गुरुवार, 14 जनवरी 2010

खत्रियों में महथा अल्‍ल की उत्‍पत्ति का आधार

भारतवर्ष के मध्‍यकाल के इतिहास को देखने से पता चलता है कि मुगल काल में ही नहीं , बल्कि हर्षवर्द्धन के समय में भी राज्‍य शासन में लगे हुए अधिकारियों को कोई नकद वेतन नहीं मिलता था। उन्‍हे राज्‍य की ओर से भरण पोषण के लिए भूमि मिली हुई थी , जिसकी समस्‍त आय उनकी होती थी। राज्‍य की संपूर्ण आय का चौथाई भाग इस प्रकार के राज्‍य के अधिकारी सेवकों के लिए निश्चित था। राज्‍य प्रांतों में बंटा था , जिसके प्रांतपति 'राजस्‍थानीय' नाम से जाने जाते थे। प्रांतों में कई खंड थे , जिन्‍हें भुक्ति कहते थे और उसका अधिकारी 'ओगिक ' कहलाता था। इन भुक्तियों में जिले के समान अनेक विषय होते थे , जिनके अधिकारी विषयपति कहलाते थे, जो प्राय: प्रांतपति द्वारा नियुक्‍त किए जाते थे। कभी कभी सीधे सम्राट द्वारा भी इनकी नियुक्ति होती थी। प्रत्‍येक विषय में तहसीलों के समान कई प्रथल होते थे।


प्रशासन की सबसे छोटी और महत्‍वपूर्ण इकाई गांव थी। गांव को मुखिया और तमाम शासन का प्रधान महत्‍तर कहलाता था। कहीं कहीं इसे चौधरी भी कहते थे। इसके प्रमुख कार्य गांव में शांति बनाए रखना , राजस्‍व की वसूली करना और अन्‍य स्‍थानीय आवश्‍यकताओं की पूर्ति करना था। ग्राम की भूमि तथा अन्‍य संपत्तियो से संबंधित कागजात भली प्रकार रखने के लिए 'ग्रामाक्ष पटलिक' नामक एक दूसरा अधिकारी हुआ करता था , जो कदाचित् उसका सहयोगी रहा होगा और बाद में वो पटेल कहलाया। 


इसी बात को देखते हुए कि खत्रियों की बहुत सी अल्‍लें स्‍पष्‍ट रूप से कार्य या कर्मप्रधान भी हैं, यह संभावना प्रतीत होती है कि जो खत्री ग्राम शासन के प्रधान थे और जिनका पद कहीं महत्‍तर या कहीं चौधरी था , वे बाद में अपने नामों के आगे महत्‍तर या चौधरी लगाने लगे होंगे। कालांतर में यही महत्‍तर बिगडकर महथा या मेहता बनकर अल्‍ल रूप में रह गया। यह अनुमान केवल ध्‍वनि साम्‍यता पर ही आधारित है और इसका कोई पुष्‍ट प्रमाण नहीं है , पर यदि महथा या मेहता अल्‍ल के खत्रियों का पूर्व इतिहास ढूंढा जाए तो इस बात के प्रमाण अवश्‍य मिल सकते हैं कि उनके पूर्वजों में से कोई पूर्वकाल के ग्राम शासन के प्रधान 'महत्‍तर' जैसे पद पर आसीन रहा होगा। इसी प्रकार की स्थिति खत्रियों की अन्‍य कर्मवाचक अल्‍लों की हो सकती है , किंतु उससे भी पूर्व में जाने पर उनका संबंध सूर्य , चंद्र या अग्नि वंश से जुडना आवश्‍यक है !!


लेखक .. खत्री सीता राम टंडन

1 टिप्पणी:

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी धन्यवाद

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