गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

नाग पंचमी का महत्व .. भाग 6 .. खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी


नाग पंचमी का महत्व 


सावन के अमावस्‍या को हरियाली अमावस कहा जाता है। शुक्‍ल पक्ष की तीज को तिजियां होती है , जिसे सुहागन अपने पति के कल्‍याण की कामना में मनाया जाता है। आटे और शक्‍कर के कसार का पोंजा स्त्रियां मनसा करती हैं। कृष्‍ण पक्ष की नागपंचमी को भाई बहनों का तयौहार पउता है , पंचमी को नागपंचमी पडती है। नागों में 12 नाग प्रसिद्ध है .. अनंत , बासुकी , शेष , पद्म , कंबल , कंकोटक , अस्‍वतर , धूतराष्‍ट्र , शंस्‍याल , कालिया , तक्षक , पिंगल , एक एक नाग की एक एक मास पूजा करने का विधान है। आज गुडियों का त्‍यौहार है , यह भाई बहनों का होता है। आज के दिन सांप की भी पूजा होती है और बच्‍चे चौराहों पर लकडियों से कपडे की बनी गुडिया को पीटते हैं।


आज के दिन अखाडों में कुश्तियां भी खेली जाती हैं। पूर्विए खत्रियों में यह त्‍यौहार विशेष तौर पर मनाया जाता है। पंचमी के दिन सायंकाल को ही भोजन करना चाहिए। श्रावण कृष्‍ण दशमी को बाबा लालू जस्‍सू राय महोत्‍सव केवल खन्‍ना खत्रियों द्वारा बाबा जस्‍सू राय की स्‍मृति में मनाया जाता है। श्रावण कृष्‍ण तेरस को 'मूल माता' की पूजा केवल कपूर खत्रियों के घरों में होती है। श्रावण शुक्‍ला तीज की तिजिया या गुडिया तीज होती है , यह केवल स्त्रियों का त्‍यौहार है। विवाहित स्त्रियों के लिए यह बहुत ही महत्‍वपूर्ण त्‍यौहार होता है , पिछले दिन से ही वे पूरे श्रृंगार में रहती हैं , उत्‍तमोत्‍तम भोजन करती हैं , झूला झूलती हैं तथा अपने सौभाग्‍य के लिए गाना गाती हैं। प्रसन्‍नता से ये त्‍यौहार मनाते हुए वे अपनी सासों या बडों को पोजा भेजती हैं। जो नवविवाहिता इन दिनो अपने मायके में होती हैं , उन्‍हें बढिया कपडे , सुंदर गुडिया , चांदी , लकडी आदि के सुंदर खिलौने आदि श्‍वसुरों की ओर से मिलते हैं , ताकि वे आनंद से यह दिन बिताएं। 

श्रावण शुक्‍ला छठ को वाराह अवतार माना जाता है , श्रावण शुक्‍ल चतुदर्शी को श्री चंद्रिका महोत्‍सव केवल कपूरों में होता है , वे अपनी कुलदेवी चंद्रिका की पूजा करते हैं। पूर्णमासी को रक्षाबंधन या सलीनो होती है। आज बहने अपने भाइयों और ब्राह्मण अपने यजमानों के हाथ में राखी बांधते हैं। यह ऐतिहासिक पर्व बडे महत्‍व का है। आज सिमाई से पूजा होती है। घर के दरवाजों के दोनो ओर तथा दीवारों पर राम रोली आदि से लिखते हैं। उसपर भात , सेमई तथा राखी आदि चिपकाकर पूजा करते हैं। कहीं कहीं लोग दाल चावल रोटी आदि पुरखों के नाम पर दान करते हैं। भविष्‍य में भगवान रक्षा करें तथा पूर्वकृत पापों का ह्रास हो जाए , यह आज की पूजा का उद्देश्‍य होता है। कहीं कहीं माखन , दही , दूध , शहद , गोबर , गोमूत्र तथा कुशा आदि से पूजा होती है। सलीनों के दूसरे दिन दामाद और कन्‍याओं को निमंत्रित किया जाता है। अरूंधती समेत सप्‍तर्षियों की पूजा का विधान है। कजरी पूर्णिमा भी आज होती है , नवमी से किया एक सप्‍ताह का व्रत आज पूरा होता है।





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