धर्म के पालन में हमें जाति व्यवस्था को कतई ध्यान में नहीं रखना चाहिए , गौतम बुद्ध ने भी अपनी धर्म व्यवस्था में जाति को स्थान नहीं दिया और जाति व्यवस्था को कमजोर किया था। जैन धर्म , कबीर के वैष्णव धर्म और रामदास तथा सिक्ख धर्म भी ऐसे आंदोलन रहें , जिन्होने जाति प्रथा की कुछ बुराइयों , विशेष रूप से अस्पृश्यता को समाप्त करना चाहा। गुरू नानक एवं अन्य सिख गुरूओं ने भी मनुष्यों को भी समानता का उपदेश दिया तथा जाति , धर्म और धन के आधार पर भेद भाव का विरोध किया। वर्तमान समय में राजा राम मोहन राय तथा महात्मा गांधी ने भी जाति प्रथा की बुराइयों को दूर करने का उपदेश दिया , पर जाति का पूर्ण विध्वंस किसी ने भी नहीं चाहा।यही कारण है कि जाति प्रथा का मूलभूत ढांचा अभी तक अपरिवर्तित रहा है।
आज भी माना जा सकता है कि जाति ही भारतीय संगठन की धुरी है , पर जाति क्या है , यह अभी तक लोगों के सामने स्पष्ट नहीं है। वास्तव में देश में केन्द्र सरकार , उससे नीचे राज्य में प्रांतीय सरकार , उसके नीचे में डिविजन में कमिश्नरी , जिले या नगर में जिला परिषद या नगर पालिका और ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत के कारण सबसे नीचे स्तर से सबसे ऊपर स्तर तक शासन व्यवस्था सुचारू रूप से चलती है , उसी प्रकार समाज के विभिन्न वर्गो के मध्य सामाजिक गतिक्रम को व्यवस्थित करके जाति व्यवस्था सुचारू सामाजिक व्यवस्था कायम करता है। कार्य दोनो का एक ही है , इन दोनो की आलोचना करनेवाले तो बहुत हो सकते हैं , पर इसका विध्वंस कौन कर सकता है ? यदि कोई चाहता है तो इसका विकल्प भी सुझाए , क्यूंकि सभी को व्यवस्था चाहिए , विध्वंस नहीं। जाति प्रथा की बुराइयों में कुछ भी कह सकते हैं लोग , पर उनकी अच्छाइयों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। भारतवर्ष के सभी समुदायों का रहन सहन , रीति रिवाज , सोंच समझ एक नहीं हो
सकता और एक जैसे लोगों का एक जगह पर होना उस क्षेत्र और क्षेत्र से जुडेलोगों को अधिक उत्तम बनाता है।
लेखक .. खत्री सीता राम टंडन
पहले सच्चे इंसान, फिर कट्टर भारतीय और अपने सनातन धर्म से प्रेम .. इन सबकी रक्षा के लिए ही हमें स्वजातीय संगठन की आवश्यकता पडती है !! khatri meaning in hindi, khatri meaning in english, punjabi surname meanings, arora caste, arora surname caste, khanna caste, talwar caste, khatri caste belongs to which category, khatri caste obc, khatri family tree, punjabi caste surnames, khatri and rajput,
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7 टिप्पणियां:
असहमत हूँ।
घुघूती बासूती
आपसे पूरी तरह से सहमत हूँ,
@घुघूती बासूती
कृपया असहमती का कारण स्पष्ट करें ।
aap ki yh bat bde let farm pr aani chahiye jatiyon me hbed ki divar rajniti vmidiya ne bnai dono ki is me mili bhgt hai jb bhi chuna hote hai midiya jati gt aankde deta isi trh sans vyvhar krti hai aarkshn ko kyon bar 2 gdhti haimusl mono ne desh me jmadar bnaye angrejo ne jatiyo ja jhr boya neteone use khob sicha ab vh vish bel bn gya hai jb tk jati gt suvidhabhogi vrg rhega tb tk yh jhr nhi mitega
aap ise aur bdhaen desh ki smrsta ko mjboot naye
dr.vedvyathit@gmail.com
जातिप्रथा की अच्छाइयां. अच्छा विषय है.
लेकिन धर्म/जाति/class की कोई सामाजिक अच्छाई भी हो सकती हैं, बमुश्किल भी सहमत हो पाना संभव नहीं है. धर्म/जाति/class केवल गैंगों की ही तरह बर्ताव करते आए हैं, विश्व भर में. इनसे कोई भला हुआ हो या न हुआ हो, सभ्यताओं को हानियां ज़रूर हुई हैं. अलबत्ता जिन्हें लाभ हुआ/होता आया उन्हें इनसे कोई परहेज़ नहीं जबकि दूसरों को इसमें अच्छा कुछ नहीं दीखता. समाज इस मुद्दे पर साफ-साफ दो धड़ों में बंटा खड़ा है.
नहीं होगी।
यह बात दलित और नीची जाती वाले नहीं कहेंगे... पर आप सगर्व खत्री समाज की हैं
जाती प्रथा में सबसे ज्यादा किसका फायदा है... दलितों का या ऊँची जाती वालों का
जाती प्रथा ख़त्म होने से किसका फायदा है ... दलितों का या ऊँची जाती वालों का
जाती प्रथा ख़त्म होने से किसका नुकसान है ... दलितों का या ऊँची जाती वालों का?
सोचिये, फिर आपको न्यस्त स्वार्थ सहज ही दिख जाएंगे
ab inconvinienti जी,
आज के युग में जाति के नाम पर बाजार में कोई भेदभाव नहीं है .. फिर भी एक ग्रेज्युएट तक को क्या मजबूरी है .. कि वह दिनभर सेठ के दुकानों में काम कर अपनी जरूरी आवश्यकता को पूरी करने में भी असमर्थ होता है .. फिर भी उसकी चाकरी छोड नहीं पाता .. सेठ के प्रति शुक्रगुजार होता है .. कल तक यही हुआ तो उसे जाति के नाम पर शोषण कहा गया .. पर जाति प्रथा की शुरूआत सामाजिक तौर पर व्यवस्था को कायम रखने के लिए हुई थी .. पर उनकी मेहनत और कला का सही मूल्य न देकर उन्हें कमजोर बनाया गया .. आज जाति का नामोनिशान नहीं होने के बावजूद मैं स्थिति अच्छी नहीं देख रही हूं .. मालिकों के आगे कर्मचारियों की कोई हैसियत नहीं .. जबकि मैं अर्थशास्त्र में पढ चुकी हूं कि लाभ का बंटवारा भूमि , पूंजी , श्रम , व्यवस्था और साहस के मध्य बराबर बराबर होना चाहिए .. आज भी तो शोषण है .. अभी भी उच्च और निम्न वर्ग के मध्य सोंच का फासला है .. बडी जाति के गरीब से गरीब लोग कष्ट करके भी अपने बच्चों को पढाना लिखाना चाहते हैं .. पर छोटी जाति के सामान्य तौर पर खाते पीते लोगों का भी अपने बच्चों की पढाई लिखाई में ध्यान नहीं जाता .. छोटी जाति के लोगों को ये बात स्वीकारने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए .. हमने खत्री जाति को समर्थ देखते हुए उनसे समाज के इस भेद भाव को दूर करने का आह्वान कर रही हूं .. मेरी कोई गलत मंशा नहीं !!
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