बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

खत्री जाति को देशवासियों के लिए प्रेरणास्रोत बनना चाहिए !!



खत्री जाति सदा से ही समाज का सिरमौर रही है , इसने सभी को आश्रय दिया है। हम रामचंद्र के वंशज हैं, यह निर्विवाद सत्‍य है। यदि हम उस काल के इतिहास पर दृष्टि डालें , तो ज्ञात होगा कि भगवान राम ने ब्राह्मणों , वैश्‍यों और शूद्रों को प्रश्रय ही नहीं दिया , अपितु उन्‍हें गले से भी लगाया। उसके बाद के युग में भी समाज के प्रत्‍येक अंग की उन्‍नति और सुख संपन्‍नता को बनाए रखने में हमने अपने को अग्रसर रखा। 

युद्ध का क्षेत्र हो या शांति का साम्राज्‍य , प्रत्‍येक अवसर पर हमने स्‍वदेश प्रेम का प्रगाढ परिचय दिया है। शिक्षा , विज्ञान ,युद्ध , राजनीति , आर्थिक क्षेत्र से लेकर खेल कूद तथा समाज सेवा में हमने बढ चढकर अमूल्‍य योगदान दिया है। स्‍वयं को उत्‍सर्ग करके भी समाज के प्रत्‍येक अंग की रक्षा की है। अपनी सूझ बूझ और कला कौशल से संसार को चकाचौंध करनेवाले व्‍यक्ति विशेष खत्री समाज के हमेशा से रहे हैं। इतिहास इसका साक्षी है। हम उन महापुरूषों और वीरों के प्रति नतमस्‍तक हैं। 

किन्‍तु वर्तमान युग में हमारी जाति के लोग भटक रहे हैं। अपनी आन बान और शान को धूल धूसरित होता देखकर भी अपनी आंखे बंद किए हैं। जो सफलता हमारे चरण चूमती थी , उससे हम कोसों दूर हैं। सारे भारत में लाखों खत्री भाई हैं , पर उनमें संगठन का अभाव है। हम 'खत्री हितैषी' के सदस्‍य बनकर पत्रिका के माध्‍यम से अपने विचार अपने जाति भाइयों के समक्ष प्रस्‍तुत करें और उन्‍नति के नए मार्ग ढूंढे। 

यह सर्वथा निश्चित है कि यदि हम चाहें , तो संपूर्ण भारत में जाति जागरण का डंका बजा सकते हैं और अपनी खोई हुई कीर्ति को वापस ला सकते हैं। हम पुन: संपूर्ण समाज का प्रेरणास्रोत बनकर विश्‍व कल्‍याण का मार्ग प्रशस्‍त करने में समर्थ हो सकते हैं। यही हमारा जाति के प्रति धर्म और त्‍याग होगा। तो आइए हम संकल्‍प लें कि आज से सभी खत्री भाई अपनी जाति के प्रति निष्‍ठावान होकर उसके उत्‍थान और संपन्‍नता के लिए जी जान से एकजुट हो जाएं और अपनी बिखरी हुई शक्ति को समेटकर एक बार पुन: प्रमाणित करें कि वास्‍तव में हम सारे भारतीय समाज के प्रेरणास्रोत हैं। 

जिसको न निज कुल, जाति, धर्म,स्‍वदेश का कुछ ध्‍यान है। 
वह 'मंजू' जीवन में पले , फिर भी न होता मान है।। 
वह जाति का है लाल , जो नित प्रेम का वर्षण करे। 
प्रिय जाति की पीडा हरे , निज प्राण भी अर्पण करे।।

लेखक ... कैलाश नाथ जलोटा 'मंजू'

3 टिप्‍पणियां:

AAKASH RAJ ने कहा…

"यदि हम चाहें , तो संपूर्ण भारत में जाति जागरण का डंका बजा सकते हैं और अपनी खोई हुई कीर्ति को वापस ला सकते हैं। हम पुन: संपूर्ण समाज का प्रेरणास्रोत बनकर विश्‍व कल्‍याण का मार्ग प्रशस्‍त करने में समर्थ हो सकते हैं। यही हमारा जाति के प्रति धर्म और त्‍याग होगा।"

संपूर्ण भारत में जाति जागरण का डंका तो न जाने कब से बजा पड़ा है और इसलिए तो हमारे देश में सबसे ज्यादा शांति है हिंदू - मुस्लिम - शिख - इशाई काफी नही जो अब उप जातिओं का डंका पुरे भारतवर्ष में बजाया जाये|

संगीता पुरी ने कहा…

आकाश राज जी .. आपने हमारी मंशा नहीं समझी .. इस लेख में लिखा गया है .. यदि हम उस काल के इतिहास पर दृष्टि डालें , तो ज्ञात होगा कि भगवान राम ने ब्राह्मणों , वैश्‍यों और शूद्रों को प्रश्रय ही नहीं दिया , अपितु उन्‍हें गले से भी लगाया .. हम पुन: संपूर्ण समाज का प्रेरणास्रोत बनकर विश्‍व कल्‍याण का मार्ग प्रशस्‍त करने में समर्थ हो सकते हैं !!

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर बाते लिखी आप ने धन्यवाद

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