शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

गंगा के पुनर्जन्म की कहानी .. भाग 4 .. खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी

गंगा के पुनर्जन्म की कहानी


बैशाख माह की पहली अष्‍टमी को दूसरा बसिहुडा होता है , यह देवी का त्‍यौहार है। स्त्रियां लोढे की पूजा करती हैं , बासी खाना खाया जाता है। इसके बाद अमावस्‍या को महुआ दान किया जाता है , शुक्‍ल पक्ष की तीज को अक्षय तीज होती है , उस दिन मृत पुरूषों की स्‍मृति में जौ का सत्‍तू , फल मिठाई , पंखा पानी से भरा झंजर तथा कुछ नकदी ब्राह्मणों को पुरखों के नाम पर दिया जाता है। इस पक्ष की सप्‍तमी को गंगा सप्‍तमी होती है , यह गंगोत्‍पत्ति का दिन माना जाता है। नौमी को जानकी जी का जन्‍म दिवस है , चौदस को नृसिंह चौदस होता है , इसी दिन नृसिंह अवतार माना जाता है। आज के व्रत में सायंकाल के समय केवल फल और दूध ही खाया जाता है। बैशाख , आषाढ और माघ ,,, इन्‍हीं तीनों महीनों की किसी तिथि में रविवार के दिन आसमाई की पूजा होती है। यह पूजा किसी भी कार्य की स‍िद्धि के लिए की जाती है। कहीं कहीं तो वर्ष में दो तीन बार ये पूजा की जाती है। आसमाई आशा पूर्ण करने वाली एक शक्ति है। प्राय: लडके की मां पूजा करती है और इस दिन नमक नहीं खाया जाता है।





1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

आभार इस जानकारॊ को देने का.

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