इस ब्लाग पर मैं अपने खत्री समाज के इतिहास , रस्म और रीति रिवाज के साथ ही साथ इसकी वर्तमान स्थिति , समस्याएं और उसके समाधान के लिए विमर्श के ध्येय से प्रस्तुत हूं। कुछ ब्लागर भाइयों को यह महसूस हो सकता है कि जाति के आधार पर लिखे गए इस ब्लाग का राष्ट्रीय हित में कोई महत्व नहीं होगा , पर वास्तव में ऐसी बात नहीं होगी। एक मां के द्वारा बेटे का पालन पोषण एक स्वार्थ है , पर यदि वह उचित ढंग से होता है तो देश का एक अच्छा नागरिक अवश्य तैयार हो जाता है। इसी प्रकार उचित ढंग से हजार मांएं अपने बच्चों का लालन पालन करें , तो कल देश को हजारों अच्छे नागरिक अवश्य मिल जाते हैं।
अपने परिवार के बाद हमें किसी की जरूरत पडती है तो वह जाति आधारित हमारा समाज ही है। जाति पर आधारित हमारी सारी रस्में हैं , हमारे कर्तब्य हैं और हमारे विचार भी। चाहे हम जिस क्षेत्र में भी बस जाएं और उस क्षेत्र से समायोजन करने के लिए अपनी कायापलट ही क्यूं न कर दें , पर हमारी कुछ परंपराओं के अतिरिक्त कुछ ऐसे गुण तक होते हैं , जो पीढी दर पीढी हमारे अंदर मौजूद होते हैं। पाकिस्तान में रहने वाले कुछ खत्री भाई मस्जिद में भी पूजा करने लगे हैं , बंगाल में रहनेवाले खत्री भाई बंगला भाषा बोलने लगे हैं , दरभंगा में रहनेवाले मैथिली भी , पर ये जहां भी रहें , इन्होने अपने रस्मों , रिवाजों , परंपराओं के साथ ही साथ पूर्वजों की मर्यादाओं का सम्मान किया और समाज में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाए रखा।
आधुनिक युग में संचार माध्यमों के विस्तार के फलस्वरूप एक ऐसी क्रांति आयी है , जिसने हमें परिवार , समाज गांव , राज्य और देश के स्तर से उपर विश्व स्तर पर खडा कर दिया है और इस प्रकार इस युग में 'वसुधैव कुटुम्बकम' की कल्पना साकार होने लगी है। इसके बावजूद इतिहास की चर्चा करने के क्रम में जाति का आधार रखना महत्वपूर्ण ही नहीं , न्यायपूर्ण भी है, क्यूंकि भारतवर्ष में जाति की उत्पत्ति किसी दबाबपूर्ण माहौल में नहीं हुई थी। समाज में श्रमविभाजन के तहत् विभिन्न प्रकार के कार्यां में दक्ष लोगों के समक्ष उनके मनोनुकूल कार्यों को ही किए जाने का बंटवारा किया गया था। कालांतर में वही कार्य पीढी दर पीढी चलते रहें और शादी विवाह जैसे संबंध भी अपने अपने वर्गों में ही किए जाने की परंपरा चलती गयी। इस तरह ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र वर्ग के अंतर्गत अनेक जातियों का जन्म हुआ।
क्षत्रिय वर्ग का गठन राज्य , राजा और सरकार की सुरक्षा के लिए किया गया था। लोगों का मानना है कि क्षत्री शब्द का अपभ्रंश ही खत्री है। कुछ लोगों की मान्यता है कि उच्चारण के अतिरिक्त खत्रियों और क्षत्रियों में कोई अंतर नहीं , जबकि कुछ लोग मानते आ रहे हैं कि युद्ध में मारे गए विधवा पत्नियों के क्रंदन को देखते हुए कुछ राजाओं ने सेना में जिन क्षत्रियों के प्रवेश को वर्जित कर दिया था , क्यूंकि उनमें विधवा विवाह की अनुमति नहीं थी , वे कालांतर में खुद को खत्री कहने लगे । इस कारण धीरे धीरे व्यवसाय क्षेत्र में ही खत्रियों ने अपनी पहचान बनायी। कालांतर में पढाई लिखाई के बाद अन्य कोई भी क्षेत्र इनसे अछूते नहीं रहे।इस ब्लाग में आप विस्तार से खत्री समाज के बारे में जानकारी प्राप्त कर पाएंगे।
(लेखिका .. संगीता पुरी)