मात्र 'ख' और 'क्ष' में परिवर्तन बोलचाल भाषा की ही देन है। क्षत्रियों का व्यवसाय राज्य एवं युद्ध करना था , पर खत्रियों के व्यापार से संबंधित होने के कारण जनमत गणना अधिकारियों ने चाल चलते हुए इसे सम्मानित स्तर से एक श्रेणी नीचे रख दिया था। पर 1901 का सामाजिक जाति आंदोलन अपने ढंग का था और इसमें हमें सफलता मिली। इसी घटना ने जाति के इतिहास लिखने के लिए लोगों को प्रोत्साहित भी किया।
आज इतिहास का मोड बदल जाने के बाद 'खत्री' 'क्षत्री' समानता या एकीकरण की समस्या नहीं रह गयी है।राजनीतिक और प्रशासलनक क्षेत्रों में मध्य काल से ही खत्री उच्च पदों पर आसीन रहे हैं। अलाउद्दीन से लेकर मुगलों के समय तक इनका उत्तरी भारत की राजनीति में एवं प्रशासन , शिक्षा तथा वित्तीय क्षेत्र में अधिकार रहा। कई राज्यों में ये दीवान के पद पर भी असीन् रहे। व्यापार में इनकी सफलता दिल्ली , ढाका कलकत्ता ओर अहमदाबाद में इस स्तर तक पहुंच गयी थी कि विदेशी यात्रियों ने भी इसका विवरण दिया है।
साहित्य एवं धार्मिक क्षेत्रों में भी इन्होने फारसी , हिन्दी और उर्दू में रचनाएं की । इन्होने धर्म को राजनीति से जोडकर इसे एक नई दिशा दी। गुरू नानक से लेकर गुरू गोविंद सिंह जी तक सभी सिख गुरू खत्री ही थे। आधुनिक युग में इनका स्वाधीनता आंदोलन में भी बडा हाथ रहा। स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भी ये सेना के तीनो अंगों में सर्वोच्च पदों पर रहें। जैसा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस हिदायत उल्ला ने मेरी पुस्तक 'खत्रीज ए शोसियो, हिस्टोरिकल स्टडीज' की भूमिका में लिखा है कि 'खत्री चाहे जिस क्षेत्र में रहे हों सदैव सर्वोच्च पद पर पहुंच चुके हैं' ।
(लेखक .. खत्री बैजनाथ पुरी जी)
3 टिप्पणियां:
aapne ek bat bhot achhi likhi sikho ke guru khatri hi the
or sena parmukh bhi rhe hai iss parkar ke lekho ko padhkar garv mehsoos hota hai
me ummid karta hoo apke lekh ko padhkar bhot se khatri khd ko khatri kehne me garv mehsoos karenge
bhut hi jankari bhri lekh ke liye aapko dhanywaad.
maim mai bhi blog par waapas aa gya hoon,kripya mere bhi blog par aane ki jahamat kare.
bhut achchha.
kripya mere bhi blog par aane ki kripa kare.
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