सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

आडंबर एवं प्रदर्शन समाज के लिए घातक होता है !!

यह सुविदित है कि हमारे धर्मपरायण समाज की आधारशिला 'सादा जीवन उच्‍च विचार' रही है। मर्यादित परिग्रह में दृढ आस्‍था रखनेवाले हमारे पूर्वजों ने आदर्श जीवन यापन किया है। उनके द्वारा प्रस्‍तुत कई उदाहरण आज भी इतिहास के पृष्‍ठों पर स्‍वर्णाक्षरों में अंकित हैं। पूर्वकाल में साधन संपन्‍न व्‍यक्ति फिजूलखर्ची में अपनी संपत्ति का प्रदर्शन नहीं करते थे। उसका उपयोग समाज , राष्‍ट्र और बहुजनहिताय होता था। इसी कारण वे महाजन कहलाते थे। इसी परंपरा को निभाना हमारा कर्तब्‍य है , साथ ही आज के वातावरण में आवश्‍यक भी। अत: हमारे धार्मिक सामाजिक समारोह सादगीपूण होना चाहिए तथा दिखावे और आडंबर को बढावा नहीं दिया जाना चाहिए।

वर्तमान काल की इस भौतिक चकाचौध में हमारा समाज अधिकाधिक लिप्‍त होता जा रहा है, मानों आपसी होड सी लगी हुई है। इस कारण समाज का बडा हिस्‍सा तनावग्रस्‍त है , साथ ही स्‍थानीय जनता में भी हमारे आडंबर को देखकर इर्ष्‍या और द्वेष की भावना जन्‍म ले रही है , जो समाज हित में नहीं है। समाज में सभी का आर्थिक स्‍तर एक सा नहीं होता , फिर भी अधिकांश लोग देखा देखी झूठी शान के चक्‍कर में ऐसे गैर जरूरी रीति रिवाजों को निभाने के लिए , मिथ्‍या आडंबर और अनावश्‍यक प्रदर्शन का अंधानुकरण करने के लिए विवश हो जाते हैं, जो बाद में उनके लिए पीडादायक बन जाता है।

अत: समाज में पनपती इन प्रवृत्तियों को रोकने के लिए हमें अपने सामाजिक समारोहो की पद्धति पर पुनर्विचार कर कुछ मर्यादाएं निश्चित करनी चाहिए , जो बहुजन हिताय की दृष्टि से सभी को मान्‍य हो , क्‍यूंकि इन आडंबरों का उद्देश्‍य अधिकतर धार्मिक भावना न होकर समाज में प्रतिष्‍ठा के मापदंड मे दसरों से ऊंचा दिखना होता है। क्षणिक वाहवाही के लिए किए गए इन आयोजन न तो शासन हित में ही है और न ही समाज के लिए उपयोगी। अत: धार्मिक तथा सामाजिक समारोहो में , शादी विवाह के अवसर पर तथा अन्‍य सामूहिक आयोजनों पर दिखावा और प्रदर्शन नहीं किया जाए , यही समय की मांग है और आज के युवा वर्ग की पसंद भी। इस संदर्भ में सभी का चिंतन हो और कुछ ठोस निर्णय लेकर सभी को मानने को बाध्‍य किया जाए !!

लेखिका ... पूजा कोहली

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

सार्थक संदेश!

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