रविवार, 28 मार्च 2010

धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे मान्‍य तीर्थस्‍थान

तीर्थों के नाम

हिंदू परिवारों की तरह ही खत्रियों में भी कुछ तीर्थस्‍थान अत्‍यंत पवित्र माने जाते हैं। कम से कम प्रत्‍येक हिंदूओं की प्रबल इच्‍छा होती है कि वे इन तीर्थस्‍थानों में जाकर अपना परलोक सुधारे। जीवन में उनकी यात्रा करना एक कर्तब्‍य माना जाता है। कुछ प्रमुख तीर्थस्‍थान निम्‍न हैं ...... 


'चारो धाम' के अंतर्गत 1. उत्‍तर में बद्रिकाश्रम है। हरिद्वार से यात्रा आरंभ होती है , प्राय: केदारनाथ होते हुए लोग बदरीनाथ को जाते हैं। कुछ लोग गंगोत्‍तरी या यमुनोत्‍तरी होते हुए भी वहां जाते हैं , ये उत्‍तराखंड की यात्रा होती है। अनेक यात्री धर्मभाव से प्रेरित न होते हुए भी केवल हिमालय के अद्भुत प्राकृतिक दृश्‍य के अवलोकनार्थ या सैर सपाटों के लिए भी इन दर्शनीय स्‍थानों पर जाते हैं। 2. दक्षिण में रामेश्‍वरम् धाम है , इसके आसपास अनेक तीर्थस्‍थान हैं।लोग दक्षिण भारत के भ्रमण को जाने पर रामेश्‍वरम् जाना नहीं भूलते। 3. पूर्व में जगन्‍नाथपुरी है, साक्षी गोपाल , भुवनेश्‍वर और कोणार्क जैसे प्रसिद्ध तीर्थस्‍थान इसके निकट ही हैं। 4. पश्चिम में द्वारकाधाम है, इन चारो धाम के यात्रियों को यह अनुभव होता है कि समस्‍त देश हमारी ही मातृभूमि है। जगत्गुरू शंकराचार्य ने इन धामों पर अपनी गद्दिायां विकसित की।

खत्र

चारो धामों के अतिरिक्‍त 'सप्‍तपुरी' के अंतर्गत 1. अयोध्‍या , राजा रामचंद्र की राजधानी सरयू नदी के तट पर है। 2. मथुरा , योगेश्‍वर कृष्‍ण की कार्यभूमि यमुना तट पर है। 84 कोस ब्रज के अंतर्गत नंदगांव , पेम सरोवर , बरसाना, कोसी , छाता , कामबन, डीग , गोवर्द्धन , जतिपूरा , राधाकुंज , रावल , गोकुल , महाबन , ब्रह्मांड घाट , रमणरेती , बडे दाऊ जी , बृंदाबन आदि तीर्थस्‍थल हैं। 3. हरिद्वार में कुंभ के अवसर पर लाखों की भीड होती हैं, गंगा दशहरा या अन्‍य पर्वों पर भी गंगा स्‍नान को यात्री आते हैं। कनखल , चंडीदेवी , भीमगोडा , सत्‍यनारायन चट्टी , ऋषिकेश , लक्ष्‍मणझूला , स्‍वर्गाश्रम आदि भी अपूर्व दर्शनीय स्‍थान आसपास हैं। 4 . काशी शैवों का केन्‍द्र बाबा विश्‍वनाथ तथा गंगा के कारण अत्‍यंत पुरातन और पवित्र तीर्थ है। 5. कांजीवरम दक्षिण भारत में विष्‍णु कांची तथा शिवकांची के रूप में प्रसिद्ध है। 6. उज्‍जैन शिप्रा नदी के तट पर महाकालेश्‍वर शिवलिंग के कारण विक्रमादित्‍य की राजधानी रहा है। 7. द्वारका भी सप्‍तपुरियों में से एक है। सोमनाथ , सुदामापुरी आदि तीर्थस्‍थान भी इसके निकट ही है।
तीर्थों के नाम


शैवों के लिए द्वादश ज्‍योतिर्लिंग अत्‍यंत महत्‍व और श्रद्धा के केन्‍द्र हैं। 1. सोमनाथ गुजरात में हैं, जिससे प्रत्‍येक इतिहास प्रेमी परिचित हैं। 2. त्रयम्‍बकेश्‍वर नासिक के निकट है। 3. ओकारेश्‍वर नर्मदा तट पर है। 4. महाकालेश्‍वर उज्‍जैन में है। 5. केदारनाथ हिमालय पर स्थित है। 6. विश्‍वनाथ महादेव काशी में है। 7. बैजनाथ धाम बिहार प्रांत में है। 8. रामेश्‍वरम दक्षिण में है। 9. मल्लिकार्जुन 10. नागनाथ 11. वृष्‍णेश्‍वर दक्षिण हैदराबाद में है। 12. भीमाशंकर पूना के पास है। 

इसके अतिरिक्‍त काश्‍मीर में अमरनाथ की गुफा भी प्रसिद्ध है। काली भक्‍तों के तीर्थ वहां वहां है , जहां उनके मठ हैं। नागरकोट के दुर्गामंदर में चैत और कुआर के महीनों में यात्री अधिक आते हैं। इसी प्रकार मिर्जापुर में विंद्यवासिनी देवी , कलकत्‍ते की काली माई दिल्‍ली के निकट गुरूगांव में शीतला देवी , कांगडा की ज्‍वालामुखी देवी का मंदिर भी प्रसिद्ध है।

सिक्‍खों का प्रसिद्ध तीर्थ अमृतसर का स्‍वर्ण मंदिर है।

गंगा तट पर 1. काशी संस्‍कृत विद्या का केन्‍द्र रहा है। 2. प्रयाग गंगा , यमुना सरस्‍वती के संगम पर प्रसिद्ध तीर्थस्‍थान है। 3. हरिद्वार 4. एटा जिला में कासगंज के निकट सोरों 5. जिला अलीगढ में गंगातट पर राजघाट 6. जिला मेरठ में गढ मुकत्‍ेश्‍वर 7. ब्रहमवर्त , बिठुर तथा गंगासागर आदि प्रसिद्ध तीर्थस्‍थान हैं। 

वैष्‍णवों के प्रधान तीर्थ नाथद्वारा , मथुरा और द्वारका है। कुरूक्षेत्र पंजाब में पानीपत के निकट है। गयाजी फल्‍गु नदी के तट पर मृत लोगों के पिंड दान के लिए पवित्र स्‍थान है। बिहार में गंगातट पर हरिहर क्षेत्र अपने मेले के लिए संसार भर में प्रसिद्ध है। जहां जहां प्राचीन ऋषि महर्षियों ने तपस्‍या की थी , या धार्मिक उद्देश्‍यों से इकट्ठे हुए थे , वो सब भी बाद में तीर्थस्‍थल बन गए। नैमिषारण्‍य मिश्रिक , हत्‍याहरण चित्रकूट, गोला गोकर्ण नाथ , जनकपुर , सीतामढी , राजगृह , नसलंदा , तारकेश्‍वर नवदीप , कामाख्‍या , परशुराम कुंड , ब्रह्म तीर्थपूर , पशुपतिनाथ महादेव , नेपाल , भेडाघाट , जबलपुर , रामटेक , नागपुर , श्रीरंगम , मदुरा , बालाजी , तिरूपति , लक्ष्‍मणबाला आदि भी प्रसिद्ध तीर्थ हैं।

( खत्री हितैषी के स्‍वर्ण जयंती विशेषांक से साभार )




रविवार, 21 मार्च 2010

देव स्‍थान या ठाकुरद्वारा हिंदुओं के घर में आवश्‍यक है !!

सिर्फ खत्रियों में ही नहीं , प्रत्‍येक हिंदू के घर में एक गृह देवता या देवी आवश्‍यक हैं। प्राय: प्रत्‍येक घर में एक कमरा , खिडकी या स्‍थान ऐसा होता है , जो देवस्‍थान या ठाकुरद्वारा कहलाता है। प्राय: संध्‍या , गायत्री या पूजन वहीं पर किया जाता है। किंतु यह आवश्‍यक नहीं कि पूजा उसी स्‍थान पर की जाए। पूजा या हवन घर के किसी भी स्‍वच्‍छ या पवित्र स्‍थान पर किया जा सकता है।ठाकुरद्वारे में भगवान राम , राधा कृष्‍ण तथा शालिग्राम आदि की मूर्तियां सिंहासन पर होती हैं, जिनको नित्‍य स्‍नान कराया जाता है। उनकी पुष्‍पों और चुदन से पूजा होती हें और भोग भी लगाया जाता है। घरों में पूजा करने के अतिरिक्‍त मोहल्‍ले में स्थित सार्वजनिक मंदिरों में भी हिंदू प्रात: और सायं दर्शन करने जाते हैं। इसके अतिरिक्‍त अपने स्‍थानों या वंश की परंपरा तथा रीति रिवाजों के अनुसार विशेष अवसर पर विभिन्‍न मंदिरों या विभिन्‍न स्‍थानों पर पूजा या धार्मिक कृत्‍य पूरा करने जाते हैं।

उदाहरणार्थ बच्‍चा पैदा होने के कुछ मास पश्‍चात् पहले माता उसे काली जी या हनुमान जी के मंदिर ले जाती हैं। इसके पूर्व उसे कोई बाजार नहीं ले जा सकता। विवाहोपरांत घर तथा वधू को पहले काली जी के मंदिर में दर्शन करने चाहिए। चेचक ठीक होने के बाद भी पहले कालीजी के दर्शन करना होता है , उसके बाद ही अपना सामान्‍य दैनिक जीवन व्‍यतीत कर सकता है। कपूर विशेषतया आगरे के देवता बाग आगरे में बच्‍चें के शुभ संस्‍कारों के लिए जाते हैं। इटावा के खन्‍ना कानपुर जिले के शिवराजपुर , बिसवां के सेठ कन्‍नौज , दिल्‍ली के लाहौरिया खन्‍ना मुल्‍तान के निकट दीपालपुर को , फरीदाबाद के कुछ कक्‍कड जिला मेरठ के गढमुक्‍तेश्‍वर को तथा कुछ पुरानी दिल्‍ली के लाल किले को जाते हैं। इसका कारण यह है कि जिन वंशों के पूर्वज पहले जिन स्‍थानों पर रहते थे , उन स्‍थानों के प्रति ममत्‍व और श्रद्धा का भाव आज भी उनके वंशजों के हृदय में है। जिन देवी देवता को उनके पूर्वज मानते थे , उनके वंशज आज भी उन्‍हें मानते हैं।

इसके अतिरिक्‍त हिंदुओं के कुछ तीर्थस्‍थान भी अत्‍यंत पवित्र समझे जाते हैं। जीवन में उनकी यात्रा करना एक कर्तब्‍य समझा जाता है। कम स कम प्रत्‍येक हिंदू के हृदय में प्रबल इच्‍छा होती है कि वह इन तीर्थस्‍थानों में जाकर अपना परलोक सुधारे। कुछ प्रमुख तीर्थस्‍थानों की चर्चा अगली कडी में की जाएगी।

(खत्री हितैषी के स्‍वर्ण जयंती विशेषांक से साभार)

गुरुवार, 18 मार्च 2010

या देवी सर्व भूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

देवी दुर्गा की उत्‍पत्ति एवं परिकल्‍पना अत्‍यंत प्राचीन है। वैदिक काल में उनकी परिकल्‍पना शक्ति रूपा रात्रि देवी के रूप में की गयी है, जो कर अपनी बहन ब्रह्मविद्यामयी उषा देवी को प्रकट करती है। जिससे अविद्यामय अंधकार स्‍वत: नष्‍ट हो जाता है। निरू स्‍वसार मस्‍कृतोषसं देव्‍यायती। अपेदु हासते तम:।। ऋग्‍वेद के देवी सूक्‍त में स्‍पष्‍ट मानवीय लक्षणो वाली देवी के रूप में उनकी अवधारणा की गयी है। वह सिंह के ऊपर आसीन है , उनके मस्‍तक पर चंद्रमा का मुकुट है , वह मरकतमणि के समान अपनी चार भुजाओं में शंख , चक्र , धनुष और बाण धारण किए हुए है , उनके तीन नेत्र शोभायमान हैं, उनके भिन्‍न भिन्‍न अंग बाजूबंद , हार , कंकण , करधनी और नुपुरों से सुशोभित हैं तथा उनके कानों में रत्‍नजटित कुंडल झिलमिलाते रहते हैं। यही भगवती दुर्गा मनुष्‍य की दुगर्ति दूर करनेवाली है ,सच्चिदानंदमयी है तथा रूद्र , वसु , आदित्‍य और विश्‍वदेव गणों के रूप में विचरती हैं , मित्र , वरूण , इन्‍द्र और अश्विनी कुमारों को धारण करती हैं , वही हिंसक असुरों का वध करने हेतु रूद्र के लिए धनुष चढाती है तथा शरणागतों की रक्षा के लिए शत्रुओं से युद्ध करती है तथा समस्‍त विश्‍व की रचना करती है। अन्‍य सभी देवता उन्‍हीं के आदेश का पालन करते हैं।

'मारकंडेय पुराण' के अनुसार दुर्गा अद्वितीय शक्तियों से संपन्‍न देवी हैं , जिनका उद्भव जगत के संतुलन को विचलित करने के उद्देश्‍य से ब्रह्मा का वध करने को उद्दत मधु और कैटभ नाम के दो दुष्‍टों का संहार करने के लिए भगवान विष्‍णु के शरीर से हुआ है। इस उद्देश्‍य की पूर्ति हेतु वह सृष्टिकर्ता ब्रह्मा , संरक्षक विष्‍णु और संहारकर्ता शिव तथा इंद्र , यम , वरूण , सूर्य आदि देवों से शक्ति प्राप्‍त करती है तथा एक विराट और प्रदीप्‍त अग्नि का स्‍वरूप धारण कर लेती है और अंत में एक असाधारण सुदरी स्‍त्री के रूप में प्रकट होती है। उन्‍हें दुर्गा नाम से इसलिए संबोधित किया जाता है , क्‍यूंकि उन्‍होने अपने शाकंभरी अवतार में दुर्गम नामक दुष्‍ट राक्षस का वध किया था।

भगवती दुर्गा उस ईश्‍वरीय शक्ति का प्रतीक है , जो इस धरती पर अवतरित होती है , जब भी संसार में पापों और तमोगुणी कृत्‍यों का बोलबाला होता है तथा जिसके फलस्‍वरूप संत महात्‍माओं का जीवन असुरक्षित हो जाता है। वस्‍तुत: वह भगवान विष्‍णु के अनेक अवतारों में से एक है , जो विभिन्‍न रूपों में समय समय पर इस संसार में प्रकट होते हैं तथा पुण्‍यात्‍माओं के विश्‍वास तथा अपने भक्‍तों की रक्षा हेतु जगत में शांति और संतुलन पुनर्स्‍थापित करते हैं। 'गीता' में भगवान कृष्‍ण कहते हैं... हे भारत ! जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है , तब तब मैं अपने रूप को रचता हूं , अर्थात साकार रूप में लोगों के सम्‍मुख प्रकट होता हूं। साधु पुरूषों का उद्धार करने , पाप कर्म करनेवालों का विनाश करने और धर्म को अच्‍छी तरह से स्‍थापित करने के लिए मैं युग युग में प्रकट हुआ करता हूं। इसी प्रकार दुर्गा जी ने स्‍वयं घोषणा की है ... जब जब संसार में दानवी बाधा उपस्थित होगी , तब तब अवतार लेकर मैं शत्रुओं का संहार करूंगी।

'देवी भागवत' में कहा गया है ... शक्ति से ही जगत का सृजन, पालन और संहार होता है , ब्रह्मा , विष्‍णु और शिव की सृजनकारी , पालनकारी , और संहारकारी शक्तियां भी केवल शक्ति के ही कार्यकलापों के कारण हैं। दुर्गा जी का गुण है उनका अत्‍यंत मंगलकारी या करूणामय रूप , जिसके कारण उन्‍हें शिवा , मंगला तथा गौरी नाम से संबोधित किया गया है। उनकी स्‍तुति में कहा गया है कि यह जो भी कल्‍याणकारी है , उसे प्रदान करती हैतथा जीवन के सभी पुरूषार्थों को सिद्ध कराती है।

(खत्री हितैषी से साभार)

सोमवार, 15 मार्च 2010

धर्मग्रंथो के अनुसार हमारे मान्‍य वृक्ष


हिन्‍दुओं के ग्रंथों के अनुरूप ही खत्रियों के यहां बरगद , पीपल , जंड , आम , जामुन , पलास , खीदर , बिल्‍व , आमला आदि के वृक्ष पवित्र माने जाते हैं तथा इनकी पूजा भी की जाती है। जंड का वृक्ष तो सबसे अधिक पवित्र माना जाता है, बच्‍चों के मुंडन और अन्‍य संस्‍कारों में इस वृक्ष का पूजन अनिवार्य है। इसके नाम पर एक संस्‍कार का नाम ही 'जंडे' है। ज्‍येष्‍ठ की सप्‍तमी को बरसातें त्‍यौहार पर स्त्रियां बरगद के पेड की पूजा करती हैं। पीपल की भी पूजा होती है , किंतु अपेक्षाकृत कम। पीपल की लकडी जलाना भी हमारे यहां मना है। केवल मृतक संस्‍कार और कुछ विशेष अवसरों को छोडकर पीपल की लकडी कभी नहीं जलायी जाती है। 

पौधों में सबसे पवित्र तुलसी या वृंदा का पौधा है। रामा और श्‍यामा दोनों प्रकार की तुलसी के पौधें हिंदू घरों में पूज्‍य हैं। वृंदा के पौधों की अधिकता के कारण ही कृष्‍ण की लीलाभूमि वृंदावन कहलायी। तुलसी के असंख्‍य लाभों को गिनाने की आवश्‍यकता ही नहीं, क्‍यूंकि उसका ज्ञान प्रत्‍येक भारतीय को है। धतूरे का फल , फूल और बीज भी पवित्र समझे जाते हैं। धतुरा महादेवजी का प्रिय भोज्‍य है। शिवलिंग पर धतूरा तथा बेलपत्र चढाया जाता है। बेल की पत्तियां भी अत्‍यंत पवित्र समझी जाती हैं। 

यूं तो भगवान की पूजा में सभी फूल चढाए जाते हैं, पर सबसे अधिक महत्‍व कमल का माना जाता है। कमल का फूल अत्‍यंत पवित्र होता है , उसके बिना तो कवियों का काम ही नहीं चलता।

अशोक वृक्ष का महत्‍व भी हिंदुओं में इसलिए है, क्‍यूंकि अशोक वाटिका में रावण के यहां इसी वृक्ष के नीचे सीताजी रही थी। कहते हैं , जब कोई संभवा नवयौवना के चरण अशोक वृक्ष में लग जाते हैं , तभी वो पुष्पित होता है।

कुंद का पुष्‍प भी पवित्र माना जाता है। श्‍वेत कुंद के फूल से ही शिवजी के शरीर की उपमा दी जाती है, जैसे नीलकमल से विष्‍णु , राम और कृष्‍ण के शरीर की। पलाश के फूलों के रंग से होली खेली जाती है। अत: टेसु , कुंद , कमल और धतूरे के फूल भी पवित्र माने जाते हैं। 

(खत्री हितैषी के स्‍वर्ण जयंती विशेषांक से साभार)




मंगलवार, 9 मार्च 2010

हमारे मान्‍य पशु पक्षी और अस्‍त्र शस्‍त्र

अस्त्र शस्त्र के नाम & पशु पक्षी की जानकारी


गाय समस्‍त हिंदुओं की माता है। गाय को बेचना एक महान पाप है। प्रत्‍येक गृहस्‍थ के घर में एक गाय पाली जाती है। मृत्‍यु के समय भी गोदान सर्वोत्‍तम होता है। प्रत्‍येक शुभ संस्‍कार के अवसर पर गोदान महत्‍वपूर्ण माना जाता है। गोशाला को खोलना और चलाना अत्‍यंत शुभ और पवित्र काम है। प्राचीन युग के राजाओं की दंत कथाएं गाय के प्रति उनकी श्रद्धा को दिखाने में समर्थ है। गृहस्‍थ में यदि गाय रखने की क्षमता न हो , तो वह उसे किसी ब्राह्मण या गौशाला को देता है। बछडा दान का भी अपना महत्‍व है। गाय और बछडे की पूजा भी वर्ष में एक बार की जाती है। उनके मस्‍तक में रोली का टीका लगाकर , उनपर अक्षत डालकर , उन्‍हें पुष्‍पमाला पहनाकर स्‍वादिष्‍ट भोजन कराया जाता है। नवग्रह की पूजा में भी गोदान और गौ पूजा होती है। प्रतिदिन के भोजन में भी गोग्रास निकाला जाता है। इस तरह हिंदुओं के यहां , और तद्नुरूप खत्रियों के यहां भी ब्राह्मण से अधिक महत्‍व गाय को दिया जाता है। 



सांप भी हमारे यहां पवित्र माना जाता है। नागपंचमी पर नागदेवता की पूजा होती है। बाल्‍यावस्‍था के कुछ संस्‍कारों में , विशेषकर कपूरों के यहां नाग को दूध पिलाए जाने की प्रथा है। हिंदु कितने अहिंसक थे, यह इस बात का प्रमाण है। सांप जैसे विषैले जीव के प्रति भी दया और प्रेम का भाव रखते थे। चरित्र की उच्‍चता का यह प्रदर्शन स्‍तुत्‍य है।

हिंदुओं की दृष्टि में तोता भी एक पवित्र पक्षी है , इसलिए इसे भी काफी घरों में पाला जाता है।

मोर सरस्‍वती का वाहन है , कुछ घरों में मोर भी पाला जाता है , घर में मोर होने से सांप का भय नहीं होता है।

नीलकंठ भी एक पवित्र पक्षी है , दशहरे के दिन नीलकंठ का देखना शुभ माना जाता है

खत्री एक शूर जाति है। अत: प्राचीन अस्‍त्र शस्‍त्र जैसे धनुष, बाण , भाला , कटार, तलवार आदि क्षत्रियों के हथियार थे। अब ये अस्‍त्र शस्‍त्र खत्रियों के यहां नहीं मिलेंगे। पर जिस तरह सिखों के यहां कटार रखने का नियम है , वैसे ही तलवार खत्रियों के हर घर में मिल जाएगा। यह खत्रियों का पवित्र हथियार है। दशहरे के दिन अस्‍त्र शस्‍त्र , विशेषकर तलवार की पूजा हर खत्री करता है। तलवार न होने पर कटार या चाकू से भी काम चलाया जा सकता है। विवाह के अवसर पर वर तलवार लिए घोडे पर सवार होकर ब्‍याह करने जाता है और अपनी तलवार से नारियल पर वार करता है।
अस्त्र शस्त्र के नाम

( खत्री हितैषी के स्‍वर्ण जयंती विशेषांक से साभार )




रविवार, 7 मार्च 2010

युवा पीढी के नाम एक संदेश .... डॉ रमा मेहरोत्रा

भारतवर्ष के प्राचीन इतिहास और पिछली सदी में देश के हजारो बन्‍दों का बलिदान साक्षी है कि भाईचारे , एकता , अभिन्‍नता और अखंडता के लिए मर मिटने की तन्‍मयता कितनी उग्र थी। पर आज की युवा पीढी भौतिकता से जुडे अर्थवाद की ओर तेजी से उन्‍मुख हो रही है। यही अध:पतन का मुख्‍य कारण है। सत्‍य तो यह है कि तत्‍तवत: विश्‍व के सभी धर्मों का एक ही लक्ष्‍य ... प्रेम , सेवा त्‍याग और अहिंसा में निहित है , किंतु यह केवल बाह्य पक्ष का अंधानुकरण ने मानव के अंत:पक्ष को अनदेखा कर वास्‍तव में शरीर , मन , बुद्धि और चित्‍त का सम्‍यक संतुलन ही खो दिया है। वृहत भोग से चिपके अर्थलोभ ने पाशविकता को चरम स्‍वर दे मानवीयता के मापदंड को निम्‍न किया है। परिवार , समाज और राष्‍ट्र ... सभी पर भोग और लोभ का मनोरोग कैंसर की तरह बढा है। संयुक्‍त परिवार सिमटकर , एकल जोडे की तनावग्रस्‍त स्‍वार्थ लिप्‍सा से मोहित , आशावादी वृद्धों को सिसकती सांसों के साथ जीने को बाध्‍य किए हैं। युवा पीढी में शिक्षा , जागरूकता और स्‍वतुत्रता यद्यपि विकास के लिए वरदान है , पर उच्‍छृंखलता , मदिरा ड्रग सेवन , डिस्‍को , छलावा , आतंक , हिंसा से लेकर यौन संबंधी छूट से संलग्‍न असाध्‍य रोगों के प्रसारण में सहायक बन प्रदूषित कर अन्‍त: बाह्य को कलुषित किए हुए है।

प्रदर्शन और वैभव की चमक से आक्रांत युवा पीढी नित्‍य नवीन फैशन शो के दुष्‍प्रभाव और व्‍यय के अतिरिक्‍त नग्‍नता को तो प्रोत्‍साहित करती ही है , रूपाकर्षण को परिमार्जित करने के अनोखे नकली प्रसाधनों सहित धन्‍धों के लिए जो लुभावने अड्डे और जिन व्‍याभिचारों को न्‍योता देती है , वह भी शोचनीय है। समाज में धर्माडंबर के नाम पर वाहवाही के प्रदर्शन , अर्थ जागरण , भंडारे , यज्ञ पूजन ,आदि में भी शुद्ध श्रद्धा की अपेक्षा व्‍यवसायिकता ही प्रबल दिखती है। इस वृत्ति का अतिक्रमण वीभत्‍स हो उबरता है , जब जीवन दायिनी दवाओं , दूध , घी और खाद्यान्‍नों में मिलावट पकडी जाती है। जनसेवक के नाम पर सत्‍ता आरूढ नेतागण जब करोडों का धन और समय पुत्र पुत्रियों के विवाह पर न्‍योछावर कर गौरवान्वित होते हैं। अब समय आ गया है किहम अपने  अंत: करण का पुनर्वासन कर समता , यमता और नयी सोंच के संकल्‍प से 'सर्वे भवन्‍तु सुखिन: , सर्वे सन्‍तु निरामया:' की मान्‍यता को चरितार्थ करें !!

क्‍या ईश्‍वर ने शूद्रो को सेवा करने के लिए ही जन्‍म दिया था ??

शूद्र कौन थे प्रारम्भ में वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर थी, पर धीरे-धीरे यह व्यवस्था जन्म आधारित होने लगी । पहले वर्ण के लोग विद्या , द...