सभी खत्री , वे चाहे जिस कुल , उपजाति या अल्ल के हों , उनका संबंध मूल रूप से सूर्यवंश और चंद्रवंश से ही है। देश , काल और अनेक कारणों से अल्लों में परिवर्तन होता रहा है , जिसके कारण खत्रियों की सक्डों अल्ले बन गयी हैं। अपने अस्तित्व और पवित्रता की रक्षा करने वाली एक महत्वाकांक्षी जाति में ऐसा होना स्वाभाविक ही है।
पंजाब के महत्वाकांक्षी खत्री पंचनद प्रदेश में ही बंधकर नहीं रह सके , वे आगे बढे और उनके कार्यक्षेत्र का विस्तार बढते बढते गंगा यमुना प्रदेश तक हो गया। खत्री पंजाब , दिल्ली , उ प्र बिहार और बंगाल तक फैल गए। एक विशेष बात यह भी रही कि खत्रियों ने प्राय। प्रमुख नगरों को ही अपना कार्यक्षेत्र बनाया।
अल्ल कैसे परिवर्तित होती है , इसका अच्छा उदाहरण नेहरू परिवार है। स्व जवाहर लाल नेहरू जी ने अपनी पुस्तक 'मेरी कहानी' में लिखा है कि हमारे जो पुरखा सबसे पहले आए , उनका नाम था राजकौल। राजकौल को एक मकान और कुछ जागीर दी गयी। मकान नहर के किनारे था , इसी से उनका नाम नेहरू पड गया। कौल उनका कौटुम्बिक नाम था , बदलकर कौल नेहरू हुआ और आगे चलकर कौल गायब ही हो गया और महज नेहरू रह गया।
खत्री पंजाब से निकलकर पूर्व की ओर बढे और इस बढने के काल और क्रम से इनके तीन प्रमुख भेद बन गए ... पूर्विए , पच्छिए और पंजाबी। ईसा की आठवीं शताब्दी से 1700 ईस्वी तक जो लोग पंजाब से आगे बढकर यमुना गंगा के प्रदेश के विभिन्न भागों में बस गए , वे पूर्विए कहलाए। 1700 से 1900 के बीच जो परिवार पंजाब से आगे बढकर इन प्रदेशों में बसे , उन्हें पच्छिए कहा जाने लगा। जो पंजाब में ही रह गए , बहुत बाद में इन प्रदेशों में आए , वे पंजाबी कहलाए।
( खत्री हितैषी के स्वर्ण जयंति विशेषांक से)
1 टिप्पणी:
acchhi jaankaari hai,,,,
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