शनिवार, 6 नवंबर 2010

दीपावली का वैज्ञानिक महत्व .. भाग 8 .. खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी

दीपावली का वैज्ञानिक महत्व


कार्तिक कृष्‍ण पक्ष की चौथ को पहली करवा चौथ होती है , स्त्रियां पति के लिए व्रत रखती हैं , सुहाल मंसे जाते हैं , चंद्रमा को देखकर नए मिट्टी के बर्तन से उसे जल देकर तब भोजन किया जाता है। पूजा के बाद एक दूसरे से बरतन बदला जाता है। चार दिनों बाद अहोई अष्‍टमी होती है , इसमें व्रत रखा जाता है , यह लडकों के लिए किया जाता है। काली जी की पूजा होती है , चंद्रमा या तारे को देखकर भोजन किया जाता है करर्तिक कृष्‍ण द्वादशी को गोधूलि बेला में गायों की पूजा होती है , दिनभर माता निराहार व्रत रखती हैं , कोदो की चावल , चने की दाल , या काकुन के चावल , बेसन की अठवाई खायी जाती है। गेहूं और धान के अतिरिक्‍त कुछ भी खाया जा सकता है। बहुत लोग कार्तिक , माघ , बैशाख्‍ा और श्रावण चारो ही मासो में पूजा करते हैं।

कार्तिक कृष्‍ण पक्ष की चतुदर्शी को चौदस या अंजाझारा होता है। आज शाम को  घर के दरवाजे पर दीया जलाया जाता है। आज महावीर जन्‍म दिन भी है। प्रात:काल अमावस्‍या को बडी दीपावली होती है , रात को लक्ष्‍मी गणेश की पूजा , खील बताशे और पकवानों से पुरोहित कराते और सबको टीका काढते हैं। घर घर दीए जलाए जाते हैं , धूमधाम से मेला होता है , रातभर लोग जुआ भी खेलते हैं। आज से शरद ऋतु का आगमन माना जाता है , गोवर्द्धन में भी बडा मेला होता है। कार्तिक कृष्‍ण त्रयोदशी से शुक्‍ला दुईज तक पांच दिन महोत्‍सव का क्रम रहता है , त्रयोदशी , नरक चतुदर्षी , लक्ष्‍मी पूजन तीनों का घनिष्‍ठ संबंध है। त्रयोदशी को यमराज का पूजन होता है। इन तीनों दिनों में वामन भगवान ने राजा बलि की पृथ्‍वी को तीन डगों में नापा था। राजा बलि के वरदान मांगने पर वामन जी ने वर दिया था कि जो मनुष्‍य इन तीनों दिनों में दीपोत्‍सव और महोत्‍सव करेगा , उसे लक्ष्‍मी जी कभी न छोडेंगी।

प्रात: काल अन्‍न कूट या जमघट होता है , लडके दिनभर पतंगे उडाते हैं , आज ठाकुर जी को भोग लगता है , दामाद और कन्‍याएं निमंत्रित की जाती हैं। उसके दूसरे दिन ही भाई दुईज होती है , यह बहिनों का त्‍यौहार है , वे भाई के टीका काढती हैं , मिठाई आदि देती हैं , भाई रूपया , कपडा और उपहार देता है। मथुरा में विश्राम घाट के स्‍नान का बडा महत्‍व है। फिर प्रात: काल मनचिंता होती है , इसमें आटे की मछलियां की पूजा की जाती है। कार्तिक शुक्‍ला अष्‍टमी को गोपाष्‍टमी होती है , इसमें गऊओं की पूजा होती है। फिर तीसरे दिन देवोत्‍थान एकादशी होती है। व्रत कर ऊख से देवता की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि चार मास की निद्रा के बाद देव जगते हैं।

इन चारों महीनों में उत्‍तर प्रदेश या उसके आसपास कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता था , पर पंजाब में यह नहीं माना जाता है। हो सकता है कि वर्षा ऋतु में घर के बाहर और परदेश जाने में लोगों को कठिनाई होती हो , पर पंजाब में इन मासों में वर्षा नहीं होती  , इसलिए वहां निषेध नहीं है। इन चार मास मे देवों के सोने या जगने का यही अभिप्राय था। इस पक्ष की एकादशी के दिन तुलसी विवाहोत्‍सव भी होता है। कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्‍नान का पर्व है। लाखों की संख्‍या में लोग गढमुक्‍तेश्‍वर , बिठुर , कानपुर आदि जगहों में गंगा स्‍नान करते हैं। यदि वहां न जा सके , तो अपने अपने स्‍थानों की नदियों में ही स्‍नान किया जाता है। आज बडा मेला होता है। कार्तिक शुक्‍ल एकादशी से लेकर पूर्णिमार तक का व्रत 'भीष्‍म पंचक' कहलाता है। पांचो दिन घी के दीपक जलते हैं, जप होता है , 108 आहुतियां दी जाती है , इन पांच दिनों में भीष्‍म पितामह ने शर शैय्या पर पांडवों को उपदेश दिया था।



1 टिप्पणी:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

आज भैया दूज है। गोबर्द्धन पूजा का दिन। अन्नकूट भी आज ही है। आजके बाद शादि-विवाह के रिश्ते तय होंगे और लगन शुरू हो जाएगी।

बरसात के बाद धान की फसल तैयार हो चुकी है। किसान के घर लक्ष्मी का आगमन हो चुका है। हमारे सभी त्यौहारों का एक आर्थिक पक्ष भी है।

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