चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत
हमारा नया वर्ष होलिका दहन के पश्चात चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से प्रारंभ होता है। हिंदू त्यौहारों के विषय में लोकोक्ति 'सात बार नौ त्यौहार' ठीक ही हैं। किंतु हिंदुओं के चार त्यौहार अत्यधिक महत्व के है। 1. रक्षाबंधन ब्राह्मणों का , 2. विजयादशमी क्षत्रियों का , 3. दीपावली वैश्यों का और 4. होली शूद्रों का है। पर इन चारो त्यौहारों को सभी वर्णों के लोग उत्साह , प्रेम और श्रद्धा से मनाया करते हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि हम हिंदू किस तरह एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव और एक दूसरे के त्यौहारों के प्रति श्रद्धाभाव रखते थे। इन चारो त्यौहारों को हम राष्ट्रीय त्यौहार भी कह सकते हैं।
इन राष्ट्रीय त्यौहारों के अतिरिक्त कुछ ऐसे त्यौहार या पर्व हैं , जिन्हें हम धार्मिक पर्व या उत्सव कह सकते हैं। इन दोनो में भेद स्पष्ट देखा जा सकता है। जहां ये देश व्यापी चारो त्यौहार कश्मीर से कन्या कुमारी और पंजाब मुंबई से बंगाल आसाम तक मनायी जाती हैं , वहीं धार्मिक पर्व स्थान विशेष पर मनाएं जाते हैं। उदाहरणार्थ काशी में शिवरात्रि , अयोध्या में रामनवमी , मथुरा में कृष्णाष्टमी , महाराष्ट्र में गणेश चौथ जैसे कुछ पर्व खास खास जगहों पर अधिक धूमधाम से मनाए जाते हैं। पर किसी न किसी अंश में अन्य प्रदेशों में भी ये धार्मिक त्यौहार मनाये जाते हैं।
इनके अतिरिक्त कुछ ऐसे भी पर्व होते हैं , जिनका संबंध हमारे पुरखों से होता है। पितृ विसर्जन अमावस्या , पितृ पक्ष , अक्षय तीज , निर्जल एकादशी तथा मकर संक्रांति आदि कुछ पर्व ऐसे ही हैं। कुछ पर्वों का संबंध गुरू से होता है , व्यास पूजा , वसंत पंचमी आदि इसके उदाहरण है। कुछ पर्व केवल स्त्रियों के होते हैं , जैसे तीज , हरियाली तीज , कजली तीज , करवा चौथ आदि। कुछ पर्व त्यौहार विशेष जाति , विशेष समुदाय या विशेष क्षेत्र में भी प्रचलित हैं। ऐसे त्यौहारों के बारे में जानकारी भी दूसरे लोगों को नहीं होती।
हमारे अन्य त्यौहार :-------
2 टिप्पणियां:
व्रत पर्व और उत्सव हमारी लौकिक तथा अध्यात्मिक उन्नति के सशक्त साधन हैं। मगर हम ने उनके महत्व को केवल अपनी सुविधा अनुसार बना लिया है ताम झाम और दिखावा अधिक रह गया है। अच्छा लगा आलेख। धन्यवाद।
इस जानकारी परक आलेख के लिए आभार।
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…ब्लॉग चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
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