शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

संकष्टी चतुर्थी क्या है .. भाग 6 .. खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी

संकष्टी चतुर्थी क्या है 


भादो महीने के कृष्‍ण पक्ष की तीज को कजली तीज होती है और चौथ को बगुला चौथ या गणेश चौथ। यह भी लडकों का त्‍यौहार है , आज के दिन जौ की पूडी खायी जाती है , और गऊ बछडे की पूजा भी होती है। आज को छींक छक्‍कानी भी कहते हैं , आज समस्‍त हिंदू बालक गुरूओं की चटसाल में जाते हैं , फल और मिठाई आदि से गणेश की पूजा करते हैं तथा ब्राह्मण को कुछ दक्षिणा भी देते हैं। प्रत्‍येक पाठशाला में बच्‍चे खूब आनंद मनाते हैं , दिनभर गाते , बजाते और नाचते कूदते हैं। वैसे तो प्रत्‍येक महीने कृष्‍ण पक्ष की चौथ को गणेश व्रत होता है , पर श्रावण , भाद्रपद और मार्गशीर्ष में इसका खासा महत्‍व है।


प्रात:काल भाई बिन्‍ना या नागपंचमी होती है। यह भाइयों का त्‍यौहार बहनें मनाती हैं , भाइयों के बहनें टीका काढती हैं और भाइयों से रूपए पाती हैं। सांप की पूजा भी भाइयों के कल्‍याण की कामना से की जाती हैं। हरछठ लडकों का त्‍यौहार है , आज ढाक के डाल की पूजा होती है , जिनमें कुशा लगा रहता है। आज तिन्‍नी के चावल खाए जाते हैं , हल द्वारा बोया अन्‍न या गाय का दूध दही नहीं खाया जाता है। दो दिन बाद अष्‍टमी को जन्‍माष्‍टमी होती है , योगेश्‍वर कृष्‍ण का जन्‍म मथुरा में होने का आज ही माना जाता है। यदि इस तिथि की रात्रि को रोहिणी नक्षत्र हो तो कृष्‍ण जयंती होती है। प्रात:काल नंदोत्‍सव होता है , यह त्‍यौहार मंदिरों में विशेषका ब्रज या श्रीनाथद्वारा में बडे समारोह से होता है।फिर बन द्वादशी या गोवत्‍स द्वादशी होती है , यह भी लडकों का त्‍यौहार है , घास की पूजा कर लडकों की जांघ में मिट्टी लगायी जाती है।

शुक्‍ल पक्ष की तीज को कजली तीज होती है , आज शिव पार्वती की पूजा होती है , भादो शुक्‍ला तीज को बेडा तीज या हरतालिका होता है। आज भी पोंजा मनसा जाता है , तीन तीजों में आज अंतिम तीज होती है , खत्रियों के यहां विवाह के पहले वर्ष से ही स्त्रियां हरतालिका व्रत करने लगती है। मेहरा खत्री अपने कुलदेवी सचाई माता की भी आज ही पूजा करते हैं। प्रात: पथरा चौथ होती है। आज चंद्रमा नहीं देखना चाहिए। कहते हैं , भगवान कृष्‍ण को चंद्रमा देखने के कारण ही 'मणि' की चोरी का आरोप लगा था , आज रात को लोग पत्‍थर फेकते हैं , गणेश जी के समस्‍त व्रतों मे यह प्रधान है , श्रावण शुक्‍ल 4 से भादो शुक्‍ल 4 तक एक समय भोजन करके गणेश का व्रत होता है। प्रात: ऋषि पंचमी होती है , आज स्त्रियों का व्रत रहता है , पर पुरूष भी स्त्रियों के साथ व्रत रख सकता है। सप्‍तर्षि कश्‍यप , अत्रि , भारद्वाज , विश्‍वामित्र , गौतम , जमदग्नि , और वशिष्‍ठ सपत्‍नीक पूजे जाते हैं।

तीन दिन बाद राधाष्‍टमी होती है , आज राधा जी का जन्‍मदिन है , आज बुड्ढे बुडिढयों की पूजा होती है और बासी खाना खाया जाता है। महालक्ष्‍मी का तागाबंधन आज मनाया जाता है , तथा व्रत होता है। कच्‍चे सूत के सोलह तागों में  सोलह गांठे लगती हैं। एक दिन पूर्व सप्‍तमी को संतान सप्‍तमी का व्रत होता है।  प्रात:काल नवमी को 'नया' होता है , आज चने की कढी खायी जाती है और पूजा होती है। द्वादशी को गऊ बछडे का त्‍यौहार मनाया जाता है , इसे बामन द्वादशी भी कहते हैं। आज गेहूं न खाकर बेसन खाया जाता है , गऊ बछडों की पूजा होती है और लडकों से गले मिला जाता है।

दो दिन बाद अनंत चौदस होती है , आज गुड भरी रोटी खायी और मनसी जाती है। स्त्रियां अपने पतियों का त्‍यौहार मनाती हैं। आज परब्रह्म परमात्‍मा का पूजन होता है , आज रेशम और स्‍वर्ण के धागों में 14 गांठे लगाकर भगवान की पूजा होती है , एक बार अलोना भोजन करते हैं। पूर्णमासी से पितृपक्ष आरंभ होता है , यह 15 दिन रहता है , स्‍वर्गीय संबंधियों की मृतात्‍मा की शांति के लिए पूजा की जाती है तथा ब्राह्मणों को भोजन और दक्षिणा दी जाती है।






गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

नाग पंचमी का महत्व .. भाग 6 .. खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी


नाग पंचमी का महत्व 


सावन के अमावस्‍या को हरियाली अमावस कहा जाता है। शुक्‍ल पक्ष की तीज को तिजियां होती है , जिसे सुहागन अपने पति के कल्‍याण की कामना में मनाया जाता है। आटे और शक्‍कर के कसार का पोंजा स्त्रियां मनसा करती हैं। कृष्‍ण पक्ष की नागपंचमी को भाई बहनों का तयौहार पउता है , पंचमी को नागपंचमी पडती है। नागों में 12 नाग प्रसिद्ध है .. अनंत , बासुकी , शेष , पद्म , कंबल , कंकोटक , अस्‍वतर , धूतराष्‍ट्र , शंस्‍याल , कालिया , तक्षक , पिंगल , एक एक नाग की एक एक मास पूजा करने का विधान है। आज गुडियों का त्‍यौहार है , यह भाई बहनों का होता है। आज के दिन सांप की भी पूजा होती है और बच्‍चे चौराहों पर लकडियों से कपडे की बनी गुडिया को पीटते हैं।


आज के दिन अखाडों में कुश्तियां भी खेली जाती हैं। पूर्विए खत्रियों में यह त्‍यौहार विशेष तौर पर मनाया जाता है। पंचमी के दिन सायंकाल को ही भोजन करना चाहिए। श्रावण कृष्‍ण दशमी को बाबा लालू जस्‍सू राय महोत्‍सव केवल खन्‍ना खत्रियों द्वारा बाबा जस्‍सू राय की स्‍मृति में मनाया जाता है। श्रावण कृष्‍ण तेरस को 'मूल माता' की पूजा केवल कपूर खत्रियों के घरों में होती है। श्रावण शुक्‍ला तीज की तिजिया या गुडिया तीज होती है , यह केवल स्त्रियों का त्‍यौहार है। विवाहित स्त्रियों के लिए यह बहुत ही महत्‍वपूर्ण त्‍यौहार होता है , पिछले दिन से ही वे पूरे श्रृंगार में रहती हैं , उत्‍तमोत्‍तम भोजन करती हैं , झूला झूलती हैं तथा अपने सौभाग्‍य के लिए गाना गाती हैं। प्रसन्‍नता से ये त्‍यौहार मनाते हुए वे अपनी सासों या बडों को पोजा भेजती हैं। जो नवविवाहिता इन दिनो अपने मायके में होती हैं , उन्‍हें बढिया कपडे , सुंदर गुडिया , चांदी , लकडी आदि के सुंदर खिलौने आदि श्‍वसुरों की ओर से मिलते हैं , ताकि वे आनंद से यह दिन बिताएं। 

श्रावण शुक्‍ला छठ को वाराह अवतार माना जाता है , श्रावण शुक्‍ल चतुदर्शी को श्री चंद्रिका महोत्‍सव केवल कपूरों में होता है , वे अपनी कुलदेवी चंद्रिका की पूजा करते हैं। पूर्णमासी को रक्षाबंधन या सलीनो होती है। आज बहने अपने भाइयों और ब्राह्मण अपने यजमानों के हाथ में राखी बांधते हैं। यह ऐतिहासिक पर्व बडे महत्‍व का है। आज सिमाई से पूजा होती है। घर के दरवाजों के दोनो ओर तथा दीवारों पर राम रोली आदि से लिखते हैं। उसपर भात , सेमई तथा राखी आदि चिपकाकर पूजा करते हैं। कहीं कहीं लोग दाल चावल रोटी आदि पुरखों के नाम पर दान करते हैं। भविष्‍य में भगवान रक्षा करें तथा पूर्वकृत पापों का ह्रास हो जाए , यह आज की पूजा का उद्देश्‍य होता है। कहीं कहीं माखन , दही , दूध , शहद , गोबर , गोमूत्र तथा कुशा आदि से पूजा होती है। सलीनों के दूसरे दिन दामाद और कन्‍याओं को निमंत्रित किया जाता है। अरूंधती समेत सप्‍तर्षियों की पूजा का विधान है। कजरी पूर्णिमा भी आज होती है , नवमी से किया एक सप्‍ताह का व्रत आज पूरा होता है।





सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

रथ यात्रा प्रसिद्ध त्योहार है.. भाग 5 .. खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी

रथ यात्रा प्रसिद्ध त्योहार है


ज्‍येष्‍ठ महीने की पहली अष्‍टमी को तीसरा बसिहुडा होता है। अमावस्‍या को बट सावित्री का त्‍यौहार मनाया जाता है। इसमें स्त्रियां अपने पति के कल्‍याण के लिए बरगद के वृक्ष की पूजा करती है। अमावस्‍या को स्त्रियों द्वारा मनाया जानेवाला एक और त्‍यौहार बेझरा भी है। इस दिन पोंजा मंसती है। गौरी की पूजा तथा अपने पति के कल्‍याण कामना के बाद विवाहित स्त्रियां घी में तले पकवान अपनी सासों या उनके न होने पर पति के अन्‍य संबंधिनियों को देती है। प्रत्‍येक पोंजा के बाद 'रानी पूजे राज को , मैं पूजूं सुहाग को' कहकर पूजा की जाती है। इस दिन के पोजें में कई तरह के अन्‍न होते हैं। शुक्‍ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा होता है। शुक्‍ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी होती है। पुरखों की स्‍मृति में यह व्रत किया जाता है। स्त्रियां तो 24 घंटे का व्रत रखती हैं। ब्राह्मणों को पुरखों के नाम पर दान दिया जाता है।


आषाढ की प्रथम अष्‍टमी को अंतिम बसिहुडा मनाया जाता है। इसे दाह-बैठउनी भी कहते हैं। चैत और बैशाख के बसिहुडे बडे होते हैं , देवी की पूजा होती है। कृष्‍ण पक्ष की दुईज को रथयात्रा होती है। जगन्‍नाथपुरी में आज के दिन बहुत बडा समारोह होता है। आषाढ के अंतिम दिन में व्‍यास पूजा को गुरूओं की पूजा धूमधाम से होती हैं। वैसे तो सभी जगह ये पूजा होती है , पर पंजाब में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।



शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

गंगा के पुनर्जन्म की कहानी .. भाग 4 .. खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी

गंगा के पुनर्जन्म की कहानी


बैशाख माह की पहली अष्‍टमी को दूसरा बसिहुडा होता है , यह देवी का त्‍यौहार है। स्त्रियां लोढे की पूजा करती हैं , बासी खाना खाया जाता है। इसके बाद अमावस्‍या को महुआ दान किया जाता है , शुक्‍ल पक्ष की तीज को अक्षय तीज होती है , उस दिन मृत पुरूषों की स्‍मृति में जौ का सत्‍तू , फल मिठाई , पंखा पानी से भरा झंजर तथा कुछ नकदी ब्राह्मणों को पुरखों के नाम पर दिया जाता है। इस पक्ष की सप्‍तमी को गंगा सप्‍तमी होती है , यह गंगोत्‍पत्ति का दिन माना जाता है। नौमी को जानकी जी का जन्‍म दिवस है , चौदस को नृसिंह चौदस होता है , इसी दिन नृसिंह अवतार माना जाता है। आज के व्रत में सायंकाल के समय केवल फल और दूध ही खाया जाता है। बैशाख , आषाढ और माघ ,,, इन्‍हीं तीनों महीनों की किसी तिथि में रविवार के दिन आसमाई की पूजा होती है। यह पूजा किसी भी कार्य की स‍िद्धि के लिए की जाती है। कहीं कहीं तो वर्ष में दो तीन बार ये पूजा की जाती है। आसमाई आशा पूर्ण करने वाली एक शक्ति है। प्राय: लडके की मां पूजा करती है और इस दिन नमक नहीं खाया जाता है।





शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

तीज पर्व का महत्व .. भाग 3 .. खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी

तीज पर्व का महत्व

चैत्र माह में ही आठ दिन बाद 'बसिहुडे की अष्‍टमी होती है , यह चार बसिहुडे में पहला होता है , देवी जी की पूजा होती है और बासी खाया जाता है। लखनऊ में धुरेरी को कोनेश्‍वर महदेव के चौक में मेला हेाता है , और अष्‍टमी को सआदतगंज में टिकैत राय के तालाब शीतला का बहुत बडा मेला होता है। दुर्गा अष्‍टमी के दिन देवी की हलवे से पूजा होती है , नारियल की भेंट भी दी जाती है। घर में सबों को हलवा पूरी और गरी प्रसाद में मिलता है। संबंधियों तथा मित्रों के यहां भी हलवा आदि प्रसाद बांटा जाता है , देवी जी की अग्नि के रूप में पूजा होती है।


8 दिन बाद परेवा से देवी व्रत आरंभ होता है। घी द्वारा दीपक की ज्‍योति की पूजा होती है। अष्‍टमी तथा नवमी को अविविाहित कन्‍याओं को भी देवी मानते हुए उनकी पूजा की जाती है। उन्‍हें नए वस्‍त्र तथा नकदी दीजाती है तथा भोजन कराया जाता है। शुक्‍ल पक्ष के प्रथम नौ दिन नवरात्रि के होते हैं , जो देवी भक्‍तों के लिए अत्‍यंत पवित्र होते हैं। देवी की प्रत्‍येक दिन नियमित समय पर पूजा होती है , प्रथम दिन की पूजा दुर्गास्‍थापन तथा अंतिम दिन की पूजा 'ज्‍योति बढानेवाली पूजा' कही जाती है। कुछ लोग नौ दिनों तक व्रत रखते हैं। अष्‍टमी की पूजा सर्वाधिक महत्‍व की होती है , पर काली दुर्गा और चंडिका के मंदिरों में नवें दिन अधिक भीड होती हैं और मेला भी लगता है। आज के दिन ही रामचंद्र जी का जन्‍म भी हुआ था , इसलिए अयोध्‍या के मंदिरों में आज भारी भीड रहती है। स्त्रियां अपने सौभाग्‍य के लिए अरूंधती व्रत भी करती हैं , जो वशिष्‍ठ जी की पत्‍नी थी।

चैत्र शुक्‍ला तीज को स्त्रियां अपने पति की शुभकामना के लिए गौरी की पूजा की जाती है। सभी विवाहित स्त्रियां घी तले पकवान अपनी सासों और उनके न होने पर पति के अन्‍य बडी संबंधिनियों को देती हैं। साथ में कुछ नकदी भी उन्‍हें दी जाती हैं। वे दोपहर तक व्रत रखती हैं , तब सौभाग्‍य वस्‍तुओं से पूजन तथा कथा के पश्‍चात मांग में सिंदूर लगाती हैं। कथा का प्रसाद मर्दों को नहीं दिया जाता है।

चैत्र शुक्‍ल पूर्णिमा कोजूनो पूनो भी कहते हैं , जिसके घर में लडका होता है , वहां यह पूा की जाती है , इसमें व्रत नहीं रखा जाता है , पांच या सात मटकी या करवा रंगकर पवनकुमार की पूजा की जाती है।



चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत



शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

आया होली का त्यौहार .. भाग 2 .. खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी

आया होली का त्यौहार 


पिछले अंक से आगे .... इसके अतिरिक्‍त प्रत्‍येक अमावस्‍या खासकर सोमवती अमावस्‍या पूजन का दिन होता है।  प्रत्‍येक रविवार सूर्यदेव का दिन , प्रत्‍येक सोमवार चंद्रदेव का दिन , प्रत्‍येक मंगलवार महावीर जी का दिन , विशेष तौर पर श्रावण मास के चंद्रवार शिवभक्‍तों के लिए और आषाढ मास के चंद्रवार शीतला और काली जी के भक्‍तों के लिए पवित्र दिवस है। प्रत्‍येक मंगलवार मंगलचंडी तथा हनुमान जी , का पवित्र दिन है तथा शुक्रवार शीतला भक्‍तों के लिए प्रसिद्ध दिन है। कुछ कृषकों के पर्व बैशाखी , आषाढी , नवा और मौनी अमावस आदि हैं। महीने में दो एकादशी के और दो प्रदोष व्रत हिंदू भी रखते हैं। पूर्णमासी का व्रत भी रखा जाता है। चंद्रग्रहण वाले पूर्णमासी और अमावस्‍या वाले पूर्णिमा को विशेष तौर पर दान , पुण्‍य तथा पूजा पाठ किए जाते हैं।


हमारे यहां जब ऋतुपरिवर्तन होता है , नया नया खेत बोया जाता है या पका खेत काटा जाता है तब होली , दीपावली , दशहरा जैसे विशेष पर्व किसी उद्देश्‍य से रखे गए हैं।अन्‍य त्‍यौहारों का भी , भले ही वे छोटे हों या बडे , कुछ न कुछ उद्देश्‍य होता है। ये त्‍यौहार मासिक क्रम में इस प्रकार मनाए जाते हैं .....

चैत्र माह के चारो सोमवारों को तिसुआ सोमवार कहा जाता है। तिसुआ सोमवार में जगदीश के पट्ट की पूजा होती है , पर उसी घर में जहां कोई जगन्‍नाथपुरी से हो आया हो। जगन्‍नाथपुरी जानेवाला ही व्रत रखता है , पहले सोमवार फूले हुए देवल और गुड से , दूसरे सोमवार गुड धनिया से , तीसरे सोमवार पंचामृत से तथा चौथे सोमवार गंगभोग या कच्‍चा पक्‍का हर तरह का पकवान बनाकर भोग लगाया जाता है।

चैत्र माह के परेवा को ही धुरेरी होती है। इस दिन 12 बजे दोपहर तक रंग खेलकर फिर नहा धोकर कपडे पहनकर पुरूष और बालक परिचितों के गले मिलते हैं तथा मेला देखते हैं। आज सबलोग पिछले बैर को भूलकर आपस में प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं। दामाद और कन्‍याएं भी धुरेरी के दिन निमंत्रित किए जाते हैं , आज से लोग जाडों के कपडों को तहाकर रख देते हैं और गरमी के कपडे निकालते हैं। दूसरे दिन भाई दुईज मनायी जाती है।





शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत..... खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत


हमारा नया वर्ष होलिका दहन के पश्‍चात चैत्र शुक्‍ल पक्ष प्रतिपदा से प्रारंभ होता है। हिंदू त्‍यौहारों के विषय में लोकोक्ति 'सात बार नौ त्‍यौहार' ठीक ही हैं। किंतु हिंदुओं के चार त्‍यौहार अत्‍यधिक महत्‍व के है। 1. रक्षाबंधन ब्राह्मणों का , 2. विजयादशमी क्षत्रियों का , 3. दीपावली वैश्‍यों का और 4. होली शूद्रों का है। पर इन चारो त्‍यौहारों को सभी वर्णों के लोग उत्‍साह , प्रेम और श्रद्धा से मनाया करते हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि हम हिंदू किस तरह एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव और एक दूसरे के त्‍यौहारों के प्रति श्रद्धाभाव रखते थे। इन चारो त्‍यौहारों को हम राष्‍ट्रीय त्‍यौहार भी कह सकते हैं।


इन राष्‍ट्रीय त्‍यौहारों के अतिरिक्‍त कुछ ऐसे त्‍यौहार या पर्व हैं , जिन्‍हें हम धार्मिक पर्व या उत्‍सव कह सकते हैं। इन दोनो में भेद स्‍पष्‍ट देखा जा सकता है। जहां ये देश व्‍यापी चारो त्‍यौहार कश्‍मीर से कन्‍या कुमारी और पंजाब मुंबई से बंगाल आसाम तक मनायी जाती हैं , वहीं धार्मिक पर्व स्‍थान विशेष पर मनाएं जाते हैं। उदाहरणार्थ काशी में शिवरात्रि , अयोध्‍या में रामनवमी , मथुरा में कृष्‍णाष्‍टमी , महाराष्‍ट्र में गणेश चौथ जैसे कुछ पर्व खास खास जगहों पर अधिक धूमधाम से मनाए जाते हैं। पर किसी न किसी अंश में अन्‍य प्रदेशों में भी ये धार्मिक त्‍यौहार मनाये जाते हैं।

इनके अतिरिक्‍त कुछ ऐसे भी पर्व होते हैं , जिनका संबंध हमारे पुरखों से होता है। पितृ विसर्जन अमावस्‍या , पितृ पक्ष , अक्षय तीज , निर्जल एकादशी तथा मकर संक्रांति आदि कुछ पर्व ऐसे ही हैं। कुछ पर्वों का संबंध गुरू से होता है , व्‍यास पूजा , वसंत पंचमी आदि इसके उदाहरण है। कुछ पर्व केवल स्त्रियों के होते हैं , जैसे तीज , हरियाली तीज , कजली तीज , करवा चौथ आदि। कुछ पर्व त्‍यौहार विशेष जाति , विशेष समुदाय या विशेष क्षेत्र में भी प्रचलित हैं। ऐसे त्‍यौहारों के बारे में जानकारी भी दूसरे लोगों को नहीं होती।

हमारे अन्य त्यौहार :-------










क्‍या ईश्‍वर ने शूद्रो को सेवा करने के लिए ही जन्‍म दिया था ??

शूद्र कौन थे प्रारम्भ में वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर थी, पर धीरे-धीरे यह व्यवस्था जन्म आधारित होने लगी । पहले वर्ण के लोग विद्या , द...