तुम्हारे पास जो भी है उसे बांटो , विद्या , बुद्धि , ज्ञान , ध्यान , भक्ति , शक्ति , कीर्तन , गीत या संगीत ... जो भी है उसे बांटो। यदि ये भी नहीं तो प्रेम , स्नेह , आत्मीयता , मीठी वाणी जो भी है उसे बांटो, इससे बडा दान तो कुछ हो ही नहीं सकता। तुम दूसरों के आंखों से आंसू तो पोछ ही सकते हो , पीठ तो थपथपा ही सकते हो , सहानुभूति तो प्रकट कर ही सकते हो। यह तो कह ही सकते हो कि तुम उदास मत हो , निराश मत हो , हताश मत हो , चिंता मत करो , मैं तुम्हारे साथ हूं। पर तुम इतना भी नहीं कहते।
बॉंटो अपने प्रेम को , दोनो हाथो से बॉंटो , बॉटने में फैलाव है , जो जितना बॉटता है , वह उतना महान होता जामा है। पर तुम बांटना नहीं चाहते। धन को बांटने में कंजूसी करते हो , सोना चांदी बॉटने में तुम्हारा कलेजा फटता ही है। जमीन जायदाद बांटने में भी पीडा होती है। मीठा बोलने में भी कष्ट होता है। किसी का आदर करने में भी लज्जा आती है। तो और क्या करोगे ? बस अपनी स्तुति और दूसरो की निंदा , मेरा धन , मेरी संपत्ति , मेरा सौंदर्य , मेरा संगीत , मेरा कुल , मेरा ज्ञान , मेररा शान , मेरा मान या फिर दूसरों की निंदा , उसका पति ऐसा , उसकी पत्नी ऐसी , उसका बेटा ऐसा , उसकी बहू ऐसी , उसका घर ऐसा , उसका परिवार ऐसा , उसका चरित्र ऐसा ... सारी उमर इसी निंदास्तुति में बीत जाती है।
जैसे कुएं का पानी रूक जाए तो सड जाता है , पीने योग्य नहीं होता , विषाक्त हो जाता है , यहां तक कि नदी की धार रूक जाए तो उसका पानी भी पीने योग्य नहीं रहता। प्रेम भी बहता रहे , बंटता रहे , बरसता रहे , लुटता रहे , तो गंगोत्री से निकले जल की तरह पवित्र रहता है। इसलिए प्रेम का बडा महत्व है , भाव का बडा महत्व है। किसी कीमत पर भावों को विकृत होने नहीं दो। प्रेम और भाव ही तो हमारा सच्चा धन है , सच्ची पूंजी है। इसी के चलते हम सम्राट हैं।
पूरी प्रकृति बांट रही है , सूर्य प्रकाश दे रहा है , चंद्रमा चांदनी दे रही है , जल जीवन दे रहा है , अग्नि उष्णता दे रही है , वायु ऑक्सीजन दे रही है , नदियां जल दे रही हैं , पेड फल दे रहे हैं , पृथ्वी सबको धारण कर रही है। एक मनुष्य ने ही बांटना बंद कर दिया है। मनुष्य जो भी करता है , बस अपने परिवार के लिए , अपने और परिवार के लिए तो सब कोई करते हैं , करना ही पडता है। यदि नहीं करोगे तो परिवारवाले तुम्हारी छाती पर बैठकर ले लेंगे , कोर्टो में केस करके ले लेंगे , गले में अंगूठा लगाकर ले लेंगे। परंतु अपने या अपने परिवार के अलावे तुम क्या करते हो , यह देखने वाली बात है।
ये पृथ्वी , जल , वायु , अग्नि , आकाश , देशकाल , आपकी सेवा कर रहे हें , आपकी देखभाल कर रहे हैं , आपको जीवन दे रहे हैं । पर इसके लिए भी आपका कोई कर्तब्य नहीं ? कम से कम आप इसे तो गंदा न करें , विषाक्त न करें , अपवित्र न करें। इनकी पवित्रता का ध्यान रखें , कम से कम यह भी आपकी बडी मेहरबानी होगी !
(लेखक .. खत्री रामनाथ महेन्द्र जी)
2 टिप्पणियां:
सत्य वचन !
सही संदेश!!
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