रविवार, 21 मार्च 2010

देव स्‍थान या ठाकुरद्वारा हिंदुओं के घर में आवश्‍यक है !!

सिर्फ खत्रियों में ही नहीं , प्रत्‍येक हिंदू के घर में एक गृह देवता या देवी आवश्‍यक हैं। प्राय: प्रत्‍येक घर में एक कमरा , खिडकी या स्‍थान ऐसा होता है , जो देवस्‍थान या ठाकुरद्वारा कहलाता है। प्राय: संध्‍या , गायत्री या पूजन वहीं पर किया जाता है। किंतु यह आवश्‍यक नहीं कि पूजा उसी स्‍थान पर की जाए। पूजा या हवन घर के किसी भी स्‍वच्‍छ या पवित्र स्‍थान पर किया जा सकता है।ठाकुरद्वारे में भगवान राम , राधा कृष्‍ण तथा शालिग्राम आदि की मूर्तियां सिंहासन पर होती हैं, जिनको नित्‍य स्‍नान कराया जाता है। उनकी पुष्‍पों और चुदन से पूजा होती हें और भोग भी लगाया जाता है। घरों में पूजा करने के अतिरिक्‍त मोहल्‍ले में स्थित सार्वजनिक मंदिरों में भी हिंदू प्रात: और सायं दर्शन करने जाते हैं। इसके अतिरिक्‍त अपने स्‍थानों या वंश की परंपरा तथा रीति रिवाजों के अनुसार विशेष अवसर पर विभिन्‍न मंदिरों या विभिन्‍न स्‍थानों पर पूजा या धार्मिक कृत्‍य पूरा करने जाते हैं।

उदाहरणार्थ बच्‍चा पैदा होने के कुछ मास पश्‍चात् पहले माता उसे काली जी या हनुमान जी के मंदिर ले जाती हैं। इसके पूर्व उसे कोई बाजार नहीं ले जा सकता। विवाहोपरांत घर तथा वधू को पहले काली जी के मंदिर में दर्शन करने चाहिए। चेचक ठीक होने के बाद भी पहले कालीजी के दर्शन करना होता है , उसके बाद ही अपना सामान्‍य दैनिक जीवन व्‍यतीत कर सकता है। कपूर विशेषतया आगरे के देवता बाग आगरे में बच्‍चें के शुभ संस्‍कारों के लिए जाते हैं। इटावा के खन्‍ना कानपुर जिले के शिवराजपुर , बिसवां के सेठ कन्‍नौज , दिल्‍ली के लाहौरिया खन्‍ना मुल्‍तान के निकट दीपालपुर को , फरीदाबाद के कुछ कक्‍कड जिला मेरठ के गढमुक्‍तेश्‍वर को तथा कुछ पुरानी दिल्‍ली के लाल किले को जाते हैं। इसका कारण यह है कि जिन वंशों के पूर्वज पहले जिन स्‍थानों पर रहते थे , उन स्‍थानों के प्रति ममत्‍व और श्रद्धा का भाव आज भी उनके वंशजों के हृदय में है। जिन देवी देवता को उनके पूर्वज मानते थे , उनके वंशज आज भी उन्‍हें मानते हैं।

इसके अतिरिक्‍त हिंदुओं के कुछ तीर्थस्‍थान भी अत्‍यंत पवित्र समझे जाते हैं। जीवन में उनकी यात्रा करना एक कर्तब्‍य समझा जाता है। कम स कम प्रत्‍येक हिंदू के हृदय में प्रबल इच्‍छा होती है कि वह इन तीर्थस्‍थानों में जाकर अपना परलोक सुधारे। कुछ प्रमुख तीर्थस्‍थानों की चर्चा अगली कडी में की जाएगी।

(खत्री हितैषी के स्‍वर्ण जयंती विशेषांक से साभार)

2 टिप्‍पणियां:

  1. आभार इस आलेख का!


    हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

    लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

    अनेक शुभकामनाएँ.

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