यह तडबंदी अलाउद्दीन खिलजी के समय में विधवा विवाह के प्रश्न को लेकर बनी , इसपर अधिक विवाद नहीं है , किन्तु कालांतर में इस ऊंच नीच समझी जानेवाली तडबंदी का असली कारण क्या था और ऊंच नीच की भावना फर्जी थी या नहीं , यह प्रयन खत्री समाज में परम विवाद का विषय बना , यह अनुवर्ती परिस्थितियों से जाहिर है। ऐसा भी नहीं है कि ऊंच नीच की यह भावना घरों की ऐसी मर्यादा स्थापित होने के साथ ही स्थापित कर दी गयी थी और इसके पीछे समाज के उस समय के बुजुर्गों का ऐसा कोई इरादा था , बल्कि वास्तविकता यह है कि कुछ परिवारों को ऊंचा और कुछ को नीचा समझने की यह भावना बहुत बाद में धीरे धीरे पैदा हुई , जिसका कोई ठोस आधार नहीं था। इसी से पुन: कालांतर में यह भावना समाप्त हो गयी , इसके अनेक कारण थे।
वास्तव में जिन लोगों को बादशाह अलाउद्दीन खिलजी के खत्री विधवाओं का पुनर्विवाह प्रचलित कराने के शाही फरमान की खबर देर से पहुंची और इसलिए वह घराने महज दूरी की वजह से देर से दिल्ली पहुंचे , उनके लिए बिरादरी द्वारा ऐसा फतवा लगाना कि वह औरों से नीचा समझा समझा जाए , जैसा कि बाद में व्यवहार में आया , तर्क संगत नहीं हो सकता। जो लोग दूर दराज के इलाकों से सफर करके दावे के वास्ते ढाई घरों की सहायता करने आए और उनकी ही मदद से ढाई घरों को अपनी तजवीज में कामयाबी मिली, उन जैसे अपने ही मददगारों को अपने से नीचे दर्जे का कोई ख्याल ही नहीं कर सकता। ऐसा भी नहीं था कि दिल्ली वाले ढाई घर खत्री बिरादरी में कोई महाराजाधिराज रहे हों और बाकी घरों के लोग उनके अधीन कार्य करनेवाले कोई छोटे छोटे रजवाडे थे , जो अपनी बिरादरी के राजा महाराजा का हुकुम पाकर फौरन अधीनस्थ राजाओं की तरह उनकी मदद के लिए हाजिर हो गए , बल्कि वासतविक स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत परिस्थिति प्रतीत होती है और ऐसा लगता है कि उस समय ढाई घर , चार घर और बारह घर के कुछ बुजुर्ग उस समय की खत्री पंचायत में अवश्य मौजूद थे, जिन्होने इस मामले में बडी कोशिश और मदद की हो । उन्हे उस वक्त की पंचायत में कुल बिरादरी की तरफ से सम्मान देने या खिताब देकर सम्मानित किया गया हो , लेकिन उन खिताबों को देने की उनकी मंशा हरगिज नहीं हो सकती कि खिताब पाने वाले लोग या उनकी संतान अपने को ऊंचा समझकर दूसरों के साथ नीचा वर्ण जैसे व्यवहार करें, जैसा कि बाद में हुआ।
इस समय के पूर्व भी सूर्यवंशी और चंद्रवंशी फिरके खत्री समाज में विद्यमान थे और उस समय दोनो वंशों में शादी विवाह का होना यह प्रमाणित करता है कि उस समय ऊंच नीच की कोई भावना समाज में नहीं थी। उस समय समाज के बुजुर्गो को देश सेवा या समाज सेवा के लिए किए गए सराहनीय कार्यो के लिए सम्मानित तथा निकृष्ट कार्य करने वालों के लिए दंड दिया जाता था, जिससे लोगों का अच्छे काम करने का उत्साह बनता था और समाज की बुराइयां समाप्त होती थी। यह व्यवस्था चरित्र बल को ऊंचा उठाने और सत्य धर्म का पालन कराने की भावना से प्ररित थी , अत: इससे किसी में ऊंच नीच की भावना नहीं व्यापती थी , बल्कि अधिक सम्मान पाने का अवसर सुद्ढ होता था। ढाई घर , चार घर आदि की मर्यादा बांधने का उद्देश्य खत्री समाज की प्रगति , एकता और नींव को सुदृढ करने का था , जिसका कालांतर में बुरा अर्थ हो गया। खत्री समाज के जिन लोगों को इन पदकों से सम्मानित किया गया , उनकी संताने इसे पैतृक अधिकार समझकर अपने को दूसरों से ऊंचा और दूसरों को अपने से निम्न कोटि का सिद्ध कर प्राचीन चातुर्वण्य व्यवस्था के बिगडे रूप के समान ही व्यवहार करने लगी, जो इस मर्यादा स्थापन के मूल उद्देश्य के बिल्कुल विपरीत था।
लेखक .. खत्री सीता राम टंडन जी
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4 टिप्पणियां:
Rochak jankari ke liye aabhar Sangeeta ji..
वसंत पंचमी की शुभकामनायें
जय हिंद...
जानकारी भरपूर लेख है। इससे पहले भी कई लेख पढ़े लेकिन किसी कारणवश टिप्पणी नहीं दे सकता। आपका पूरा ब्लॉग़ सराहनीय है।
संगीता जी प्रणाम
आप हमारी जानकारी मे लगातार वृद्धि कर रही है।
आपको बसंत पंचमी की शुभकामनाएं
आपको और आपके परिवार को वसंत पंचमी और सरस्वती पूजन की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत बढ़िया जानकारी मिली आपके पोस्ट के दौरान!
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