21 वीं सदी में हमारा न सिर्फ कंप्यूटर युग में प्रवेश हुआ है , वरन् हमने अनेक उपलब्धियां अिर्जत की हैं , उसमें से एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है आयु का बढना। प्रति व्यक्ति औसत आयु बढ रही है। इसे आधुनिक विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र का चमत्कार कहा जा सकता है। पर आयु बढने से वृद्धों की समस्याएं भी बढती जा रही हैं। आवास , सुरक्षा , देखरेख की समस्या के साथ ही साथ जीवन के अंतिम प्रहर में सेवा , ममता और चिकित्सा की समस्या से हमारे बूढे बुरी तरह जूझ रहे हैं। भूमंडलीकरण के इस दौर में अंधाधुध रूपए कमाने की दौड में हमारा समाज अपने स्वयं और परिवार के भले तक ही सीमित रह गया है।
स्नेहपूर्ण आत्मीय संबंध आज बनावटी हो गए हें और जीवन में यौवन, मदिरा, भोग और दिखावे का महत्व बढ गया है। पद लोलुप लोगों का बोलबाला हर जगह बना हुआ है। आधुनिक पूंजीवाद और भोगवादी संस्कृति बढती जा रही है, झूठ , फरेब , मक्कारी , दुराचारी बाह्याडंबर पूरे समाज में बढता जा रहा है। परंपरागत वेशभूषा , खान पान को छोडकर पाश्चात्य , चायनीज , मांस मदिरा, जीन्स शर्ट आदि को बोलबाला बढ रहा है। सडकों पर शराब के नशे में नाचना हमारी संस्कृति है ? बूढे माता पिता , अशक्त परिवार जनों की देख रेख न करना हमारी संस्कृति है ? पिता का उत्तराधिकारी होने के कारण माता पिता की सेवा करना बहू पुत्र का कर्तब्य है। विदेशीपन आधुनिकता, के मोह में बाहरी दिखावे के चलते हमारे नवयुवक युवतियां पाश्चात्य ही हृदयविहिन संवेदनहीन संस्कृति को अपनाने में लगे हैं, वह हमारे समाज के लिए शुभ संकेत नहीं है। समाज के युवक युवतियां अपनी देख रेख, सेवा , उचित सम्मान , त्याग , बलिदान , सत्य , अहिंसा , तपस्या पर आधारित सांस्कृतिक धरोहरों का अनुसरण करें एवं समाज और राष्ट्र को नवगति प्रदान करें।
लेखक ... पुनीत टंडन
पाश्चात्य की संस्कृति संवेदन हीन नही है। यह हमारे भीतर की ही कमी है कि हम स्वार्थी होते जा रहे हैं।
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