछ नहीं। यह मनुष्य की कमजोरी है कि वो अशुभ और असत्य की ओर अधिक आकर्षित होता है तथा शुभ और सत्य की ओर कम। इसका कारण यह है कि ऊपर चढना बहुत कठिन होता है और नीचे गिरना बहुत आसान।फिल्म निर्माता इसी मानव कमजोरियों का लाभ उठाना चाहते हैं। मानव जीवन में जो बुराइयां या घटनाएं कहीं भी देखने को नहीं मिलेंगी या जो देश के किसी कोने में अपवादस्वरूप हैं , उसमें मिर्च मसाला लगाकर उसको उग्र और विकृत कर उसे सार्वजनिक समस्या के रूप में पर्दे पर पेश कर दिया जाता है। हजारो प्रकार के साफ सुथरे मनमोहक , शालीन नृत्य और लोकनृत्य देश के कोने कोने में भरे पडे हैं, परंतु इसे प्रमुखता न देकर नग्नता और कामुकता को बढावा दिया जाता है। विभिन्न संस्थाओं और कंपनियो द्वारा आयोजित की जाने वाली सौंदर्य प्रतियोगिताओं के कारण भी देश में सांस्कृतिक प्रदूषण बढ रहा है। घोर आश्चर्य है कि प्रमुख अखबार फरवरी माह में वेलेन्टाइन डे मनाने के लिए बकायदा विज्ञापन देकर युवक युवतियों को प्रेम भरे पत्र लिखने के लिए उकसाकर पैसे कमाते हैं। हमारी संस्कृति में व्यक्तिगत रहनेवाला पेम अब सार्वजनिक रूप ले चुका है। संबंधित सभी व्यक्ति और संस्थाएं यदि राष्ट्र के प्रति और राष्ट्र की संस्कृति के प्रति अपने कर्तब्यों का उचित निर्वहन करें , तो भारतीय संस्कृति की गरिमा अक्षुण्ण रह सकती है।
लेखक ... आर के मौर्य जी
पहले सच्चे इंसान, फिर कट्टर भारतीय और अपने सनातन धर्म से प्रेम .. इन सबकी रक्षा के लिए ही हमें स्वजातीय संगठन की आवश्यकता पडती है !! khatri meaning in hindi, khatri meaning in english, punjabi surname meanings, arora caste, arora surname caste, khanna caste, talwar caste, khatri caste belongs to which category, khatri caste obc, khatri family tree, punjabi caste surnames, khatri and rajput,
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
-
(खत्री सीताराम टंडन जी के सौजन्य से) दिल्ली निवासी एक खत्री किशन दयाल द्वारा लिखे गए फारसी ग्रंथ 'अशरफुल तवारीख' के अनुस...
-
mehra surname belongs to which cast पं द्वारका प्र तिवारी जी के द्वारा लिखित 'खत्री कुल चंद्रिका' में लिखा मिलता है कि एक खत्...
-
bhatia konsi cast hoti hai जिन क्षत्रियों ने परशुराम के क्षत्रिय संहार के समय भटनेर नामक ग्राम या नगर में शरण ली थी , उन्हें ही भाट...
क्या ईश्वर ने शूद्रो को सेवा करने के लिए ही जन्म दिया था ??
शूद्र कौन थे प्रारम्भ में वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर थी, पर धीरे-धीरे यह व्यवस्था जन्म आधारित होने लगी । पहले वर्ण के लोग विद्या , द...
5 टिप्पणियां:
ये खतरा तो है...
हम तो उमीद छोद चुके हैं दमनकारी ताकतें बाजारवाद बहुत हावी हो चुका है। अब तो राम ही राखे । धन्यवाद्
संस्कृति हमारी मानसिक उन्नयन का प्रतीक है। हम कितनी भी आधुनिक संस्कृति अपना लें लेकिन हमारे अन्दर बरसों से संस्कारित हमारे गुण बीज रूप में विद्यमान हैं। अत: ये संस्कार कभी समाप्त नहीं होंगे। हाँ यह सत्य है कि आज हम पतनोन्मुखी हैं लेकिन हमारे बीज फिर पल्लवित होंगे। आज अमावस्या है तो कल पूर्णिमा अवश्य आएगी।
सब जगह व्यवसाय घुस गया है
बिलकुल सही कहा मौर्य जी ने....यह बात आज हर उस भारतीय को खाए जा रही है,जो अपने सभ्यता संस्कृति से प्रेम करता है...
यह एक प्रकार की सुनियोजित साजिश है अपसंस्कृति को बढ़ावा दे भारतवर्ष को नीति पतन के पराकाष्ठ तक पहुंचा देने की..
एक टिप्पणी भेजें