रथ यात्रा प्रसिद्ध त्योहार है
ज्येष्ठ महीने की पहली अष्टमी को तीसरा बसिहुडा होता है। अमावस्या को बट सावित्री का त्यौहार मनाया जाता है। इसमें स्त्रियां अपने पति के कल्याण के लिए बरगद के वृक्ष की पूजा करती है। अमावस्या को स्त्रियों द्वारा मनाया जानेवाला एक और त्यौहार बेझरा भी है। इस दिन पोंजा मंसती है। गौरी की पूजा तथा अपने पति के कल्याण कामना के बाद विवाहित स्त्रियां घी में तले पकवान अपनी सासों या उनके न होने पर पति के अन्य संबंधिनियों को देती है। प्रत्येक पोंजा के बाद 'रानी पूजे राज को , मैं पूजूं सुहाग को' कहकर पूजा की जाती है। इस दिन के पोजें में कई तरह के अन्न होते हैं। शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा होता है। शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी होती है। पुरखों की स्मृति में यह व्रत किया जाता है। स्त्रियां तो 24 घंटे का व्रत रखती हैं। ब्राह्मणों को पुरखों के नाम पर दान दिया जाता है।
आषाढ की प्रथम अष्टमी को अंतिम बसिहुडा मनाया जाता है। इसे दाह-बैठउनी भी कहते हैं। चैत और बैशाख के बसिहुडे बडे होते हैं , देवी की पूजा होती है। कृष्ण पक्ष की दुईज को रथयात्रा होती है। जगन्नाथपुरी में आज के दिन बहुत बडा समारोह होता है। आषाढ के अंतिम दिन में व्यास पूजा को गुरूओं की पूजा धूमधाम से होती हैं। वैसे तो सभी जगह ये पूजा होती है , पर पंजाब में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
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