हमारी मूल गोत्र व्यवस्था , जो कालांतर में विकसित हुई और इसी का उल्लेख 'सेक्रेड बुक ऑफ द ईस्ट' नामक प्रसिद्ध अंग्रेजी ग्रंथ में किया गया है। उसी प्राचीन काल में वेदोक्त वैज्ञानिक नियम के कारण ऋषियों ने एक ही वंश में उत्पन्न लोगों का आपस में विवाह संबंध निषेध कर दिया था , और इस कारण शादी विवाह भिन्न भिन्न गोत्र में किए जाते थे। यही व्यवस्था आज भी चली आती है। विवाह संबंधों में मिलनी के समय , विवाह के समय तथा किसी संकल्प के समय या प्रत्येक धार्मिक कृत्य में पुरोहितों द्वारा अपने यजमानों के गोत्र का उच्चरण इसलिए उच्च स्वर में बोलकर किया जाता था , और अब भी किया जाता है ताकि लोगों को अपना गोत्र याद रहे। इसी परंपरानुसार विद्वान पंडितों या पुरोहितों द्वारा जन्मपत्री बनाते समय उसमें वंश, जातक का गोत्र और राशि का नाम लिख दिया जाता था , ताकि उक्त लेख का ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति को उसकी जनमकुंडली से हो जाए , पर बाद में उसकी भी उपेक्षा होने लगी।
सारे संसार के लोग भी भारत की इस गोत्र व्यवस्था को देखकर चकित हैं कि किस प्रकार भारत में एक ही वंश परंपरा का ज्ञान गोत्र व्यवस्था सुरक्षित रखा गया और वह भी इतने सरल रूप में कि हर व्यक्ति अपने वंश के मूल रक्त समूह को जान सके तथा विवाह संबंधों में संतान की प्रगति के लिए उच्च कोटि का विकसित रकत समूह प्राप्त कर सके। आज के आधुनिक वैज्ञानिक स्वयं सगोत्र विवाह का निषेध करते हैं, क्यूंकि वैज्ञानिक शोधों से यह सिद्ध हो चुका है कि अति निकट के विवाह संबंध संतान की मानसिक और शारिरीक प्रगति में बाधक होते हें और विजातीय विकृतियां उत्पन्न करते हैं। हमारे पूर्वजों ने माता की पांच पीढी में और पिता की सात पीढी तक विवाह संबंधों को वर्जित माना और अपने ही समूह में विवाह करने की अनुमति दी गयी।
यह गोत्र व्यवस्था मात्र सम्मान के लिए ग्रहण नहीं किए गए थे , बल्कि इस व्यवस्था के पीछे छिपी भारतीय सभ्यता की महानता और दूरदर्शिता को समझ पाना सबके बुद्धि से परे है और जहां अपने साम्राज्य को सुद्ढ करने का हित हो , वहां अपने गुलामों की सभ्यता को निकृष्ट बताकर उसके मूल ढांचे को नष्ट करने का प्रयास कर बााटो और राज्य करो का मूल सिद्धांत अपनाकर विदेशियों ने देश की व्यवस्था को कमजोर करने में कोई कसर नहीं छोडी। गनीमत यह थी कि उस समय का खत्री समाज गोत्र व्यवस्था का रहस्य जानता था , इसलिए रिजले की व्यवस्था के विरोध में उठ खडा हुआ था । उसने इस गोत्र व्यवस्था के पीछे छिपे वैज्ञानिक सिद्धांतों को स्पष्ट कर दिया था और आज उन्हीं खत्रियों की संतान आधुनिक सभ्यता की आड में स्वयं ही उसे भुलाने लगी है और गोत्र व्यवस्था का महत्व नहीं समझती।
लेखक ... खत्री सीता राम टंडन
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4 टिप्पणियां:
shandar jankari ke liye abhar dhnywad or apne yah bat bilkul sahi khi aaj khtriyo ki santane hi inhe bhoolane me lagi hai
संगीताजी,
आपने आज मेरे मर्मस्थल को छू लिया। कुछ महीनो पहले तक मैं भी इस बात को मानता था, फ़िर एक दिन दौडते दौडते इस विषय पर मनन किया और मन इतना दुखी हो गया कि पूछिये नहीं। हम भारतवासियों ने पुरूषसत्तात्मक समाज के आवरण में गोत्र व्यवस्था को बरबाद कर दिया।
पता नहीं खत्री समाज में कैसे होता है लेकिन राजपूतों और अन्य समाजों में पुत्र और पुत्री दोनो का गोत्र उनके पिता का माना जाता है।
हमारे यहाँ शादी के समय तीन गोत्र लिखे जाते हैं। पिता का, माता का और दादी का। यही तीन गोत्र दूसरे पक्ष की तरफ़ के भी लिखे जाते हैं और अगर इनमे से कोई भी एक कामन हो तो शादी नहीं हो सकती। बहुत से लोगों ने दादी के गोत्र को छोड दिया है और केवल माता और पिता का गोत्र देखा जाता है।
समस्या है कि सन्तान ने आधा डीएनए माता से आता है और आधा पिता से। ऐसे में जब सन्तान का गोत्र केवल पिता के गोत्र से जाना जाये तो पहली पीढी में कोई समस्या नहीं है, क्योंकि माता का गोत्र भी साथ में लिखा जा रहा है।
लेकिन अगर कैलकुलेशन (जी हाँ, मैने ये प्रयास किया है) करके ५वीं पीढी तक जायें तो देखेंगे कि भले ही सन्तान का गोत्र उसके पिता का है लेकिन असल में उसमें उस गोत्र का <५% अंश ही मौजूद है। अब इसको फ़ास्ट फ़ारवर्ड करके देखिये तो समस्या और बडी हो जाती है।
कभी इसको इस हिसाब से भी सोचकर देखिये। मैं अभी भी इस विषय पर अपने एक बायोलाजी के अध्यापक के साथ मिलकर शोधकर रहा हूँ और अगर कुछ फ़ुरसत मिली तो इसके बारे में लिखूंगा।
आप हर चीज के दूसरे पहलू पर भी गौर करती हैं, इसलिये ये टिप्पणी लिख रहा हूँ। ये मेरी व्यक्तिगत सोच है, हो सकता है वैज्ञानिक रूप से मेरी Hypothesis में कोई कमी हो। आपकी क्या राय है जरूर जानना चाहूँगा।
शुभकामनायें,
नीरज रोहिल्ला
बहुत सुन्दर व्यस्था दी है हमारे पूर्वजो ने हमें, और इस पुरे संसार को , लोग इसे माने या न माने लेकिन आने वाले समय मैं लोग अगर शादियाँ करेंगे तो blod ग्रुप जरुर चेक कराकर करेंगे । कंही किसी को कोई बीमारी तो नहीं।
अच्छी जानकारी ।
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