रविवार, 22 नवंबर 2009

पेड पौधों के बाद जीव जंतुओं का विनाश .. ये समाप्‍त हो गए तो फिर क्‍या करेंगे आप ??




आज मानव की दानवीय कूरता के चंद उदाहरण आपके सामने रख रही हूं .....

दही और वनस्‍पति से बननेवाली माइकोबायल रेनेट का उपयोग न कर अधिक जायकेदार चीज बनाने के लिए गाय के बछडे के पेट में रेनेट नामक पदार्थ को प्राप्‍त करने के लिए नवजात बछडों का वध कर दिया जाता है । जिसकी मां का अमृत समान दूध हमारे बच्‍चों के विकास में महत्‍वपूर्ण भूमिका अदा करता है , उसी बच्‍चे का जीवन हम अपने स्‍वाद के लिए ले लेते हैं। छि: छि: यह हमारा कैसा व्‍यवहार है ??

चूंकि लोगों को शुतुरमुर्ग के पंखों से प्‍यार है , पंख विकसित होने तक इंतजार किया जाता है और पंख नोच लेने के बाद इसकी खाल नोची जाती है। खरोंचने और नोचने का यह क्रम तबतक चलता है जबतक शुतुरमुर्ग के प्राण पखेरू उड न जाएं। खाल का थैला बनता है और पंख आपके टोप में खोंस दिए जाते हैं। मात्र फैशन के लिए इतनी क्रूरता ??

बिल्‍ली से बहुत छोटा बिज्‍जु नामक जानवर को बेंतो से इतना पीटा जाता है कि यह उद्वेलित हो जाए। लगातार पिटाई के दौरान उद्विग्‍न अवस्‍था में इसके शरीर से जो तरल पदार्थ निकलता है , उसमें से सुगंध निचोडे जाने के लिए उसकी ग्रंथियों को चाकू से लगातार खरोंचा जाता है। सुगंध प्राप्‍त करने के लिए ऐसा अनर्थ ??

लिपिस्टिक में प्रयुक्‍त होनेवाले रसायनों में जहर की जांच के लिए दर्जनों बंदरों को बैठाकर उनके गले में ट्यूब के जरिए अनेक प्रकार के तरल पदार्थ पेट में पहुंचा दिए जाते हैं, इससे अधिकांश बंदरों का मरना तय होता है। इतना जहर पचाकर जो बंदर नहीं मरते , उनका पोस्‍टमार्टम महज इसलिए किया जाता है कि वे क्‍यूं नहीं मरे ? दिनभर के प्रयोग के बाद सायंकाल में बंदरों की लाशों को कूडे की तरह फेक दिया जाता है। उनके दर्द को कोई क्‍यूं नहीं समझता ??

अपनी बडी बडी सुंदर गोल आंखे और चेहरे के नादान भाव वाले स्‍लैण्‍डर लोरिस नाम के छोटे से बंदर का शिकार कर उसकी आंखे और दिल निकाल ली जाती है और इसे पीसकर सौंदर्य प्रसाधन बनाया जाता है , भला इतने जानवरों की मौत से हमारा चेहरा मुस्‍कुरा सकता है ??

जिंदे सांप के खाल को ख्‍ींचने में होने वाली सरलता के कारण सांप के सिर को कील से पेड के तनों पर ठोक दिया जाता है , जिंदा सांप तडपता रहता है और चाकू की मदद से उसकी खाल उतरती रहती है , आदमी हैं या राक्षस हैं हम ??

अापकी ऑफ्टर शेव लोशन आपकी गाल पर फोडे फुंसी तो नहीं करेंगे , यह जानने के लिए गिनी पिग की खाल को बार बार खरोंचकर उसकपर लेप कर इसका परीक्षण किया जाता है , इस परीक्षण में न जान कितने गिनी पिग मारे जाते हैं। कहां का न्‍याय है ये ??

केवल कश्‍मीर की घाटियों में ही पाया जानेवाला को पकडने के लिए घास के अंदर कंटीले लोहे के ऐसे जाल बिछाए जाते हैं , कि बेचारा हरिण पैर रखते ही फंस जाता है। छटपटाते हुए वह लहूलुहान अपने पैर को उस इस्‍पाती शिकंजे से निकालने की बराबर चेष्‍टा करता है और सि‍सक सिसक कर प्राण त्‍याग देता है। इस प्रकार पकडे गए औसतन तीन हरिणों मे से दो को या तो बेकार समझकर वहीं पडे रहने दिया जाता है क्‍यूंकि या तो वे कस्‍तूरी मृग नहीं होते या व्‍यवसायिक दृष्टि से अनुपयोगी समझे जाते हैं , क्‍या मूल्‍य है उनकी जान का ?

मगरमच्‍छ को चालाकी से बाहर लाया जाता है और एकाएक उसकी नाक में एक पैना छुरा घोंप दिया जाता है , ताकि उसका जीवन समाप्‍त हो जाए। उसकी खाल का उपयोग चमडे के रूप में महिलाओं के पर्स या सूटकेस बनाने में किया जाता है , क्‍या इसके बाद भी आप कहेंगे कि मगरमच्‍छ झूठे आंसू बहाता है ?

(कल्‍याण से साभार)








6 टिप्‍पणियां:

वाणी गीत ने कहा…

मूक जानवरों पर इतना सितम ...पाशविक प्रवृति तो हम मनुष्यों की हो गयी है ..!!

Arvind Mishra ने कहा…

इस लेख को यहाँ उधृत करने के लिए बहुत आभार -आप सचमुच प्राणी मात्र के दुःख दर्द को samjhtee हैं

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

सुन्दर और जानकारी पूर्ण लेख संगीता जी अभी कुछ दिनों पहले एक मेल मिली थी जिसमे दर्शाया गया था की डेनमार्क में किस तरह लोगो ने व्हेल को काट काट कर उस स्थान पर पूरा समुद्र ही लाल बना दिया था ! यहाँ फोटो लोड करने की सुविधा होती तो संलग्न करता !

निर्मला कपिला ने कहा…

इस पाश्विक प्रविती का क्या करें आपने बहुत सही लिखा है शुभलामनायें

निर्झर'नीर ने कहा…

pashvikta ki intiha hai..prabhu sab dekhta hai.

ye prakritik aapdayen kyun aati hai ?

shayad ye manav ke julm ki intiha ka hi natiza hai.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

इस भौतिक युग नें इन्सान को हैवान बना कर रख छोडा है...ओर हम हैं कि निकट भविष्य में स्वर्णिम युग के आगमन की आस लगाए बैठे हैं ।

क्‍या ईश्‍वर ने शूद्रो को सेवा करने के लिए ही जन्‍म दिया था ??

शूद्र कौन थे प्रारम्भ में वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर थी, पर धीरे-धीरे यह व्यवस्था जन्म आधारित होने लगी । पहले वर्ण के लोग विद्या , द...