सोमवार, 23 अगस्त 2010

हमारे मान्‍य देवी देवता ... भाग 1 ... श्री लक्ष्‍मी नारायण टंडन जी


वैदिक और ब्राह्मण धर्म के मानने वाले मूर्तिपूजक हिंदू निम्‍नलिखित देवी देवताओं की पूजा करते हैं ....

1, ब्रह्मा .... सृष्टि और ब्रह्मांड के निर्माता ब्रह्मा जी को ही माना जाता है। त्रिदेवों में इनका प्रथम स्‍थान है। इनके चार मुख है , जिनसे चारों वेदों का प्रादुर्भाव हुआ है। भगवान की रजोगुणी शक्ति , जो निर्माण करती है , वही ब्रह्मा हुई।

2, विष्‍णु ... त्रिदेवों में बसे अधिक महत्‍व विष्‍णु का है। वे संसार के रक्षक हैं। हिंदुओं में ब्रह्मा जी की पूजा से अधिक पूजा का प्रचार इन्‍हीं देव का है। ईश्‍वर की सतोगुणी रक्षा करनेवाली शक्ति का नाम ही विष्‍णु है।

3, शिव या महादेव ... त्रिदेवों में तीसरेनंबर पर शिव हैं। आप संसार के नाश के देवता हैं। ईश्‍वर की वह तमोगुणी महान शक्ति , जो अंधकार अथवा अज्ञान के संहार का काम करती है उसका नाम शिव है। शिवभक्ति का प्रचार भारत के हिंदुओं में अधिक है।

अस्‍तु हमने देखा कि परब्रह्म परमात्‍मा ही सर्जना , रक्षा और संहार के स्‍वामी है , उसी ईश्‍वर के ये तीन नाम ब्रह्मा , विष्‍णु और महेश हैं। अलग अलग कार्य की भांति उनके रंग और विशेषताएं भी भिन्‍न हैं। ब्रह्मा रक्‍त रंग के विष्‍णु श्‍याम तो शिवश्‍वेत हैं। शिव को नीलकंठ भी कहते हैं , क्‍यूंकि समुद्र मंथन के समय निकले विष का पान कर उन्‍होने देवताओं और दानवों की रक्षा की है। समसत दूषणों और पापों के शमन करने की शक्ति जिनमें हो , वह नीलकंठ हैं। कल्‍याणकर्ता शिव का निवास स्‍थान कैलाश है। सर्प उनके शरीर से लिपटे रहते हैं। उनकी जटा पर गंगा जी और मस्‍तक पर चंद्रमा सुशोभित है। वन्‍य मूल फूल फल उन्‍हें प्रिय हैं। लिंग चिन्‍ह स्‍वरूप का प्रतीक है , क्‍यूंकि सृजन शक्ति शरीर के इसी अंग में समाहित है। शैवों का गढ काशी है। शिवपुराण तथा उत्‍तम पुराण शैवों के प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। नगर तथा ग्राम के प्रत्‍येक मुहल्‍ले में बस्‍ती में अवश्‍य ही एकाध शिवालय हुआ करता है। जहां समस्‍त हिंदू शिव जी की पूजा बेलपत्र , धतूरा , भांग फूलों और ुलों से करते हैं। शिवभक्‍त रूद्राक्ष की माला धारण करते हैं। प्रतयेक धर्मात्‍मा नर नारी शिवरात्रि का व्रत रखता है। मंदिरों में बम भोला शंकर की ध्‍वनि के साथ घंटों की ध्‍वनि आपको सर्वत्र सुनाई देगी।

ऐसा नहीं है कि जो वैष्‍णव हों , वो शिव जी की पूजा नहीं करें। किंतु वैष्‍णवों और शाक्‍तों में कुछ भेदभाव होता है। वैष्‍णव कभी भी मांस का स्‍पर्श नहीं करेगा , पर शैवों में कुछ को मांस खाने से आपत्ति नहीं। कुछ तो भंग और मदिरा तक का पान करने में नहीं हिचकते , पर वैष्‍णव में मदिरा पान वर्जित है। शैव त्रिपुण्‍ड लगाते हैं , मस्‍तक में सीधी रेखाएं भष्‍म या चंदन की , पर वैष्‍णव यदि रामानंदी हुए तो सीधी तीन रेखाएं और यदि कृष्‍ण भक्‍त वैष्‍एाव हुए तो दो रेखाएं खडी मस्‍तक पर लगाते हैं। शैव रूछ्राक्ष की और वैष्‍णव तुलसी की माला का प्रयोग करते हैं। शैवों में रहस्‍यात्‍मकता तथा एकांत और मरघट आदि को अधिक मान्‍यता दी जाती है , जबकि वैष्‍णवों को उत्‍सव और आनंद में भाग लेने का आदेश है।

ब्रह्मा , विष्‍णु और महेश के अतिरिक्‍त अन्‍य देवी देवताओं का पूजन भी हमारे यहां होता है , जिनके बारे में अगले आलेख में जानकारी दी जाएगी।



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