किसी गरीब के सामने गर्वभरी वाणी बोलना , उसके साथ रूखा और कठोर व्यवहार करना भगवान का अपराध है , क्यूंकि उस गरीब के रूप में भगवान ही तुम्हारे सामने प्रकट हैं। अतएव सभी के साथ नम्र होकर अपनी मधंर वाणी बोलो, अपनी विनय विनम्र पीयूषवर्षिणी वाणी तथा व्यवहार के द्वारा सर्वत्र शीतल मधुर सुधा की धारा बहा दो, दुख की विषज्वाला से जलते हुए हृदयों में सुधा डालकर उन्हें विषशून्य , शीतल ,शांत और मधुर बना दो और यह सब केवल भगवान की सेवा के लिए करो, उन्हीं को शक्ति , प्रेरणा और वस्तु मानकर। तुम्हारी निरभिमान त्यागमयी सेवा से भगवान बहुत प्रसन्न होंगे और उनकी प्रसन्नता जीवन को सफल बना देगी।
बदला लेने की भावना कभी भी मन में मत आने दो। अपना बुरा करने पर , गाली देने पर , निंदा करने पर , मारने पर भी किसी का कभी न बुरा करो , न बुरा चाहो , न बुरा होते देखकर प्रसन्न होओ , उसको ह्दय से क्षमा कर दो। जैसे स्वयं के अपराध पर व्यक्ति स्वयं को दंड नहीं दे पाता ... क्षमा चाहता है , ऐसे ही सबमें अपनी आत्मा को समझकर सबको क्षमा कर दो। बदला लेने की भावना बहुत बुरी है , बदला लेने की भावना मन में रखने वाला व्यक्ति इस जीवन में कभी भी शांति , सुख और प्रेम नहीं पाता । वह स्वयं डूबता है और वैरभाव के बुरे परमाणु वायुमंडल में फैलाकर दूसरों का भी अनिष्ट करता है।
दुख मनुष्य के विकास का साधन है , सच्चे मनुष्य का जीवन दुख में ही खिल उठता है , सोने का रंग तपने पर ही निखरता है।
( खत्री हितैषी के स्वर्ण जयंती विशेषांक से साभार )
सार्थक एवं अपनाने योग्य बातें..हमें कभी भी अपने से कमजोर लोगों की हँसी नही उड़ानी चाहिए वैसे दुनिया में कोई कमजोर नही बस समय की बात है...बढ़िया आलेख..बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही जरुरी बातें जो आज हमें याद रखनी चाहिये और पालन भी करना चाहिये
जवाब देंहटाएंBahut hi achhi baate kahi Sangitaji aapane....Aabhar!!
जवाब देंहटाएंhttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
आभार इन सदविचारों के लिए.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर विचार प्रेषित किए हैं।धन्यवाद।
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