पहले पिताजी डैडी बन गए , फिर हो गए डैड,
जीते जी मृतक बनाकर , पुत्र हो रहा ग्लैड।
माताजी का हाल हुआ, और दो कदम आगे,
जीते जी ममी बन गयी, अब क्या होगा आगे।
कभी हाय करके चिल्लाता , पीडा से इंसान,
आज मिलने पे हाय करना सभ्यता का निशान।
हाथ जोडकर अभिवादन करना , पिछडेपन की निशानी,
भारत में भारत की ही संस्कृति , हो गयी है बेमानी।
हिन्दी भाषा फिल्मों से , जो जनता में शोहरत पाते,
साक्षात्कार के समय वो गिटपिट करते नहीं अघाते।
कहते हैं यू एन ओ मे , हिन्दी को दिलाएंगे सममान,
भले हिन्द में ही हिन्दी का होता रहा अपमान।
प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस मनाकर ही संतुष्ट हो जाते,
क्यूं नहीं , अंग्रेजी का , बहिष्कार दिवस मनाते।
अंग्रेजी बहिष्कार दिवस , फिर सप्ताह मास मनाएं,
अंग्रेजी को बहू और हिन्दी को सास बनाएं।
कहे 'चिंतक' यह अभियान , जबतक नहीं चलेगा,
मातृभाषा को राजभाषा का दर्जा नहीं मिलेगा।।
(लेखक .. खत्री महेश नारायन टंडन 'चिंतक')
पहले पिताजी डैडी बन गए , फिर हो गए डैड,
जवाब देंहटाएंजीते जी मृतक बनाकर , पुत्र हो रहा ग्लैड।
माताजी का हाल हुआ, और दो कदम आगे,
जीते जी ममी बन गयी, अब क्या होगा आगे।
बहुत सुंदर लगी आप की यह कविता, आज का सच लिखा है कवि ने.
धन्यवाद
बहुत बढ़िया व सामयिक रचना प्रेषित की है।बधाई।
जवाब देंहटाएंएकदम सच्ची बात की है आपने ..".बिना राष्ट्र भाषा के राष्ट्र गूंगा होता है " जब तक हिंदी को ये सम्मान नहीं मिलेगा कोई अर्थ नहीं किसी भी दिवस का
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