डी इब्टेशन के 'पंजाब कास्ट्स' के पृष्ठ 248 के अनुसार करीब 2600 मुसलमान खत्री मुल्तान और झंग में बसे हुए थे और उन्हें वहां खोजा कहा जाता था, क्यूंकि इनमें से ज्यादा खत्री कपूर अल्ल के थे। शाहपुर के लगभग सभी खोजा खत्री ही हैं , पर झांगे में बसे खोजा इस्लाम धर्म अपनाने वाले पूर्व के अरोडा खत्री हैं। मुसलमान फेरीवालों के लिए पंजाब में एक शब्द 'पारचा' भी प्रयुक्त किया जाता है। नमक की पहाडियों की तरफ के इन पारचाओं का मुख्यालय पिंडी के पास मुखाड में है तथा अटक और पेशावर में इनकी बडी बडी बस्तियां हैं , जहां से ये मध्य एशिया के शहरों में दूर दूर तक सूती , रेशमी वस्त्र , नील और चाय का दूर दूर तक व्यापार करते थे।
यह कहा जाता है कि शाहजहां के समय में ये मूलखंड से आकर बसे थे। कोई कोई कहते हें कि ये लाहौर के खत्री थे , जिन्हें जमनशाह ने निकाल दिया था। ये अपनी लडकियां सिर्फ पारचा लोगों को ही देते हैं। यद्यपि कभी कभी वे बाहर से लडकियां ले लेते हैं। इनमें हिन्दुओं की राजा उपाधि अभी तक चलती है। कुछ समय पूर्व यानि 1975-1976 में हाजी यूसुफ आला राख्या पटेल करांची नाम के एक मुसलमान खत्री ने इन खत्रियों पर किया गया अध्ययन गुजराती भाषा में दो खंडों मे प्रकाशित किया था, जिसमें वर्तमान पाकिस्तान के ही नहीं , भारत और पाकिस्तान के बाहर रहनेवाले मुसलमान खत्रियों का भी विस्तृत विवरण दिया गया था। यूसूफ ए पटेल स्वयं कच्छ के रहनेवाले थे और सन् 1948 में पाकिस्तान चले गए थे। पाकिस्तान में वे पाकिस्तान खत्री कान्फ्रेंस के अध्यक्ष भी रहें।
उन्होने पाकिस्तान में रहनेवाले खत्रियों का ही नहीं , भारत में रहनेवाले खत्रियों का भी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक अध्ययन प्रस्तुत किया है। इस अध्ययन में कच्छ , मकराना , गुजरात , काठियावाड , सिंध , मांडवी , मालवी और करांची के हलाई मुसलमान खत्रियों पर विशेष अध्ययन प्रस्तुत किया गया था तथा हिन्दू और मुसलमान दोनो प्रकार के सिन्धी खत्रियों का भी जिक्र है। इस बुजुर्ग विद्वान लेखक ने अलग अलग स्थानो पर उनकी केवल जनसंख्या ही नहीं दी , बल्कि सामाजिक प्रथाओं और रीति रिवाजों का भी विस्तृत विवरण दिया है। उन्होने यह भी बताया कि कच्छ , काठियावाड , सिन्ध , गुजरात में मुसलमान खत्रियों के 56 मुखिया हैं। उनके दिए खत्री परिवारों की जनसंख्या के आंकडे तो रोचक है ही , साथ ही उसमें मुसलमान खत्री समुदाय को उदार दृष्टिकोण अपनाने की सलाह दी गयी है और उनके कल्याण की भी कामना की गयी है
( लेखक .. सीताराम टंडन जी)
4 टिप्पणियां:
हम तो कच्छ(गुजरात) का समझते थे खोजा लोगों को आज तक..वही जाना भी है अपने खोजा मित्रों से.
bahut achchi lagi yeh jaankari....
जानकारी हेतु बहुत बहुत धन्यवाद। कुछ दिन पहले में चक्र मैं पड़ गया था, कहीं लिखा पढ़ा मैंने कि मूसा खत्री। मैं हैरान था कि मुस्लिम और खत्री।
युवा सोच युवा खयालात
खुली खिड़की
फिल्मी हलचल
yah jaankari to nayi hai.
abhaar.
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