शूद्र कौन थे
प्रारम्भ में वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर थी, पर धीरे-धीरे यह व्यवस्था जन्म आधारित होने लगी । पहले वर्ण के लोग विद्या , दूसरे वर्ण के लोग शक्ति और तीसरे वर्ण के लोग पैसों के बल पर अपना महत्व बनाए रखने में सक्षम हुए , पर चौथे वर्ण अर्थात् शूद्र की दुर्दशा प्रारम्भ हो गयी। अहम्, दुराग्रह और भेदभाव की आग भयावह रूप धरने लगी। लेकिन इसके बावजूद यह निश्चित है कि प्राचीन सामाजिक विभाजन ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों और शूद्रों में था जिसका अन्तर्निहित उद्देश्य सामाजिक संगठन, समृद्धि, सुव्यवस्था को बनाये रखना था। समाज के हर वर्ग का अलग अलग महत्व था और एक वर्ग के बिना दूसरों का काम बिल्कुल नहीं चल पाता था।
यदि आपके घर में ही दो बच्चे हों और उनमें से एक गणित , विज्ञान या भाषा की गहरी समझ रखता हो तो आवश्यक नहीं कि दूसरा भी रखे ही। जिसका दिमाग तेज होगा , वह हर विषय के रहस्य को अपेक्षाकृत कम समय में समझ लेगा और बाकी समय का उपयोग उनके प्रयोग में करेगा , ताकि नयी नयी चीजें ढूंढी जा सके। पर जिसका दिमाग तेज नहीं होगा , उसका मन दिन भर अपने कार्य को पूरा करने के लिए मेहनत करता रहेगा। इसी मन की तल्लीनता के कारण उसे कला क्षेत्र में लगाया जा सकता है , जबकि दिमाग के तेज लोगों को कला क्षेत्र में भेजने से वे वहां शार्टकट ढूंढना चाहेंगे , जिससे कला में जो निखार आना चाहिए , वह नहीं आ पाएगा। यही सोंचते हुए हमारे ऋषि मुनियों ने कम बुद्धि वाले लोगों को कला क्षेत्र में लगाया और उसका परिणाम आप आज भी भारत की प्राचीन कलाओं में देख सकते हैं।
मैने अपने एक आलेखमें कहा है कि हर वर्ण में पुन: चारो वर्ण के लोग थे। शूद्रों की मेहनत पर ही पूरे समाज की सफलता आधारित होती है। शूद्रों में भी कुछ लोग ब्राह्मण थे , जिन्होने कला के हर क्षेत्र में रिसर्च किए और अपने बंधुओं को तरह तरह की सोंच दी। उस समय एक कलाकार को बहुत महत्व दिया जाता था , इसलिए वे संतुष्ट होते थे और काम में दिलचस्पी रखते थे। पर कालांतर में कला का महत्व निरंतर कम होने लगा , जिसके कारण कलाकारों को कम पैसे दिए जाने लगे। साधन की कमी होने से उनके रहन सहन में तेजी से गिरावट आने लगी।
रहन सहन की गिरावट उनके स्तर को कम करती गयी , साथ ही अपनी आवश्यक आवश्यकताओं के पूरी न होने से कला से उनका कोई जुडाव नहीं रह गया। विदेशी आक्रमणों से वे और बुरी तरह प्रभावित हुए। उनका यह कहकर शोषण किया जाने लगा कि उनका जन्म ब्राह्मणों , क्षत्रियों और वैश्यों की सेवा के लिए हुआ है। पर मुझे ऐसी बात कहीं नहीं दिखाई देती है , कल जिन कार्यों को करने के कारण वे शूद्र कहलाते थे , आज उन्हीं कार्यों से वे कलाकार कहे जा सकते हैं। यदि सेवा का कार्य बुरा होता है तो डॉक्टर, नर्स, ब्यूटिशियन, शिक्षक , सबके कार्य को सेवा ही क्यों कहा जाता है।