तीज पर्व का महत्व
चैत्र माह में ही आठ दिन बाद 'बसिहुडे की अष्टमी होती है , यह चार बसिहुडे में पहला होता है , देवी जी की पूजा होती है और बासी खाया जाता है। लखनऊ में धुरेरी को कोनेश्वर महदेव के चौक में मेला हेाता है , और अष्टमी को सआदतगंज में टिकैत राय के तालाब शीतला का बहुत बडा मेला होता है। दुर्गा अष्टमी के दिन देवी की हलवे से पूजा होती है , नारियल की भेंट भी दी जाती है। घर में सबों को हलवा पूरी और गरी प्रसाद में मिलता है। संबंधियों तथा मित्रों के यहां भी हलवा आदि प्रसाद बांटा जाता है , देवी जी की अग्नि के रूप में पूजा होती है।
8 दिन बाद परेवा से देवी व्रत आरंभ होता है। घी द्वारा दीपक की ज्योति की पूजा होती है। अष्टमी तथा नवमी को अविविाहित कन्याओं को भी देवी मानते हुए उनकी पूजा की जाती है। उन्हें नए वस्त्र तथा नकदी दीजाती है तथा भोजन कराया जाता है। शुक्ल पक्ष के प्रथम नौ दिन नवरात्रि के होते हैं , जो देवी भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र होते हैं। देवी की प्रत्येक दिन नियमित समय पर पूजा होती है , प्रथम दिन की पूजा दुर्गास्थापन तथा अंतिम दिन की पूजा 'ज्योति बढानेवाली पूजा' कही जाती है। कुछ लोग नौ दिनों तक व्रत रखते हैं। अष्टमी की पूजा सर्वाधिक महत्व की होती है , पर काली दुर्गा और चंडिका के मंदिरों में नवें दिन अधिक भीड होती हैं और मेला भी लगता है। आज के दिन ही रामचंद्र जी का जन्म भी हुआ था , इसलिए अयोध्या के मंदिरों में आज भारी भीड रहती है। स्त्रियां अपने सौभाग्य के लिए अरूंधती व्रत भी करती हैं , जो वशिष्ठ जी की पत्नी थी।
चैत्र शुक्ला तीज को स्त्रियां अपने पति की शुभकामना के लिए गौरी की पूजा की जाती है। सभी विवाहित स्त्रियां घी तले पकवान अपनी सासों और उनके न होने पर पति के अन्य बडी संबंधिनियों को देती हैं। साथ में कुछ नकदी भी उन्हें दी जाती हैं। वे दोपहर तक व्रत रखती हैं , तब सौभाग्य वस्तुओं से पूजन तथा कथा के पश्चात मांग में सिंदूर लगाती हैं। कथा का प्रसाद मर्दों को नहीं दिया जाता है।
चैत्र शुक्ल पूर्णिमा कोजूनो पूनो भी कहते हैं , जिसके घर में लडका होता है , वहां यह पूा की जाती है , इसमें व्रत नहीं रखा जाता है , पांच या सात मटकी या करवा रंगकर पवनकुमार की पूजा की जाती है।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत
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