रविवार, 3 जनवरी 2010

सांप्रदायिक सौहार्द के अग्रदूत थे संत कवि बाबा मलूक दास !!

हिन्‍दी के संत कवियों की परंपरा में कदाचित् अंतिम थे बाबा मलूक दास , जिनका जन्‍म 1574 (वैशाख वदी 5 संवत 1631) कडा , इलाहाबाद , अब कौशाम्‍बी जनपद में कक्‍कड खत्री परिवार में हुआ था। मलूक दास गृहस्‍थ थे , फिर भी उन्‍होने उच्‍च संत जीवन व्‍यतीत किया। सांप्रदायिक सौहार्द के वे अग्रदूत थे। इसलिए हिन्‍दू और मुसलमान दोनो इनके शिष्‍य थे .. भारत से लेकर मकका तक। धार्मिक आडंबरों के आलोचक संत मलूकदास उद्दांत मानवीय गुणों के पोषक थे और इन्‍हीं गुणों को लौकिक और पारलौकिक जीवन की सफलता का आधार मानते थे। दया, धर्म , सेवा , परोपकार यही उनके जीवन के आदर्श थे। उनकी आत्‍मा परमात्‍मा में लीन रहती थी। राम और रहीम में उनकी निष्‍ठा इतनी प्रबल थी कि उन्‍होने यहां तक कह डाला ... 'मेरी चिंता हरि करे , मैं पायो विश्राम'

ऊंचा कौन है ? अहंकारी , अभिमानी या विनम्र ?
वे कहते हैं ....
'दया धर्म हिरदै बसै , बोलै अमृत बैन।
तेई ऊंचे जानिए , जिनके नीचे नैन।।'

मलूकदास के जीवन का ध्‍येय था ....
'जे दुखिया संसार में , खेवौ तिनका हुक्‍ख।
दलिद्दर सौंपि मलूक को, लोगन दीजै सुक्‍ख।।'

ऐसे महान विचारक संत पर हमें गर्व है। खत्री सभा , प्रयाग ने 'मलूक जयंति' मनाना आरंभ किया है। तमाम लोगों को उनके जीवनादर्शों से प्रेरणा लेनी चाहिए।

लेखक .. डॉ संत कुमार टंडन रसिक जी



8 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

'दया धर्म हिरदै बसै , बोलै अमृत बैन।
तेई ऊंचे जानिए , जिनके नीचे नैन।।'
बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने मूलक चंद जी के बारे

Udan Tashtari ने कहा…

आपका आभार इस जानकारी के लिए.



’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’

-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.

नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'

कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

-सादर,
समीर लाल ’समीर’

Arvind Mishra ने कहा…

सुन्दर जानकारी -आभार
अजगर करे न चाकरी ,पक्षी करे न काम
दास मलूका कह गए सबके दाता राम
अद्भुत आशावादी दर्शन छुपा है इन लाईनों में

अनुनाद सिंह ने कहा…

लेकिन ४०० ईसा पूर्व मुसलमान कहाँ हुआ करते थे?

Dr. Mohanlal Gupta ने कहा…

दास मलूका के बारे में यह बहुत कम किंतु अच्छी जानकारी है। इस देश को दास मलूकाओं की बहुत आवश्यकता है किंतु दु:ख की बात है कि जिस देश में श्रीकृष्ण से लेकर, नारद, मनु, याज्ञवलक्य, सूर, तुलसी, रहीम और मीरां जैसे उपदेशक हुए, वह देश बहराें का देश है। इस देश को आज किसी एक संत के भी उपदेश याद नहीं हैं। याद है तो केवल पैसा, भूख और लालसा। दिखावा, प्रदर्शन और भौण्डापन। आप मलूकदासजी के जीवन दर्शन और उनके उपदेशों पर और भी अच्छी जानकारी प्रदान करें, इससे हम जैसे उत्सुक पाठकों का कल्याण होगा। नववर्ष पर मेरा नमन् स्वीकार करें।– डॉ. मोहनलाल गुप्ता, जोधपुर

Dr. Mohanlal Gupta ने कहा…

दास मलूका के बारे में यह बहुत कम किंतु अच्छी जानकारी है। इस देश को दास मलूकाओं की बहुत आवश्यकता है किंतु दु:ख की बात है कि जिस देश में श्रीकृष्ण से लेकर, नारद, मनु, याज्ञवलक्य, सूर, तुलसी, रहीम और मीरां जैसे उपदेशक हुए, वह देश बहरों का देश है। इस देश को आज किसी एक संत के भी उपदेश याद नहीं हैं। याद है तो केवल पैसा, भूख और लालसा। दिखावा, प्रदर्शन और भौण्डापन। आप मलूकदासजी के जीवन दर्शन और उनके उपदेशों पर और भी अच्छी जानकारी प्रदान करें, इससे हम जैसे उत्सुक पाठकों का कल्याण होगा। नववर्ष पर मेरा नमन् स्वीकार करें।– डॉ. मोहनलाल गुप्ता, जोधपुर

संगीता पुरी ने कहा…

अनुनाद सिंह जी,
त्रुटि पर ध्‍यानाकर्षित करने के लिए धन्‍यवाद .. मलूक दास जी का जन्म: 1574 (वैशाख वदी 5 संवत 1631) निधन: 1682 में बताया जाता है .. इसलिए मूल लेख में सुधार कर रही हूं !!

संगीता पुरी ने कहा…

मोहन लाल गुप्‍ता जी ,
उनके बारे में जानकारी देने वाले निम्‍न पन्‍ने भी इंटरनेट में हैं .....
अमर उजाला का पन्‍ना
कविता कोष का पन्‍ना

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