रविवार, 7 मार्च 2010

युवा पीढी के नाम एक संदेश .... डॉ रमा मेहरोत्रा

भारतवर्ष के प्राचीन इतिहास और पिछली सदी में देश के हजारो बन्‍दों का बलिदान साक्षी है कि भाईचारे , एकता , अभिन्‍नता और अखंडता के लिए मर मिटने की तन्‍मयता कितनी उग्र थी। पर आज की युवा पीढी भौतिकता से जुडे अर्थवाद की ओर तेजी से उन्‍मुख हो रही है। यही अध:पतन का मुख्‍य कारण है। सत्‍य तो यह है कि तत्‍तवत: विश्‍व के सभी धर्मों का एक ही लक्ष्‍य ... प्रेम , सेवा त्‍याग और अहिंसा में निहित है , किंतु यह केवल बाह्य पक्ष का अंधानुकरण ने मानव के अंत:पक्ष को अनदेखा कर वास्‍तव में शरीर , मन , बुद्धि और चित्‍त का सम्‍यक संतुलन ही खो दिया है। वृहत भोग से चिपके अर्थलोभ ने पाशविकता को चरम स्‍वर दे मानवीयता के मापदंड को निम्‍न किया है। परिवार , समाज और राष्‍ट्र ... सभी पर भोग और लोभ का मनोरोग कैंसर की तरह बढा है। संयुक्‍त परिवार सिमटकर , एकल जोडे की तनावग्रस्‍त स्‍वार्थ लिप्‍सा से मोहित , आशावादी वृद्धों को सिसकती सांसों के साथ जीने को बाध्‍य किए हैं। युवा पीढी में शिक्षा , जागरूकता और स्‍वतुत्रता यद्यपि विकास के लिए वरदान है , पर उच्‍छृंखलता , मदिरा ड्रग सेवन , डिस्‍को , छलावा , आतंक , हिंसा से लेकर यौन संबंधी छूट से संलग्‍न असाध्‍य रोगों के प्रसारण में सहायक बन प्रदूषित कर अन्‍त: बाह्य को कलुषित किए हुए है।

प्रदर्शन और वैभव की चमक से आक्रांत युवा पीढी नित्‍य नवीन फैशन शो के दुष्‍प्रभाव और व्‍यय के अतिरिक्‍त नग्‍नता को तो प्रोत्‍साहित करती ही है , रूपाकर्षण को परिमार्जित करने के अनोखे नकली प्रसाधनों सहित धन्‍धों के लिए जो लुभावने अड्डे और जिन व्‍याभिचारों को न्‍योता देती है , वह भी शोचनीय है। समाज में धर्माडंबर के नाम पर वाहवाही के प्रदर्शन , अर्थ जागरण , भंडारे , यज्ञ पूजन ,आदि में भी शुद्ध श्रद्धा की अपेक्षा व्‍यवसायिकता ही प्रबल दिखती है। इस वृत्ति का अतिक्रमण वीभत्‍स हो उबरता है , जब जीवन दायिनी दवाओं , दूध , घी और खाद्यान्‍नों में मिलावट पकडी जाती है। जनसेवक के नाम पर सत्‍ता आरूढ नेतागण जब करोडों का धन और समय पुत्र पुत्रियों के विवाह पर न्‍योछावर कर गौरवान्वित होते हैं। अब समय आ गया है किहम अपने  अंत: करण का पुनर्वासन कर समता , यमता और नयी सोंच के संकल्‍प से 'सर्वे भवन्‍तु सुखिन: , सर्वे सन्‍तु निरामया:' की मान्‍यता को चरितार्थ करें !!

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