हिन्दू समाज में खत्रियों की क्या स्थिति है , इस विवाद ग्रस्त प्रश्न पर पिछली सदी से पर्याप्त कहा लिखा जा चुका है। इस प्राचीन सैनिक जाति को तीसरी श्रेणी में रखकर रिजले ने काफी क्षति पहुंचायी। संभव है यह त्रुटि भूल या उपेक्षा से ही हुई हो। बाद में क्षमा मांगते हुए उन्होने इसे सुधार तो दिया और निश्चय ही इस विवादग्रस्त प्रश्न का अंत हो गया , पर ऐसा लगता है कि रिजले साहब की भूल का दूषित कुप्रभाव समाप्त नहीं हुआ। 'दी संविन मूर्स इंडियन अपील' द्वारा इस विषय पर अधिकारपूर्ण दृष्टिकोण से पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। इसमें एक शती से भी पूर्व प्रीवी कौंसिल द्वारा सदा के लिए निर्णय कर दिया गया था कि खत्री लोग प्राचीन फिरकों या जाति में से एक प्रस्फुटित या निर्मित जामत का प्रतिनिधित्व करते हैं। भारतीय समाज में अपनी वास्तविक स्थिति को निर्धारित करने के लिए इतना पर्याप्त था , पर ब्रिटीश कूटनीतिज्ञता की कार्यप्रणाली का क्या कहना ? उन्नीसवीं सदी के अंतिम भाग में जनगणना के कार्यों में हाथ लगाया गया और जानबूझकर यह अपकार कर डाला गया।
यदि ट्राइब्स एंड कास्ट्स ऑफ बंगाल के पहले खंड से कुछ उपयोगी वाक्यांश उद्धृत किए जाएं , तो अनुपयुक्त न होगा ' जाति की आंतरिक व्यवस्था इस बात की द्योतक है कि खत्री न तो ब्राह्मणों के वंशज हैं और न ही क्षत्रियों के । जो सिद्धांत उन्हें क्षत्रियों से संबंधित बताता है , उसका अस्तित्व किसी स्थायी नींव पर न होकर केवल नाम मात्र की समरूपता पर है। अपने रंगरूप के कारण वे अधिकारपूर्ण रूप से खुद को आर्यवंश के अंतर्गत रख सकते हैं। किन्तु उनके जिन विभिन्न भेदों का उल्लेख हुआ है , उसमें से कोई भी अस्थानीय नाम राजपूत वंश की विशेषताओं के द्योतक नहीं हैं। यदि वे उसी नस्ल के होते , जिनसे राजपूतों के विभिन्न कुल हैं , तो उनके भी वही जातीय नाम होते , यह समझना वास्तव में कठिन हो जाता है कि उन्होने कम महत्वपूर्ण पैतृक अल्लों के लिए उनका क्यूं परित्याग कर दिया।'
इस अवांछनीय मत के प्रति संपूर्ण देश में क्षोभ और क्रोध की आग फैल गयी। जिसके कारण जनगणना के कमिश्नर ने महाराजा बर्दवान को पत्र लिखकर इस त्रुटि का संशोधन कर दिया। इसमें इन्होने बताया कि ' बिना इस वितर्क पर जोर देते हुए कि मैं तुरंत कह सकता हूं कि मेरे सम्मुख जो प्रमाण रखा गया है , उससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि कम से कम ब्रिटीश भारत में साधारणतया खत्री हिन्दू परंपरा के क्षत्रियों के सच्चे प्रतिनिधि हैं। जनगणना के कार्य के लिए यह बात कि बहुत से लोगों का ऐसा विश्वास है और यह पूछना कि किन बातों के आधार पर वे ऐसा कहते हैं , निस्सर होगा। अत: जनगणना अधिकारियों को यह आदेश दिया जाता है कि क्षत्रियों के अंतर्गत ही जातियों के विभाजन के समय खत्रियों को समिमलित कर लिया जाए !!
(लेखक .. खत्री डा वैजनाथ पुरी जी)
2 टिप्पणियां:
आपने बहुत ही बढ़िया लिखा है ! आपके पोस्ट के दौरान अच्छी और महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई !
समय के साथ भिन्न करणों से ( जिनमें से कुछ पर आपने प्रकाश डाला )जातियों पर प्रभाव पडे जो धीरे धीरे उन जातियों के ट्रेट्स माने जाने लगे. लेकिन मुझे कई बार ये भ्रामक लगता है.
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