गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

अरोड वंश का इतिहास ( चतुर्थ भाग ).... अरोड वंश में पूज्‍य श्री अमर लाल (श्री झूले लाल)


सिंध के नसरपुर शहर में अरोडवंशी ठक्‍कर भक्‍त रतन राय के घर संवत् 1007 चैत्र सूदी दूज शुक्रवार प्रात: 4 बजे श्री वरूण दरियाब देव(श्री झूले लाल)साकार रूप में प्रकट हुए। उस समय सिंध में मराव नाम का मुसलमान बादशाह का राज्‍य था। सिंध की राजधानी तब उटा नगर थी। बादशाह को जब इस तेजस्‍वी बच्‍चे के जन्‍म की जानकारी मिली , तो उसने अपने वजीर अह्या को नसरपुर भेजा। वजीर ने भक्‍त ठक्‍कर राय के घर नवजात बालक को पालने में देखा। कहा जाता है कि श्री अमर लाल जी ने पालने में ही जो चमत्‍कार दिखाए , उससे वह नतमस्‍तक हो गया। अह्या की प्रार्थना पर ही श्री अमर लाल ने नीले घोडे पर युवक के रूप में जाकर बादशाह का अहंकार भी दूर किया। आज भी सिंध में पूज्‍य अमरलाल जी के नाम से उडेरा लाल ग्राम में सुुंदर विशाल मंदिर और क्षमायाचक मराव बादशाह के द्वारा बनवाया गया किला मौजूद है।

सावन भादो मास में अरोडवंशी पूज्‍य अमर लाल दरियाब देव जी को अपना इष्‍ट मानते हुए वरूण दरियाब देव का जल के किनारे पूजन भी करते हैं। राजस्‍थान निवासी अरोडवंशी भिति भादों बदी सात को उनका पूजन करते हैं। सिंधी भाई चैत्र सुदी दूज को सारे भारतवर्ष में पूज्‍य झूलेलाल का उत्‍सव दो तीन दिनो तक बडी धूमधाम से मनाते हैं , जिसे चेटी चंड कहा जाता है।

(अरोड वेश के इतिहास की जानकारी प्रदान करने वाली ये चारो कडियां डॉ ओम प्रकाश छाबडा जी द्वारा लिखित अरोडवंश इतिहास में उपलब्‍ध जानकारी पर आधारित है)

(खत्री हितैषी के स्‍वर्ण जयंती विशेषांक से साभार)







3 टिप्‍पणियां:

आपकी स्‍नेहभरी टिप्‍पणी के लिए आभारी हूं !!