बुधवार, 25 अगस्त 2010

हमारे मान्‍य देवी देवता ... भाग 2 ... श्री लक्ष्‍मी नारायण टंडन जी

ब्रह्मा , विष्‍णु , महेश के अतिरिक्‍त वैदिक युग के देवताओं का पूजन भी हमारे यहां होता है ...
1,  इंद्र या वरूण .... ये जल के देवता हैं , समुद्र के मालिक हैं , बिजली, बादल और वर्षा के भी । सत्‍य है कि उनकी पूजा विष्‍णु और शिव की भांति प्रचलित नहीं है , किंतु विवाहादि शुभ कार्यों में इंद्र आदि देवों की पूजा के निमित्‍त वेद मंत्रो का उच्‍चारण होता है।

2, अग्निदेव ... ये भी वैदिक देवता हैं , शुभकार्यों तथा संस्‍कारों के समय अग्निदेव की भी पूजा होती है। यज्ञ और हवन तो हमारे यहां प्रत्‍येक शुभ कार्यों में होना अनिवार्य हैं।

वास्‍तव में प्राचीन समय में प्रकृति के समस्‍त अवयवों के प्रति कृतज्ञता तथा श्रद्धा का भाव प्रकट करने के लिए हिंदुओं ने उन्‍हें देव रूप दिया। यही कारण है कि वायु ,सूर्य और चंद्रमा भी हमारे यहां देवता हैं।
शक्ति के भक्‍त दुर्गा , काली आदि विभिन्‍न नामों से शक्ति की पूजा करते हैं।
राम तथा कृष्‍ण के मंदिरों की तो भरमार प्रत्‍येक नगर और गांव में मिलती हैं।
हनुमान जी की पूजा भी हिंदुओं में व्‍यापक है। उनके मंदिर भी प्राय: हर कहीं मिलेंगे। वे शक्ति , ब्रह्मचर्य , सेवाभाव और वीरता के प्रतीक हैं। उन्‍हें वायु पुत्र कहा जाता है। प्रत्‍येक अखाडे में जहां पहलवान कुश्‍ती लडते हैं तथा प्रत्‍येक कूप के निकट उनका मंदिर तथा आला होता है। वे भय और संकट में हमारी रक्षा करनेवाले माने जाते हैं।
 गणेश जी भी हमारे यहां विघ्‍न हरण , मुद मंगलदाता , ज्ञान तथा विद्यादायक , तथा पापविनाशक के रूप में पूजे जाते हैं। कोई भी शुभ कार्य बिना उनकी पूजा के संपन्‍न नहीं हो सकता। बच्‍चों के पढाई आरंभ करने पर उनकी तख्‍ती पुजायी जाती है और उसमें श्री गणेशाय नम: लिखा जाता है। यही नहीं , प्रत्‍येक नए खाते या नए घर मेंगणेश याद किए जाते हैं। कवि , वेदांती विद्वान सभी अपने कार्य की सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए गणेश वंदना करते हैं। राजा और व्‍यापारी तो उनकी पूजा करते ही हैं। प्रत्‍येक मास की शुक्‍ल पक्ष की गणेश चौथ को स्‍ित्रयां व्रत रखती है। माघ मास की चौथ तो अत्‍यंत शुभ मानी जाती है। उस दिन संकटतेवता के नाम से उनकी पूजा की जाती है। उनके चार हाथों में गदा ,चक्र , पुस्‍तक या मोदक होता है। मोदक उन्‍हें बहुत प्रिय है। उनका मस्‍तक हाथी का है और चूहा उनका वाहन है।
कहीं कहीं भैरव या भैरों जी की पूजा भी होती है। कुत्‍ता उनका साथी है। भैरव भक्‍त मांस मदिरा से परहेज नहीं रखते।
इसके अलावे अनेक स्‍थानों पर सप्‍तर्षियों की भी पूजा होती है।  नवग्रहों की पूजा की चर्चा अगले अंक में की जाएगी। जगह जगह पर अन्‍य स्‍थानीय देवी देवताओं की भी पूजा होती है।

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