खत्री प्राय: सभी त्यौहार , रक्षाबंधन , विजयदशमी , दीपावली और होली उत्साह से मनाए जाते हैं, परंतु विजय दशमी पर्व का इनमें विशेष महत्व है। यह शक्ति , विजय और उल्लास का पर्व है। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होकर निरंतर दस दिन चलनेवाले इस पर्व पर दुर्गापूजन और दशमी के दिन अस्त्र शस्त्र पूजन और दशमी के दिन अस्त्र शस्त्र पूजन बहुत प्रेम तथा श्रद्धा से किया जाता है।
दीपावली के पहले अहोई अष्टमी पर किया जानेवाला पूजन वस्तुत: खत्रियों के प्राचीन पराक्रम और वैभव की स्मृति दिलानेवाला है। यह 'कर अष्टमी' प्राचीन काल में इस दिन खत्री कुमार कर वसूल कर लाते और उत्सव मनाते थे। परंतु अब कर का नाम भीख हो गया है , फलत: यह भीख लेना धीरे धीरे बंद हो गया है , केवल अहोई का पूजन किया जाता है। मकर संक्रांति के एक दिन पहले 'लोहरी' का त्यौहार अग्नि के नवान्न डालकर उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। पंचनद प्रदेश में इसका विशेष महत्व है। भादों के कृष्ण पक्ष की पंचमी को 'भाई भिन्ना' सभी भाई बहिनें नागों का पूजन करती हूं और भाइयों को टीका लगाती हैं।
खत्री समाज में स्त्रियों को विशेष सम्मान प्राप्त हैं , वे घर की प्रबंधक होती थी , पति के साथ यज्ञा पूजन का काम करती हैं । प्राचीन काल से ही प्राय: एक पत्नी के रहते दूसरा विवाह नहीं किया करते। स्त्री अथवा पति का परित्याग समाज में अनहोनी बात है। विधवा विवाह को अब मान्यता दी जाने लगी है। कन्या देवी तुल्य समझी जाती हैं।
खत्रियों में महायात्रा में मृतक को आम के पटरे पर श्मशान ले जाते हैं। प्राय: श्मशान घाट पर अंत्येष्टि के लिए बनवाए गए पक्के चबूतरे पर ही खत्रियों एवं सारस्वतों का दाह कर्म किया जाता है।
खत्री आचार विचार का बहुत ध्यान रखते हैं। ये दान नहीं लेते , गौ बेचना और हल चलाना बुरा मानते हैं। ये वैदिक धर्मावलंबी है , प्राय: सात्विक भोजन करते हैं , मांस मदिरा का सेवन बुरा मानता है। सार्वजनिक जीवन में खत्रियों का दृष्टिकोण सदैव से विशाल रहा। खत्री धर्मपालक है , फलत: धर्म ने भी सदैव रक्षा की है , यह अमिट जाति है।
('खत्री हितैषी' के स्वर्ण जयंती विशेषांक से साभार)
1 टिप्पणी:
खत्री समाज के बारें में बढ़िया जानकारी...
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