गुरुवार, 24 दिसंबर 2009

मेहरा , मेहरोत्रा या मल्‍होत्रा गोत्र की उत्‍पत्ति की कहानी हास्‍यास्‍पद ही है !!

mehra surname belongs to which cast

पं द्वारका प्र तिवारी जी के द्वारा लिखित 'खत्री कुल चंद्रिका' में लिखा मिलता है कि एक खत्री साहब को अपने साहबजादे की शादी में बहुत दहेज मिला , जिससे खुश होकर वे बहू को गोद में लेकर मंडप में ही नाचने लगे। यह हरकत देखकर लोग हंसने लगे और उसे महरा यानि जनाना के नाम से पुकारा , इससे उनकी औलाद मेहरा कहलाने लगी। कहा जाता है कि शादी में खत्रियों में बहूओं को नचाने का दौर उसी समय आरंभ हुआ।


यह तथाकथित किवंदंती कितनी हास्‍यास्‍पद है , यह तो पढने के बाद ही मालूम हो जाता है। मारे खुशी से बहू को नचाने की घटना तो सत्‍य हो सकती है , पर यह घटना संपूर्ण अल्‍ल की उत्‍पत्ति का कारण नहीं बन सकती। यदि ऐसी बात होती तो इस घटना की चर्चा के साथ यह तो बताया जाता कि उक्‍त घटना से पहले वे लोग किस अल्‍ल के थे। खत्रियों की अल्‍ल में ऊंची मानी जाने वाली 'मेहरोत्रा' अल्‍ल की प्रत्‍यक्ष सूर्यवंशी सप्रमाण उत्‍पत्ति के किसी कारण पर विचार करती है , जबकि 'वितर्क नार्त मार्कण्‍डमिहिरारूण पूषण:' अमर कोष की व्‍युत्‍पत्ति के अनुसार मेहरोत्रा अल्‍ल 'मिहिरोत्‍तर' से संबंधित है। मेहरोत्रा इसी शब्‍द का अपभ्रंश है। मेहरा सूक्ष्‍म नाम है तथा मल्‍होत्रा सी का परिवर्तित रूप है।

अत्‍यंत प्राचीन काल में सूर्य वंश के लिए मिहिर वंश का प्रयोग होता आ रहा है , जिसका प्रमाण राजतरंगिणी जैसे अनेक ऐतिहासिक ग्रंथों में भी है। कुछ विद्वान मिहिरावतार का ही अपभ्रंश 'मेहरोत्रा' को मानते हें। गोत्र निर्णय से भी प्राचीन काल में मिहिर क्षत्रियों के पुरोहित वशिष्‍ठ के पुत्र 'जीतल' के वंशज जीतली सारस्‍वत ब्राह्मण आजतक मेहरोत्रा खत्रियों के भी पुरोहित रहे हैं। वास्‍तव में इस मेहरोत्रा अल्‍ल की इस सूर्यवंशी शाखा की प्रामाणिकता के लिए इतने प्रमाण मिले हैं कि किसी प्रकार की किवंदंती आधारहीन और असत्‍य सिद्ध हो जाती है।

लेखक ... खत्री सीता राम टंडन


5 टिप्‍पणियां:

डॉ टी एस दराल ने कहा…

संगीता जी हमें तो इस बारे में कुछ भी नहीं पता।
लेकिन इतना ज़रूर है अब जिस तरह का माहौल चल रहा है, ये जात-पात , धर्म और क्षेत्र आज की युवा पीढ़े के लिए कोई मायने नहीं रखते।

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

Is prakar agar kasauti pe kasenge to kya any gotron ki kahaniya kharee utar paayengee?

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अंग्रेज़ी का तिलिस्म तोड़ने की माया।
पुरुषों के श्रेष्ठता के 'जींस' से कैसे निपटे नारी?

संगीता पुरी ने कहा…

डॉ साहब ,
आज तो लोकतंत्र का भी चेहरा विभत्‍स हो गया है .. पर लोकतंत्र में कोई खराबी दिखती है आपको .. बस दृष्टिकोण का फर्क है .. जब एक राष्‍ट्र को सही ढंग से चलाने में उसे प्रदेश में , सबडिविजन में , जिले में , ब्‍लॉक में और गांव में बांटना पडता है .. तो फिर समाज को चलाने के लिए इसका वर्गीकरण क्‍यूं नहीं किया जाना चाहिए .. आज आधार बदला जा सकता है .. पर बांटना तो होगा ही .. इसका अर्थ ये नहीं है कि हमारे दिल को बांट दिया जाए .. जाति पाति आधारित मेरे अन्‍य लेखों को आप पढेंगे .. तो सारी बातें समझ में आ जाएंगी !!

Udan Tashtari ने कहा…

जानना रोचक रहा.

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर जानकारी दी, लेकिन यह जात पात तो युरोप मै भी है, यानि लोहार, सुनार, किसान मोची, लेकिन यहा भेद भाव नही सब समान है, ओर ना ही वोट की राज नीति है

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