बुधवार, 10 नवंबर 2010

महाशिवरात्रि का महत्व .. भाग 10 .. खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी

महाशिवरात्रि का महत्व



फाल्‍गुन माह के कृष्‍ण पक्ष की चतुदर्शी को शिव रात्रि होती है। शिव की पूजा बेलपत्र से की जाती है और व्रत रखा जाता है। आज के दिन शिव जी का विवाह हुआ था। कुछ लोग रात्रिभर जगते हैं और शिव जी के भजन गाते रहते हैं। कुछ स्त्रियां तो शिवरात्रि के बाद वाले दिन में भी व्रत रखती हैं। किंतु रात में मंदिरों में नहीं जाती। धतुरा भंग बेलपत्र फूल फल , घी का दीपक आदि से पूजा की जाती है तथा उसपर जल , चंदन , अक्षत , पुष्‍प आदि चढाया जाता है। बम बम भोला महादेव के साथ श्रृंगी बजाकर शिव भिक्षुक भिक्षा मांगते हैं। उन्‍हें रोटी , दाल , चावल और कढी के साथ तरकारी और पापड भी दिया जाता है।


पूर्णमासी को होलिका दहन होता है। प्रात: काल धुरेरी से नया वर्ष मनाया जाता है , आज के दिन हिरण्‍यकशिपु की बहन होलिका अग्नि में जल मरी थी। रबी फसल कट जाने था जाडे की समाप्ति और ग्रीष्‍म ऋतु लगने की खुशी में यह त्‍यौहार मनाया जाता है। नया अन्‍न उत्‍पन्‍न होने की खुशी में कृषक भी खूब गाते बजाते तथा रंग खेलते हैं। होलिका में चना , गेहूं आदि की हरी डाली जलायी जाती है , कहीं कहीं तो एक सप्‍ताह पूर्व से ही लोग होली और धमार गाते हैं , रंग खेलते और खुशियां मनाते हैं। कुछ लोग भांग खाते हैं तो कुछ गालियां बकते, तथा गंदे गीत और कबीर गाते हैं। कहते हैं कि आज सब माफ है। गुलाल अबीर की जगह कीचड भी उछालते इस बुराई के मुक्‍त होने पर यह पर्व अत्‍यंत आनंदमय होगा।





मंगलवार, 9 नवंबर 2010

बसंत पंचमी का वैज्ञानिक आधार .. भाग 9 .. खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी

बसंत पंचमी का वैज्ञानिक आधार


यहां अगहन मास में तो कोई त्‍यौहार नहीं होता , पूस में भी एक मात्र त्‍यौहार होता है। कहते हैं , इस मास में कोई नया काम नहीं किया जाना चाहिए। पूस महीने के अंत में मकर संक्रांति के एक दिन पहले पंजाब में लोहडी नाम का त्‍यौहार धूम धाम से मनाया जाता है। रात को अग्नि का पूजन कर प्रसाद में भूने चने और रेवडी बांटी जाती है।मकर संक्रांति को संक्राति या खिचडी भी कहते हैं। आज खिचडी और पोंजा मनसा जाता है। आज सेभी पुरखों की स्‍मृति में खिचडी का दाल ब्राह्मणों को दिया जाता है। स्त्रियां बर्तन कपडे , फल , मिठाई और अनाज आदि ब्राह्मणों अपनी सासों को देती हैं। आज गंगा सागर का स्‍नान भी होता है। राजा सगर के साठ पुत्र आज ही भगीरथ की कृपा से तरे थे। 


माघ मास की पहली चौथ को सौंगर चौथ कहते हैं। आज गणेश जी की पूजा होती है और तिल का भोग लगता है। आज स्‍त्री और पुरूष व्रत रखते हैं , स्त्रियां रात्रि को चंद्र की पूजा करती है। विवाहित स्त्रियों को आज पूजा का दिन होता है। आज घर में मिठाई पकवान बनाया जाता है , जो पूजा में प्रयुक्‍त होता है।

अमावस को मौनी अमावस होता है , आज दान पुण्‍य करके लोग मौन रहते हैं। माघ शुक्‍ल परेवा को पुष्‍प अभिषेक का पर्व है। रामचंद्र जी के द्वारा यह उत्‍सव मनाया गया था , महाराजा वर्दवान के वंश में भी यह त्‍यौहार मनाया जाता है।

श्‍शुक्‍ल पक्ष में वसंत पंचमी होती है , आज आम के बौर का भोग भगवान को लगता है। बालक बालिकाएं वसंती रंग के कपडे पहनती है , यह भी गुरू का दिन माना जाता है। आज विष्‍णु पूजा का भी विधान है। पितृ तर्पण भी करना चाहिए। कामदेव तथा रति की पूजा भी होती है। शुक्‍ल पक्ष में षटतिला एकादशी होती है। माघ शुक्‍ला सप्‍तमी को अचला सप्‍तमी का व्रत होता है , इसे सौर सप्‍तमी भी कहते हैं। माघ शुक्‍ला अष्‍टमी को भीमाष्‍टमी कहते हैं , आज के दिन ही भीष्‍म पितामह ने शरीर त्‍यागा था। माघ मास में गंगा और नदी स्‍नन का बहुत महत्‍वहै। प्रयाग आदि में माघ मास में धर्मात्‍मा लोग गंगा स्‍नान करते हैं।

शनिवार, 6 नवंबर 2010

दीपावली का वैज्ञानिक महत्व .. भाग 8 .. खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी

दीपावली का वैज्ञानिक महत्व


कार्तिक कृष्‍ण पक्ष की चौथ को पहली करवा चौथ होती है , स्त्रियां पति के लिए व्रत रखती हैं , सुहाल मंसे जाते हैं , चंद्रमा को देखकर नए मिट्टी के बर्तन से उसे जल देकर तब भोजन किया जाता है। पूजा के बाद एक दूसरे से बरतन बदला जाता है। चार दिनों बाद अहोई अष्‍टमी होती है , इसमें व्रत रखा जाता है , यह लडकों के लिए किया जाता है। काली जी की पूजा होती है , चंद्रमा या तारे को देखकर भोजन किया जाता है करर्तिक कृष्‍ण द्वादशी को गोधूलि बेला में गायों की पूजा होती है , दिनभर माता निराहार व्रत रखती हैं , कोदो की चावल , चने की दाल , या काकुन के चावल , बेसन की अठवाई खायी जाती है। गेहूं और धान के अतिरिक्‍त कुछ भी खाया जा सकता है। बहुत लोग कार्तिक , माघ , बैशाख्‍ा और श्रावण चारो ही मासो में पूजा करते हैं।

कार्तिक कृष्‍ण पक्ष की चतुदर्शी को चौदस या अंजाझारा होता है। आज शाम को  घर के दरवाजे पर दीया जलाया जाता है। आज महावीर जन्‍म दिन भी है। प्रात:काल अमावस्‍या को बडी दीपावली होती है , रात को लक्ष्‍मी गणेश की पूजा , खील बताशे और पकवानों से पुरोहित कराते और सबको टीका काढते हैं। घर घर दीए जलाए जाते हैं , धूमधाम से मेला होता है , रातभर लोग जुआ भी खेलते हैं। आज से शरद ऋतु का आगमन माना जाता है , गोवर्द्धन में भी बडा मेला होता है। कार्तिक कृष्‍ण त्रयोदशी से शुक्‍ला दुईज तक पांच दिन महोत्‍सव का क्रम रहता है , त्रयोदशी , नरक चतुदर्षी , लक्ष्‍मी पूजन तीनों का घनिष्‍ठ संबंध है। त्रयोदशी को यमराज का पूजन होता है। इन तीनों दिनों में वामन भगवान ने राजा बलि की पृथ्‍वी को तीन डगों में नापा था। राजा बलि के वरदान मांगने पर वामन जी ने वर दिया था कि जो मनुष्‍य इन तीनों दिनों में दीपोत्‍सव और महोत्‍सव करेगा , उसे लक्ष्‍मी जी कभी न छोडेंगी।

प्रात: काल अन्‍न कूट या जमघट होता है , लडके दिनभर पतंगे उडाते हैं , आज ठाकुर जी को भोग लगता है , दामाद और कन्‍याएं निमंत्रित की जाती हैं। उसके दूसरे दिन ही भाई दुईज होती है , यह बहिनों का त्‍यौहार है , वे भाई के टीका काढती हैं , मिठाई आदि देती हैं , भाई रूपया , कपडा और उपहार देता है। मथुरा में विश्राम घाट के स्‍नान का बडा महत्‍व है। फिर प्रात: काल मनचिंता होती है , इसमें आटे की मछलियां की पूजा की जाती है। कार्तिक शुक्‍ला अष्‍टमी को गोपाष्‍टमी होती है , इसमें गऊओं की पूजा होती है। फिर तीसरे दिन देवोत्‍थान एकादशी होती है। व्रत कर ऊख से देवता की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि चार मास की निद्रा के बाद देव जगते हैं।

इन चारों महीनों में उत्‍तर प्रदेश या उसके आसपास कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता था , पर पंजाब में यह नहीं माना जाता है। हो सकता है कि वर्षा ऋतु में घर के बाहर और परदेश जाने में लोगों को कठिनाई होती हो , पर पंजाब में इन मासों में वर्षा नहीं होती  , इसलिए वहां निषेध नहीं है। इन चार मास मे देवों के सोने या जगने का यही अभिप्राय था। इस पक्ष की एकादशी के दिन तुलसी विवाहोत्‍सव भी होता है। कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्‍नान का पर्व है। लाखों की संख्‍या में लोग गढमुक्‍तेश्‍वर , बिठुर , कानपुर आदि जगहों में गंगा स्‍नान करते हैं। यदि वहां न जा सके , तो अपने अपने स्‍थानों की नदियों में ही स्‍नान किया जाता है। आज बडा मेला होता है। कार्तिक शुक्‍ल एकादशी से लेकर पूर्णिमार तक का व्रत 'भीष्‍म पंचक' कहलाता है। पांचो दिन घी के दीपक जलते हैं, जप होता है , 108 आहुतियां दी जाती है , इन पांच दिनों में भीष्‍म पितामह ने शर शैय्या पर पांडवों को उपदेश दिया था।



सोमवार, 1 नवंबर 2010

दशहरा मनाया जाता है.. भाग 7 .. खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी

दशहरा मनाया जाता है

आश्विन माह की पहली अष्‍टमी को महालक्ष्‍मी की पूजा होती है और व्रत रखा जाता है , कुछ खत्रियों के यहां विशेष रूप से मिट्टी की मूर्ति बनाकर 16 प्रकार के पकवान से पूजा की जाती है। राधाष्‍टमी को हल्‍दी में रंगकर कच्‍चे सूत की 16 गांठों का गण्‍डा हाथ में पहना गया था , वो आज खोला जाता है। अमावस को पितृ विसर्जन होता है , इन पंद्रह दिनों में ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं, श्राद्धकर्म आदि होते हैं। पितृ विसर्जन के बाद प्रात:काल से नवरात्रि आरंभ होती है। अष्‍टमी को थाल होते हैं। देवी जी की पूजा होती है। प्रति बालक के लिए मिठाई के दस ठौर रखे जाते हैं। जीवित पुत्रिका नाम का निर्जला व्रत महिलाएं करती हैं।


शुक्‍ल पक्ष की दशमी को दशहरा या विजयादशमी में बच्‍चों को थाल दिए जाते हैं। यह भी राष्‍ट्रीय त्‍यौहार है। अस्‍त्र शस्‍त्र , घोडा , हाथी , युद्ध के पशुओं से लेकर कलम और दवात तक की पूजा होती है। आज ही राम ने रावण पर विजय प्राप्‍त किया था। बंगाली लोगों का यह सबसे बडा त्‍यौहार है। आज ही सरस्‍वती जी की प्रतिमा पूजनोपरांत विसर्जित की जाती है। इन दिनों स्‍थान स्‍थान पर रामलीलाएं होती हैं , रावण जलाया जाता है और मेला लगता है।पुरोहित या ब्राह्मण मंत्र पढकर जौ की बल्लियों द्वारा यजमानों को आशीर्वाद देते हैं और यजमान बदले में दक्षिणा पाते हैं। व्‍यापारी लोग आज से अपना हिसाब किताब आरंभ करते हैं , तथा अपने वर्श का नया दिन मानते हैं। व्‍यापार , यात्रा या अन्‍य शुभ कार्यों के लिए आज का दिन परम पवित्र माना जाता है।

आश्विन शुक्‍ल प्रतिपदा से लेकर से दशमी तक नौ दिन व्रत और ाशक्ति की पूजा की जाती है। दुर्गा सप्‍तशती में तो भगवती के महात्‍म्य का वर्णन है ही। देवी नवरात्रि के पूजन का सबको अधिकार होता है। प्रतिपदा को घट स्‍थापन कर नौ धान्‍यों को बोना और पंचमी को उद्दोग ललिता व्रत करना चाहिए। अष्‍टमी और नवमी को महातिथि कहते हैं। यह नवरात्रि की पूजा है। आश्विन तथा चैत मास में प्रत्‍येक मनुष्‍य को घटस्‍थापना से शक्ति की उपासना और अराधना करनी चाहिए। आज से पांचवे दिन शरद पूर्णिमा होती है। आज ठाकुर जी ओस में बैठाए जाते हैं , पूजा होती है , स्त्रियां पति के कल्‍याण के लिए व्रत करती हैं।





शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

संकष्टी चतुर्थी क्या है .. भाग 6 .. खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी

संकष्टी चतुर्थी क्या है 


भादो महीने के कृष्‍ण पक्ष की तीज को कजली तीज होती है और चौथ को बगुला चौथ या गणेश चौथ। यह भी लडकों का त्‍यौहार है , आज के दिन जौ की पूडी खायी जाती है , और गऊ बछडे की पूजा भी होती है। आज को छींक छक्‍कानी भी कहते हैं , आज समस्‍त हिंदू बालक गुरूओं की चटसाल में जाते हैं , फल और मिठाई आदि से गणेश की पूजा करते हैं तथा ब्राह्मण को कुछ दक्षिणा भी देते हैं। प्रत्‍येक पाठशाला में बच्‍चे खूब आनंद मनाते हैं , दिनभर गाते , बजाते और नाचते कूदते हैं। वैसे तो प्रत्‍येक महीने कृष्‍ण पक्ष की चौथ को गणेश व्रत होता है , पर श्रावण , भाद्रपद और मार्गशीर्ष में इसका खासा महत्‍व है।


प्रात:काल भाई बिन्‍ना या नागपंचमी होती है। यह भाइयों का त्‍यौहार बहनें मनाती हैं , भाइयों के बहनें टीका काढती हैं और भाइयों से रूपए पाती हैं। सांप की पूजा भी भाइयों के कल्‍याण की कामना से की जाती हैं। हरछठ लडकों का त्‍यौहार है , आज ढाक के डाल की पूजा होती है , जिनमें कुशा लगा रहता है। आज तिन्‍नी के चावल खाए जाते हैं , हल द्वारा बोया अन्‍न या गाय का दूध दही नहीं खाया जाता है। दो दिन बाद अष्‍टमी को जन्‍माष्‍टमी होती है , योगेश्‍वर कृष्‍ण का जन्‍म मथुरा में होने का आज ही माना जाता है। यदि इस तिथि की रात्रि को रोहिणी नक्षत्र हो तो कृष्‍ण जयंती होती है। प्रात:काल नंदोत्‍सव होता है , यह त्‍यौहार मंदिरों में विशेषका ब्रज या श्रीनाथद्वारा में बडे समारोह से होता है।फिर बन द्वादशी या गोवत्‍स द्वादशी होती है , यह भी लडकों का त्‍यौहार है , घास की पूजा कर लडकों की जांघ में मिट्टी लगायी जाती है।

शुक्‍ल पक्ष की तीज को कजली तीज होती है , आज शिव पार्वती की पूजा होती है , भादो शुक्‍ला तीज को बेडा तीज या हरतालिका होता है। आज भी पोंजा मनसा जाता है , तीन तीजों में आज अंतिम तीज होती है , खत्रियों के यहां विवाह के पहले वर्ष से ही स्त्रियां हरतालिका व्रत करने लगती है। मेहरा खत्री अपने कुलदेवी सचाई माता की भी आज ही पूजा करते हैं। प्रात: पथरा चौथ होती है। आज चंद्रमा नहीं देखना चाहिए। कहते हैं , भगवान कृष्‍ण को चंद्रमा देखने के कारण ही 'मणि' की चोरी का आरोप लगा था , आज रात को लोग पत्‍थर फेकते हैं , गणेश जी के समस्‍त व्रतों मे यह प्रधान है , श्रावण शुक्‍ल 4 से भादो शुक्‍ल 4 तक एक समय भोजन करके गणेश का व्रत होता है। प्रात: ऋषि पंचमी होती है , आज स्त्रियों का व्रत रहता है , पर पुरूष भी स्त्रियों के साथ व्रत रख सकता है। सप्‍तर्षि कश्‍यप , अत्रि , भारद्वाज , विश्‍वामित्र , गौतम , जमदग्नि , और वशिष्‍ठ सपत्‍नीक पूजे जाते हैं।

तीन दिन बाद राधाष्‍टमी होती है , आज राधा जी का जन्‍मदिन है , आज बुड्ढे बुडिढयों की पूजा होती है और बासी खाना खाया जाता है। महालक्ष्‍मी का तागाबंधन आज मनाया जाता है , तथा व्रत होता है। कच्‍चे सूत के सोलह तागों में  सोलह गांठे लगती हैं। एक दिन पूर्व सप्‍तमी को संतान सप्‍तमी का व्रत होता है।  प्रात:काल नवमी को 'नया' होता है , आज चने की कढी खायी जाती है और पूजा होती है। द्वादशी को गऊ बछडे का त्‍यौहार मनाया जाता है , इसे बामन द्वादशी भी कहते हैं। आज गेहूं न खाकर बेसन खाया जाता है , गऊ बछडों की पूजा होती है और लडकों से गले मिला जाता है।

दो दिन बाद अनंत चौदस होती है , आज गुड भरी रोटी खायी और मनसी जाती है। स्त्रियां अपने पतियों का त्‍यौहार मनाती हैं। आज परब्रह्म परमात्‍मा का पूजन होता है , आज रेशम और स्‍वर्ण के धागों में 14 गांठे लगाकर भगवान की पूजा होती है , एक बार अलोना भोजन करते हैं। पूर्णमासी से पितृपक्ष आरंभ होता है , यह 15 दिन रहता है , स्‍वर्गीय संबंधियों की मृतात्‍मा की शांति के लिए पूजा की जाती है तथा ब्राह्मणों को भोजन और दक्षिणा दी जाती है।






गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

नाग पंचमी का महत्व .. भाग 6 .. खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी


नाग पंचमी का महत्व 


सावन के अमावस्‍या को हरियाली अमावस कहा जाता है। शुक्‍ल पक्ष की तीज को तिजियां होती है , जिसे सुहागन अपने पति के कल्‍याण की कामना में मनाया जाता है। आटे और शक्‍कर के कसार का पोंजा स्त्रियां मनसा करती हैं। कृष्‍ण पक्ष की नागपंचमी को भाई बहनों का तयौहार पउता है , पंचमी को नागपंचमी पडती है। नागों में 12 नाग प्रसिद्ध है .. अनंत , बासुकी , शेष , पद्म , कंबल , कंकोटक , अस्‍वतर , धूतराष्‍ट्र , शंस्‍याल , कालिया , तक्षक , पिंगल , एक एक नाग की एक एक मास पूजा करने का विधान है। आज गुडियों का त्‍यौहार है , यह भाई बहनों का होता है। आज के दिन सांप की भी पूजा होती है और बच्‍चे चौराहों पर लकडियों से कपडे की बनी गुडिया को पीटते हैं।


आज के दिन अखाडों में कुश्तियां भी खेली जाती हैं। पूर्विए खत्रियों में यह त्‍यौहार विशेष तौर पर मनाया जाता है। पंचमी के दिन सायंकाल को ही भोजन करना चाहिए। श्रावण कृष्‍ण दशमी को बाबा लालू जस्‍सू राय महोत्‍सव केवल खन्‍ना खत्रियों द्वारा बाबा जस्‍सू राय की स्‍मृति में मनाया जाता है। श्रावण कृष्‍ण तेरस को 'मूल माता' की पूजा केवल कपूर खत्रियों के घरों में होती है। श्रावण शुक्‍ला तीज की तिजिया या गुडिया तीज होती है , यह केवल स्त्रियों का त्‍यौहार है। विवाहित स्त्रियों के लिए यह बहुत ही महत्‍वपूर्ण त्‍यौहार होता है , पिछले दिन से ही वे पूरे श्रृंगार में रहती हैं , उत्‍तमोत्‍तम भोजन करती हैं , झूला झूलती हैं तथा अपने सौभाग्‍य के लिए गाना गाती हैं। प्रसन्‍नता से ये त्‍यौहार मनाते हुए वे अपनी सासों या बडों को पोजा भेजती हैं। जो नवविवाहिता इन दिनो अपने मायके में होती हैं , उन्‍हें बढिया कपडे , सुंदर गुडिया , चांदी , लकडी आदि के सुंदर खिलौने आदि श्‍वसुरों की ओर से मिलते हैं , ताकि वे आनंद से यह दिन बिताएं। 

श्रावण शुक्‍ला छठ को वाराह अवतार माना जाता है , श्रावण शुक्‍ल चतुदर्शी को श्री चंद्रिका महोत्‍सव केवल कपूरों में होता है , वे अपनी कुलदेवी चंद्रिका की पूजा करते हैं। पूर्णमासी को रक्षाबंधन या सलीनो होती है। आज बहने अपने भाइयों और ब्राह्मण अपने यजमानों के हाथ में राखी बांधते हैं। यह ऐतिहासिक पर्व बडे महत्‍व का है। आज सिमाई से पूजा होती है। घर के दरवाजों के दोनो ओर तथा दीवारों पर राम रोली आदि से लिखते हैं। उसपर भात , सेमई तथा राखी आदि चिपकाकर पूजा करते हैं। कहीं कहीं लोग दाल चावल रोटी आदि पुरखों के नाम पर दान करते हैं। भविष्‍य में भगवान रक्षा करें तथा पूर्वकृत पापों का ह्रास हो जाए , यह आज की पूजा का उद्देश्‍य होता है। कहीं कहीं माखन , दही , दूध , शहद , गोबर , गोमूत्र तथा कुशा आदि से पूजा होती है। सलीनों के दूसरे दिन दामाद और कन्‍याओं को निमंत्रित किया जाता है। अरूंधती समेत सप्‍तर्षियों की पूजा का विधान है। कजरी पूर्णिमा भी आज होती है , नवमी से किया एक सप्‍ताह का व्रत आज पूरा होता है।





सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

रथ यात्रा प्रसिद्ध त्योहार है.. भाग 5 .. खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी

रथ यात्रा प्रसिद्ध त्योहार है


ज्‍येष्‍ठ महीने की पहली अष्‍टमी को तीसरा बसिहुडा होता है। अमावस्‍या को बट सावित्री का त्‍यौहार मनाया जाता है। इसमें स्त्रियां अपने पति के कल्‍याण के लिए बरगद के वृक्ष की पूजा करती है। अमावस्‍या को स्त्रियों द्वारा मनाया जानेवाला एक और त्‍यौहार बेझरा भी है। इस दिन पोंजा मंसती है। गौरी की पूजा तथा अपने पति के कल्‍याण कामना के बाद विवाहित स्त्रियां घी में तले पकवान अपनी सासों या उनके न होने पर पति के अन्‍य संबंधिनियों को देती है। प्रत्‍येक पोंजा के बाद 'रानी पूजे राज को , मैं पूजूं सुहाग को' कहकर पूजा की जाती है। इस दिन के पोजें में कई तरह के अन्‍न होते हैं। शुक्‍ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा होता है। शुक्‍ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी होती है। पुरखों की स्‍मृति में यह व्रत किया जाता है। स्त्रियां तो 24 घंटे का व्रत रखती हैं। ब्राह्मणों को पुरखों के नाम पर दान दिया जाता है।


आषाढ की प्रथम अष्‍टमी को अंतिम बसिहुडा मनाया जाता है। इसे दाह-बैठउनी भी कहते हैं। चैत और बैशाख के बसिहुडे बडे होते हैं , देवी की पूजा होती है। कृष्‍ण पक्ष की दुईज को रथयात्रा होती है। जगन्‍नाथपुरी में आज के दिन बहुत बडा समारोह होता है। आषाढ के अंतिम दिन में व्‍यास पूजा को गुरूओं की पूजा धूमधाम से होती हैं। वैसे तो सभी जगह ये पूजा होती है , पर पंजाब में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।



शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

गंगा के पुनर्जन्म की कहानी .. भाग 4 .. खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी

गंगा के पुनर्जन्म की कहानी


बैशाख माह की पहली अष्‍टमी को दूसरा बसिहुडा होता है , यह देवी का त्‍यौहार है। स्त्रियां लोढे की पूजा करती हैं , बासी खाना खाया जाता है। इसके बाद अमावस्‍या को महुआ दान किया जाता है , शुक्‍ल पक्ष की तीज को अक्षय तीज होती है , उस दिन मृत पुरूषों की स्‍मृति में जौ का सत्‍तू , फल मिठाई , पंखा पानी से भरा झंजर तथा कुछ नकदी ब्राह्मणों को पुरखों के नाम पर दिया जाता है। इस पक्ष की सप्‍तमी को गंगा सप्‍तमी होती है , यह गंगोत्‍पत्ति का दिन माना जाता है। नौमी को जानकी जी का जन्‍म दिवस है , चौदस को नृसिंह चौदस होता है , इसी दिन नृसिंह अवतार माना जाता है। आज के व्रत में सायंकाल के समय केवल फल और दूध ही खाया जाता है। बैशाख , आषाढ और माघ ,,, इन्‍हीं तीनों महीनों की किसी तिथि में रविवार के दिन आसमाई की पूजा होती है। यह पूजा किसी भी कार्य की स‍िद्धि के लिए की जाती है। कहीं कहीं तो वर्ष में दो तीन बार ये पूजा की जाती है। आसमाई आशा पूर्ण करने वाली एक शक्ति है। प्राय: लडके की मां पूजा करती है और इस दिन नमक नहीं खाया जाता है।





शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

तीज पर्व का महत्व .. भाग 3 .. खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी

तीज पर्व का महत्व

चैत्र माह में ही आठ दिन बाद 'बसिहुडे की अष्‍टमी होती है , यह चार बसिहुडे में पहला होता है , देवी जी की पूजा होती है और बासी खाया जाता है। लखनऊ में धुरेरी को कोनेश्‍वर महदेव के चौक में मेला हेाता है , और अष्‍टमी को सआदतगंज में टिकैत राय के तालाब शीतला का बहुत बडा मेला होता है। दुर्गा अष्‍टमी के दिन देवी की हलवे से पूजा होती है , नारियल की भेंट भी दी जाती है। घर में सबों को हलवा पूरी और गरी प्रसाद में मिलता है। संबंधियों तथा मित्रों के यहां भी हलवा आदि प्रसाद बांटा जाता है , देवी जी की अग्नि के रूप में पूजा होती है।


8 दिन बाद परेवा से देवी व्रत आरंभ होता है। घी द्वारा दीपक की ज्‍योति की पूजा होती है। अष्‍टमी तथा नवमी को अविविाहित कन्‍याओं को भी देवी मानते हुए उनकी पूजा की जाती है। उन्‍हें नए वस्‍त्र तथा नकदी दीजाती है तथा भोजन कराया जाता है। शुक्‍ल पक्ष के प्रथम नौ दिन नवरात्रि के होते हैं , जो देवी भक्‍तों के लिए अत्‍यंत पवित्र होते हैं। देवी की प्रत्‍येक दिन नियमित समय पर पूजा होती है , प्रथम दिन की पूजा दुर्गास्‍थापन तथा अंतिम दिन की पूजा 'ज्‍योति बढानेवाली पूजा' कही जाती है। कुछ लोग नौ दिनों तक व्रत रखते हैं। अष्‍टमी की पूजा सर्वाधिक महत्‍व की होती है , पर काली दुर्गा और चंडिका के मंदिरों में नवें दिन अधिक भीड होती हैं और मेला भी लगता है। आज के दिन ही रामचंद्र जी का जन्‍म भी हुआ था , इसलिए अयोध्‍या के मंदिरों में आज भारी भीड रहती है। स्त्रियां अपने सौभाग्‍य के लिए अरूंधती व्रत भी करती हैं , जो वशिष्‍ठ जी की पत्‍नी थी।

चैत्र शुक्‍ला तीज को स्त्रियां अपने पति की शुभकामना के लिए गौरी की पूजा की जाती है। सभी विवाहित स्त्रियां घी तले पकवान अपनी सासों और उनके न होने पर पति के अन्‍य बडी संबंधिनियों को देती हैं। साथ में कुछ नकदी भी उन्‍हें दी जाती हैं। वे दोपहर तक व्रत रखती हैं , तब सौभाग्‍य वस्‍तुओं से पूजन तथा कथा के पश्‍चात मांग में सिंदूर लगाती हैं। कथा का प्रसाद मर्दों को नहीं दिया जाता है।

चैत्र शुक्‍ल पूर्णिमा कोजूनो पूनो भी कहते हैं , जिसके घर में लडका होता है , वहां यह पूा की जाती है , इसमें व्रत नहीं रखा जाता है , पांच या सात मटकी या करवा रंगकर पवनकुमार की पूजा की जाती है।



चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत



शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

आया होली का त्यौहार .. भाग 2 .. खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी

आया होली का त्यौहार 


पिछले अंक से आगे .... इसके अतिरिक्‍त प्रत्‍येक अमावस्‍या खासकर सोमवती अमावस्‍या पूजन का दिन होता है।  प्रत्‍येक रविवार सूर्यदेव का दिन , प्रत्‍येक सोमवार चंद्रदेव का दिन , प्रत्‍येक मंगलवार महावीर जी का दिन , विशेष तौर पर श्रावण मास के चंद्रवार शिवभक्‍तों के लिए और आषाढ मास के चंद्रवार शीतला और काली जी के भक्‍तों के लिए पवित्र दिवस है। प्रत्‍येक मंगलवार मंगलचंडी तथा हनुमान जी , का पवित्र दिन है तथा शुक्रवार शीतला भक्‍तों के लिए प्रसिद्ध दिन है। कुछ कृषकों के पर्व बैशाखी , आषाढी , नवा और मौनी अमावस आदि हैं। महीने में दो एकादशी के और दो प्रदोष व्रत हिंदू भी रखते हैं। पूर्णमासी का व्रत भी रखा जाता है। चंद्रग्रहण वाले पूर्णमासी और अमावस्‍या वाले पूर्णिमा को विशेष तौर पर दान , पुण्‍य तथा पूजा पाठ किए जाते हैं।


हमारे यहां जब ऋतुपरिवर्तन होता है , नया नया खेत बोया जाता है या पका खेत काटा जाता है तब होली , दीपावली , दशहरा जैसे विशेष पर्व किसी उद्देश्‍य से रखे गए हैं।अन्‍य त्‍यौहारों का भी , भले ही वे छोटे हों या बडे , कुछ न कुछ उद्देश्‍य होता है। ये त्‍यौहार मासिक क्रम में इस प्रकार मनाए जाते हैं .....

चैत्र माह के चारो सोमवारों को तिसुआ सोमवार कहा जाता है। तिसुआ सोमवार में जगदीश के पट्ट की पूजा होती है , पर उसी घर में जहां कोई जगन्‍नाथपुरी से हो आया हो। जगन्‍नाथपुरी जानेवाला ही व्रत रखता है , पहले सोमवार फूले हुए देवल और गुड से , दूसरे सोमवार गुड धनिया से , तीसरे सोमवार पंचामृत से तथा चौथे सोमवार गंगभोग या कच्‍चा पक्‍का हर तरह का पकवान बनाकर भोग लगाया जाता है।

चैत्र माह के परेवा को ही धुरेरी होती है। इस दिन 12 बजे दोपहर तक रंग खेलकर फिर नहा धोकर कपडे पहनकर पुरूष और बालक परिचितों के गले मिलते हैं तथा मेला देखते हैं। आज सबलोग पिछले बैर को भूलकर आपस में प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं। दामाद और कन्‍याएं भी धुरेरी के दिन निमंत्रित किए जाते हैं , आज से लोग जाडों के कपडों को तहाकर रख देते हैं और गरमी के कपडे निकालते हैं। दूसरे दिन भाई दुईज मनायी जाती है।





शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत..... खत्री लक्ष्‍मण नारायण टंडन जी

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत


हमारा नया वर्ष होलिका दहन के पश्‍चात चैत्र शुक्‍ल पक्ष प्रतिपदा से प्रारंभ होता है। हिंदू त्‍यौहारों के विषय में लोकोक्ति 'सात बार नौ त्‍यौहार' ठीक ही हैं। किंतु हिंदुओं के चार त्‍यौहार अत्‍यधिक महत्‍व के है। 1. रक्षाबंधन ब्राह्मणों का , 2. विजयादशमी क्षत्रियों का , 3. दीपावली वैश्‍यों का और 4. होली शूद्रों का है। पर इन चारो त्‍यौहारों को सभी वर्णों के लोग उत्‍साह , प्रेम और श्रद्धा से मनाया करते हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि हम हिंदू किस तरह एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव और एक दूसरे के त्‍यौहारों के प्रति श्रद्धाभाव रखते थे। इन चारो त्‍यौहारों को हम राष्‍ट्रीय त्‍यौहार भी कह सकते हैं।


इन राष्‍ट्रीय त्‍यौहारों के अतिरिक्‍त कुछ ऐसे त्‍यौहार या पर्व हैं , जिन्‍हें हम धार्मिक पर्व या उत्‍सव कह सकते हैं। इन दोनो में भेद स्‍पष्‍ट देखा जा सकता है। जहां ये देश व्‍यापी चारो त्‍यौहार कश्‍मीर से कन्‍या कुमारी और पंजाब मुंबई से बंगाल आसाम तक मनायी जाती हैं , वहीं धार्मिक पर्व स्‍थान विशेष पर मनाएं जाते हैं। उदाहरणार्थ काशी में शिवरात्रि , अयोध्‍या में रामनवमी , मथुरा में कृष्‍णाष्‍टमी , महाराष्‍ट्र में गणेश चौथ जैसे कुछ पर्व खास खास जगहों पर अधिक धूमधाम से मनाए जाते हैं। पर किसी न किसी अंश में अन्‍य प्रदेशों में भी ये धार्मिक त्‍यौहार मनाये जाते हैं।

इनके अतिरिक्‍त कुछ ऐसे भी पर्व होते हैं , जिनका संबंध हमारे पुरखों से होता है। पितृ विसर्जन अमावस्‍या , पितृ पक्ष , अक्षय तीज , निर्जल एकादशी तथा मकर संक्रांति आदि कुछ पर्व ऐसे ही हैं। कुछ पर्वों का संबंध गुरू से होता है , व्‍यास पूजा , वसंत पंचमी आदि इसके उदाहरण है। कुछ पर्व केवल स्त्रियों के होते हैं , जैसे तीज , हरियाली तीज , कजली तीज , करवा चौथ आदि। कुछ पर्व त्‍यौहार विशेष जाति , विशेष समुदाय या विशेष क्षेत्र में भी प्रचलित हैं। ऐसे त्‍यौहारों के बारे में जानकारी भी दूसरे लोगों को नहीं होती।

हमारे अन्य त्यौहार :-------










रविवार, 29 अगस्त 2010

खत्रियों के अल्‍ल ( श से हौ) ...खत्री हरिमोहन दास टंडन जी.)

शंकधारी , शंभु , शकरसिंधे , शकारि , शखरा , शगुने , श्‍ग्‍लूना , शनपमर , शनिश्‍चरा , शपथ , शब्‍बार , शमशो , शराज , शराफ , शहवानी , शहवार , शहूत , शादराज , शानकारी , शारा , शालगार , शलूचा , शलोती , शावल , शावानी , शासन , शाह , शाहदुराज , शाहसेन , शाही , शाहूता , शिरालकर , शिवनी , शिवपुरी , शुक्‍ला , शुपत , शूरशाही , शेशवाल , शैलोकी , शैलाकी , शोई , शोगरी , शोचर , शोत , शोधे , शोभी , शोरिया , शोशवाल , शोहर , शोहाल , शौकत , शौचहर , शौम्‍हर , शौरानी , शौलिया शौशनी , शौहर , श्रवण , श्रीगिरी , श्रीधरी , श्रीरलकेर, श्रीनमख , संखचारी , संगड , संगरवार , संगी , संगोतिये , संचल , संढोजे , संतराया , संदराज , संदरैया , संदेली , संदेसी , संदीज , संधोज , संधोरिये , संध्‍वा , संभरवाल , सबरवाल , सभरवाल , सउडिल , सकडा , सकरवाल , सखेर , सगुण , सग्‍गे , सग्‍गो , सचदेव , सचहर , सच्‍चड , सचदेना , सजपाल , सजैया , सटहरे , सटोपा , सटखे , सठखेरे , सडिकेर , सतजा , सतिये , सती , सतेजे , सदरैया , सदा , सधवरे , सधानी , सधैया , सनेजे , सपथ , सपरेजा , सपील , सप्‍परा , सफडे , सफदनी , सबाहिया , सबीड , सभी , समरवाल , समी , समीकुक , समूचा , समात , सरकत , सरेथ , सरनी , सरसी , सराई , सराकी , सरोजे , सरोहरी , सलवाई , सला , सलाई सलूजे , सलोजये , सलोत्री , सवाई , सवई , सवारेजी , सहगल , सहजरे , सहजडे , सहमनी , सहवरिये , सहहारा , सहारण , सहारन , सांपमार , सा , सागिया , सातपुते , सातेपुणे , साधु , सादीबोटी , सानी , सामह , सारदार , सारराद , सावरी , साहनी , सहनी , साही , साहू , सिंगरी , सिंगर , सिंदुरिये , सिंधराया , सिंधवड , सिक्‍के , सिक्‍ख , सिदलिंग , सिदुसा , सिद्ध , सिद्धवतो , सिधराया , सिधवानिये , सिधार , सिवरगट्टी , सिरिगिरि , सिल्‍ली , सिंगी , सींधवड , सीकरी , सीके , सुंठिया , सुखरे , सुखेजा , सुचि , सुडिआ , सुदान , सुद्ध , सुधने , सुनना , सपूत , सुपत , सुबनगी , सुरेपन , सुर्जिया , सुलेखि , सुलेगावि , सुवन्‍ना , सुवन्‍नी , सुहेला , सूचि , सुतडे , सुति , सूर  सूरशाही , सूरिया , सूरी , सेठ , सेठी , सेता , सेनानी , सेनी , सेनीगंग , सेवकी , सेवी , सेसाडिन , सैनी , सोठी , सोथिया , सोदनी , सोदान , सोनजी , सोनटक्‍के , सोनपल , सोनपार , सोनी , सोनेजी , सोनीसोर , सोभरेजे , सोमंधा , सोमो , सोमेश्‍वर , सोमेसर , सोरठीया , सोरवाल , सोलवाल , सोलंकी , सोलटा , सालापुरकर , सोलिया , सोवांतो , सोहन , सोहराथी , सोहरान , सीहवाथी , सोहारी , स्‍वता , स्‍वाती , स्‍वादा , हंजा , हजोजे , हंठा , हंडा , हंडारी , हंडीफोर , हदे , हंस , हंसमुख , हंसराज , हंसरानी , हंसल , हजसी , हटाडी , हड , हडे , हडपे , हड्डा , हतिया , हथपइया , हथपैया , हदिया , हवीब , हमजागर , हरगण , हरजाई, हरजानी , हरजो , हरणेजे , हरनेजा , हरमसागर , हरमेजे , हरयानी , हरली , हरबै , हरपण , हरसबाट , हरहदिमा , हरहरिया , हरिया , हरीजा , हरीठे , हरेना , हरना , हलवानी , हलाली , हल्‍दवा , हवचातोबई , हबजोतोबई , हसटक्‍के , हहोजे , हांडीफोर , हांडीगीर , हाली , हावनूर , हाबी , हिंदवानी , हिंदाना , हिल्‍ले , हुआ , हुड , हुवन , हुलेरा , हुंगर , हेकड , हैहैया , होजा , होड , होडिये , होमकी , होलिखा , होबिया , होवे , होसमनि , हौलिया  !!






शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

हमारे मान्‍य देवी देवता ... भाग 3 ... श्री लक्ष्‍मी नारायण टंडन जी


दोनो अंको में आपने पढा .... इन देवी देवताओं के अतिरिक्‍त संस्‍कारों के समय नवग्रहों की पूजा होती है। सूर्य नवग्रहों में प्रमुख हैं। कोई भी धार्मिक कृत्‍य नवग्रहों के बिना पूरा नहीं होता। सूर्य का महत्‍व पृथ्‍वी और उसके जीवन के लिए कितना है तथा मनुष्‍य के भाग्‍य पर नवग्रहों का प्रभाव कितना है , यह सर्वविदित है। सेठों के यहां गर्भवती स्‍त्री के लिए 'बुड्ढे बाबू' की पूजा भी वास्‍तव में सूर्य की पूजा है। यूं भी प्रत्‍येक दिन स्‍नान के बाद हिंदू सूर्य को अर्घ्‍य देते हैं। सूर्य प्राणयाम या सूर्य नमसकार भी पूजा और व्‍यायाम के मुख्‍य अंग हैं। वैसे ही चंद्रमा का नवग्रहों में द्वितीय स्‍थान है। जैसे रविवार को हिंदू व्रत रखते हैं , वैसे ही चंद्रवार को भी रखते हैं। प्रतयेक संस्‍कार में सूर्य की भांति चंद्र की भी पूजा आवश्‍यक है। करवा चौथ , शरद पूनो , गणेश चौथ आदि में चं्रदमा का ही पूजन होता है। सूर्य बल , शक्ति , प्रताप तथा तेज के दाता हैं। रूद्र या मंगल युद्ध के देवता हैं। बुध बुद्धि विद्या का देवता है। बृहस्‍पति संपत्ति समृद्धि तथा वाक् शक्ति के देवता हैं। शुक्र धन , प्रतिभा , प्रेम तथा वैभव के देवता हैं। शनि , राहू और केतु अशुभ ग्रह समझे जाते हैं। इनकी कोपदृष्टि न पउे , ये देव रूष्‍ट न हों , यही सोंचकर संस्‍कारों के समय इनका पूजन होता है। 

नवग्रहों के अतिरिक्‍त पंचतत्‍वों की भी पूजा खत्री जाति के संस्‍कारों तथा अन्‍य धार्मिक कृत्‍यों के अवसर पर होती है। अग्नि तथा जल की पूजा विशेष तौर पर होती है। अग्निदेव की संतुष्टि के लिए यज्ञ तथा हवन करना प्रत्‍येक उत्‍सव में आवश्‍यक है। प्रत्‍येक धर्मभीरू हिंदू सुबह शाम अग्निहोत्र करता है। भोजन करने के पूर्व एक रोटी और थोडा सा दाल चावल चूल्‍हें में डाल दिया जाता है। यह अग्निदेव के प्रति समर्पण है। अब भी पुराने विचारों के कुछ वृद्ध धार्मिक कृत्‍य पंच महायज्ञ करते हैं। नगरकोट में ज्‍वाला की ज्‍योति की पूजा , होलिका दहन में अग्नि की पूजा , दुर्गाअष्‍टमी आदि दिनों में प्रचलित पूजा सब अग्निदेव की ही पूजा है। विवाह संस्‍कार पर तो केवल हवन और यज्ञ नहीं होता है , वरन् अग्निदेव पति और पत्‍नी के संबंध के साक्षी स्‍वरूप माने जाते हैं। एक विशेष प्रकार की लकडी से अग्नि उत्‍पन्‍न करके जो अग्नि आधान कहलाती है , अनेक संस्‍कारों में अग्निदेव की पूजारूपी हवन होता है। प्राचीन काल में ऋषि मुनि नित्‍य हवन किया करते थे , अब भी कछ धर्मात्‍मा हिंदू नित्‍य हवन किया करते हैं। हमारे धर्मग्रंथो में अग्निपूजा का बहुत महत्‍व है , प्राचीन आर्य तो अग्नि जल और प्रकृति के अन्‍य अवयवों के पूजक थे ही और उनके वंशज होने के नाते समस्‍त रीति रिवाज हम अपनाए हुए हैं।

अग्नि के अतिरिक्‍त जल की पूजा भी प्रत्‍येक धार्मिक कृत्‍य में होती है। पवित्र मंत्रो द्वारा इंद्र का आह्वान हर संस्‍कारों के अवसर पर होता है। गंगासागर में स्‍नान का महत्‍व सर्वविदित है। गंगा जी हमारे यहां माता कहलाती हैं। महानदी , गोदावरी , कृष्‍णा , कावेरी , नर्मदा , ताप्‍ती , यमुना , सरस्‍वती , सरयु आदि सब नदियां हमारे यहां पवित्र मानी जाती हैं। संस्‍कारों के समय वैदिक मंत्रो द्वारा इन पवित्र नदियों का ीाी आह्वान किया जाता है। जल के देवता वरूणदेव की पूजा और समुद्र स्‍नान का भी हमारे यहां बडा महत्‍व है। जगन्‍नाथपुरी में समुद्रद्वार तथा दक्षिण में कन्‍याकुमारी आदि में समुद्र स्‍नन आदि का बडा महत्‍व है। सारस्‍वत ऋषियों ने सरस्‍वती नदी के तट पर ही वेदों का पठन पाठन किया है। गंगातट पर रहकर प्राचीन ऋषियों ने वेद पुराणादि धर्मग्रंथों का प्रचार प्रसार किया। सरस्‍वती नदी के तट पर वेदों के ज्ञान का प्रचार प्रसार हुआ था। इसलिए सरस्‍वती देवी के रूप में हमारे यहां विद्या ज्ञान और कला की देवी मानी गयी। आज भी गंगा तट पर ही अनेक संस्‍कार किए जाते हैं। मृत्‍यु के समय गंगा जल या तुलसीदल का प्रयोग होता है। मृत्‍यु के पश्‍चात अस्थियां गंगा जलमें ही विसर्जित होती हैं। गंगा से कृषकों को कितना लाभ होता था , गंगा आवागमन का उन दिनों कितनी अच्‍छी साधन थी , गंगाजल कितना स्‍वास्‍थ्‍यवर्द्धक है , आदि भावों से कृतज्ञता के रूप में हिंदुओं ने उनकी पूजा आरंभ की। हम कितने उदार थे , उपकारी के लिए कृताता का भाव प्रकट करना हमारी प्रकृति में था , चाहे वो जड हो या चेतन।


बुधवार, 25 अगस्त 2010

हमारे मान्‍य देवी देवता ... भाग 2 ... श्री लक्ष्‍मी नारायण टंडन जी

ब्रह्मा , विष्‍णु , महेश के अतिरिक्‍त वैदिक युग के देवताओं का पूजन भी हमारे यहां होता है ...
1,  इंद्र या वरूण .... ये जल के देवता हैं , समुद्र के मालिक हैं , बिजली, बादल और वर्षा के भी । सत्‍य है कि उनकी पूजा विष्‍णु और शिव की भांति प्रचलित नहीं है , किंतु विवाहादि शुभ कार्यों में इंद्र आदि देवों की पूजा के निमित्‍त वेद मंत्रो का उच्‍चारण होता है।

2, अग्निदेव ... ये भी वैदिक देवता हैं , शुभकार्यों तथा संस्‍कारों के समय अग्निदेव की भी पूजा होती है। यज्ञ और हवन तो हमारे यहां प्रत्‍येक शुभ कार्यों में होना अनिवार्य हैं।

वास्‍तव में प्राचीन समय में प्रकृति के समस्‍त अवयवों के प्रति कृतज्ञता तथा श्रद्धा का भाव प्रकट करने के लिए हिंदुओं ने उन्‍हें देव रूप दिया। यही कारण है कि वायु ,सूर्य और चंद्रमा भी हमारे यहां देवता हैं।
शक्ति के भक्‍त दुर्गा , काली आदि विभिन्‍न नामों से शक्ति की पूजा करते हैं।
राम तथा कृष्‍ण के मंदिरों की तो भरमार प्रत्‍येक नगर और गांव में मिलती हैं।
हनुमान जी की पूजा भी हिंदुओं में व्‍यापक है। उनके मंदिर भी प्राय: हर कहीं मिलेंगे। वे शक्ति , ब्रह्मचर्य , सेवाभाव और वीरता के प्रतीक हैं। उन्‍हें वायु पुत्र कहा जाता है। प्रत्‍येक अखाडे में जहां पहलवान कुश्‍ती लडते हैं तथा प्रत्‍येक कूप के निकट उनका मंदिर तथा आला होता है। वे भय और संकट में हमारी रक्षा करनेवाले माने जाते हैं।
 गणेश जी भी हमारे यहां विघ्‍न हरण , मुद मंगलदाता , ज्ञान तथा विद्यादायक , तथा पापविनाशक के रूप में पूजे जाते हैं। कोई भी शुभ कार्य बिना उनकी पूजा के संपन्‍न नहीं हो सकता। बच्‍चों के पढाई आरंभ करने पर उनकी तख्‍ती पुजायी जाती है और उसमें श्री गणेशाय नम: लिखा जाता है। यही नहीं , प्रत्‍येक नए खाते या नए घर मेंगणेश याद किए जाते हैं। कवि , वेदांती विद्वान सभी अपने कार्य की सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए गणेश वंदना करते हैं। राजा और व्‍यापारी तो उनकी पूजा करते ही हैं। प्रत्‍येक मास की शुक्‍ल पक्ष की गणेश चौथ को स्‍ित्रयां व्रत रखती है। माघ मास की चौथ तो अत्‍यंत शुभ मानी जाती है। उस दिन संकटतेवता के नाम से उनकी पूजा की जाती है। उनके चार हाथों में गदा ,चक्र , पुस्‍तक या मोदक होता है। मोदक उन्‍हें बहुत प्रिय है। उनका मस्‍तक हाथी का है और चूहा उनका वाहन है।
कहीं कहीं भैरव या भैरों जी की पूजा भी होती है। कुत्‍ता उनका साथी है। भैरव भक्‍त मांस मदिरा से परहेज नहीं रखते।
इसके अलावे अनेक स्‍थानों पर सप्‍तर्षियों की भी पूजा होती है।  नवग्रहों की पूजा की चर्चा अगले अंक में की जाएगी। जगह जगह पर अन्‍य स्‍थानीय देवी देवताओं की भी पूजा होती है।

सोमवार, 23 अगस्त 2010

हमारे मान्‍य देवी देवता ... भाग 1 ... श्री लक्ष्‍मी नारायण टंडन जी


वैदिक और ब्राह्मण धर्म के मानने वाले मूर्तिपूजक हिंदू निम्‍नलिखित देवी देवताओं की पूजा करते हैं ....

1, ब्रह्मा .... सृष्टि और ब्रह्मांड के निर्माता ब्रह्मा जी को ही माना जाता है। त्रिदेवों में इनका प्रथम स्‍थान है। इनके चार मुख है , जिनसे चारों वेदों का प्रादुर्भाव हुआ है। भगवान की रजोगुणी शक्ति , जो निर्माण करती है , वही ब्रह्मा हुई।

2, विष्‍णु ... त्रिदेवों में बसे अधिक महत्‍व विष्‍णु का है। वे संसार के रक्षक हैं। हिंदुओं में ब्रह्मा जी की पूजा से अधिक पूजा का प्रचार इन्‍हीं देव का है। ईश्‍वर की सतोगुणी रक्षा करनेवाली शक्ति का नाम ही विष्‍णु है।

3, शिव या महादेव ... त्रिदेवों में तीसरेनंबर पर शिव हैं। आप संसार के नाश के देवता हैं। ईश्‍वर की वह तमोगुणी महान शक्ति , जो अंधकार अथवा अज्ञान के संहार का काम करती है उसका नाम शिव है। शिवभक्ति का प्रचार भारत के हिंदुओं में अधिक है।

अस्‍तु हमने देखा कि परब्रह्म परमात्‍मा ही सर्जना , रक्षा और संहार के स्‍वामी है , उसी ईश्‍वर के ये तीन नाम ब्रह्मा , विष्‍णु और महेश हैं। अलग अलग कार्य की भांति उनके रंग और विशेषताएं भी भिन्‍न हैं। ब्रह्मा रक्‍त रंग के विष्‍णु श्‍याम तो शिवश्‍वेत हैं। शिव को नीलकंठ भी कहते हैं , क्‍यूंकि समुद्र मंथन के समय निकले विष का पान कर उन्‍होने देवताओं और दानवों की रक्षा की है। समसत दूषणों और पापों के शमन करने की शक्ति जिनमें हो , वह नीलकंठ हैं। कल्‍याणकर्ता शिव का निवास स्‍थान कैलाश है। सर्प उनके शरीर से लिपटे रहते हैं। उनकी जटा पर गंगा जी और मस्‍तक पर चंद्रमा सुशोभित है। वन्‍य मूल फूल फल उन्‍हें प्रिय हैं। लिंग चिन्‍ह स्‍वरूप का प्रतीक है , क्‍यूंकि सृजन शक्ति शरीर के इसी अंग में समाहित है। शैवों का गढ काशी है। शिवपुराण तथा उत्‍तम पुराण शैवों के प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। नगर तथा ग्राम के प्रत्‍येक मुहल्‍ले में बस्‍ती में अवश्‍य ही एकाध शिवालय हुआ करता है। जहां समस्‍त हिंदू शिव जी की पूजा बेलपत्र , धतूरा , भांग फूलों और ुलों से करते हैं। शिवभक्‍त रूद्राक्ष की माला धारण करते हैं। प्रतयेक धर्मात्‍मा नर नारी शिवरात्रि का व्रत रखता है। मंदिरों में बम भोला शंकर की ध्‍वनि के साथ घंटों की ध्‍वनि आपको सर्वत्र सुनाई देगी।

ऐसा नहीं है कि जो वैष्‍णव हों , वो शिव जी की पूजा नहीं करें। किंतु वैष्‍णवों और शाक्‍तों में कुछ भेदभाव होता है। वैष्‍णव कभी भी मांस का स्‍पर्श नहीं करेगा , पर शैवों में कुछ को मांस खाने से आपत्ति नहीं। कुछ तो भंग और मदिरा तक का पान करने में नहीं हिचकते , पर वैष्‍णव में मदिरा पान वर्जित है। शैव त्रिपुण्‍ड लगाते हैं , मस्‍तक में सीधी रेखाएं भष्‍म या चंदन की , पर वैष्‍णव यदि रामानंदी हुए तो सीधी तीन रेखाएं और यदि कृष्‍ण भक्‍त वैष्‍एाव हुए तो दो रेखाएं खडी मस्‍तक पर लगाते हैं। शैव रूछ्राक्ष की और वैष्‍णव तुलसी की माला का प्रयोग करते हैं। शैवों में रहस्‍यात्‍मकता तथा एकांत और मरघट आदि को अधिक मान्‍यता दी जाती है , जबकि वैष्‍णवों को उत्‍सव और आनंद में भाग लेने का आदेश है।

ब्रह्मा , विष्‍णु और महेश के अतिरिक्‍त अन्‍य देवी देवताओं का पूजन भी हमारे यहां होता है , जिनके बारे में अगले आलेख में जानकारी दी जाएगी।



रविवार, 8 अगस्त 2010

खत्रियों के अल्‍ल ( य से लौ) ...खत्री हरिमोहन दास टंडन जी.)

यंगचावने , यंतरयार , यकड , यती , यरकने , यरनियगा , यरोरन , यलर , यलतानी , यलाबंड , यहदीरेत , यहाना , यहाने , यांदा , यांदी , याठ , यारद , याहमे , येजे , येदाह , योनहे , योरगी , योल , योहंयाल , रंगडा , रंगपुर , रंगभूजे , रंगरेज , रंगरेच , रऊरेजे , रघुपति , रघुराया , रघुराई , रघुवंशी , रचपातोजी , रचला , रचासेशियान , रछपाल , रजगल , रजल्‍ली , रजबोहडे , रडी , रजेडे , रढिहवा , रलकनिये , रतकीजिये , रतन , रतनपाल , रतल , रतवानी , रनचेना , रनदेव , रपकजी , रवारा , रबिया , रमली , रलन , रलवाइये , रवस्‍या , रवासिया , फेसिया , रसपुत्रा , रसभुअरा , रसभुदरा , रसवाल , रसान , रसीवट , रहानिया , रहिमान , रहेजे , राइसमानवी , राऊत , रावत , राखडा , राजपाल , राजपूतने , राजपूतान , राजने , राजमहल , राजवते , राजवाना , राजवाल , राजवे , राजशाही , राजानी , राजाबाढा , राजिया , राजोली , रातकालजिया , राबडे , राना , रावेडी , रामगादी , रामदेव , रामिया , रायजादे , रायबागी , रारवीर , रारा , रावल , राहीजे , रिका , रूआने , रूखे , रूठेजे , रूपकठोर , रूसीदलानरे , रेगरा , रेयाई , रेलन , रेली , रेवडी , रेहाल , रैंहा , रोकवाये , रौकरिया , रोखती , रोचक , रोजा , रोडी , रोडीराम , रोडेगे , रोढा , रोना, रोनिये , रोपडे , रोयडे , रोरा , रोहनिया , रौछ्री , लंकापुर , लंगठ , लंबा , लुम्‍बा , लांबा , लई , लकडे , लकमी , लक्‍खी , लक्षणे , लखकेहर , लखडी , लखणहार , लखतुरा , लखतुर्रा , लखदंता , लखनपाले , लखनी , लखानी , लखेजे , लखरिया , लगानी , लजानिये , लटकन , लठला , लथीला , लदवा , लानिये , लब्‍बी , लभरिया , लमलली , लम्‍हक , ललते , लल्‍ले , लवाणी , लवेक , लर्वया , लहवर , लहेजे , लांडगू , लाखडे , लातपोतु , लातीपाल , लादवा , लालपागा , लालपग्‍गा , लालमुना , लालमुन्ना , लिक्खिए , लिडानी , लीया , लुझड , लग्‍घे , लुधेरे , लुलजे , लुलवाज , लुला , लुलाय , लूथरा , लेखडे , लेमरीया , लेवा , लेहा , लोइट , लोकपाल , लोगन , लागिया , लोछानी , लोटी , लोटफा , लोती , लोपाल , लोबा , लोमटे , लोमड , लोमवड , लोहइहुक , लोहाना , लोहारी , लोहिया , लौगिया !!







शनिवार, 7 अगस्त 2010

खत्रियों के अल्‍ल ( भं से मौ) ...खत्री हरिमोहन दास टंडन जी.

भंडरा , भंडारी , भंतडादी , भंवइए , भड्डा , भकानी , भकोरी , भगडे , भगत , भगनेजे , भगधारी , भगरेजे , भगाजयी , भगादी , भगेडा , भचानी , भछडा , भजिये,  भटनाई , भटनेरी ,भटयानी , भटरिया , भटरेजे , भटेजा , भट्टा , भठेजे , भडकने , भडारिये , भड्डी , भदवा , भद्दे , भद्दा , भधले , भधार , भनेजे , भभवानिये , भभरानी , भभराने , भभरेजे , भभेरी ,भभ्‍यहांकि , भरखने , भरवाल , भरत , भरद्वाजी , भारद्वाज , भरनी , भरभेदी , भरवाही , भरसनिये , भराडे , भर्सन ,भलानी , भलूता , भल्‍ला , भवाइये , भनेसीजा , भसीन , भहेल , भांडगे , भाखेल , भागजे , भागहर , भाजरतबी , भाजिये ,भाटिया , भाठरिये , भाठे , भातरखाने , भानजीरे , भानिये , भामदिल , भारत , भारती , भारवाही , भारे , भालेन , भावडोया , भावदस्‍या , भावने , भाबरवा , भाहत्‍यासत्‍या , भाहांकि , भिरातिये , भीमर , भील , भुच्‍चड , भुछडो , भुडादी , भूत , भूते , भुरे , भूछडा , भूटानी , भूमकर , भूरिया , भूसरी , भोछन , भेडा , भेदानी , भेरी ,भेवा ,भोगधारी , भोगरा , भोगर , भौछडा , भोजगिरी , भोजपन्‍ने , भोजपत्री , भोजरटनी , भोजराय , भोडे , भोतने , भोरपालने , भोरानिये , भोलाने , भोलासिके , भौंकमार , भौछा , भौरंगे , मंकोडी , मंगमधरे , मंगल , मंगलवार , मंगलानी , मंगवाने , मंगोटिये , मंगोलिया , मंजीठी , मंदुरा , मदूरा , मकडिया , मकबाने , मकर , मकरिया , मकाती , मकानी ,मकोडिया , मकोडे , मकोरे , मक्‍खी , मकला , मखना , मखले , मखशाला , मखचूस , मखुआ , मगजि , मगजीकोडा , मगडिया , मकरिया , मगरा , मगरूरा , मगसेर , मगहरा , मगही , मगूरा , मगे , मगोभी , मगोई , मर्थक  , मग्‍गा , मग्‍गो , मघखान , मघवन , मधुआ , मच्‍छड , मछर , मजता , मजने , मजराल , मजाई , मजीरा , मटविया , मटीजा , मढे , मणियार , मतवक , मदरा , मदान , मधवा , मधवी , मधंक , मधुकने , मनकी , मनकुंडी , मनके , मनचंदे , मनजाल , मनमोर , मनहता , मनहारा , मनाहा ,मनुआ , मनोक , मनोहरा , ममा ,,मसूरा , मरकट , मरवी , मरकनी , मरकर , मरक्‍तैनी , मरग , मरगाई , मरथक , मरदंती , मरदत्‍ती , मरदी , मर्दी , मरमुआ , मरवाहे  , मर्वी , मगोई , मर्थक , मलक , मलख , मलखन , मलखमंजीरा , मलगढ , मलगी , मलजि , मलार , मलित , मलिता , मल्‍ले , मलहोत्रा , मलोत्‍तरे , मेहरे , मसाकी , महंगी , महंत , महंता , महतता , महथा , महरा , महरावीय , महाकुच , महाजन , महान ,महाय , महालदार , महीव , मसाला , महेन्‍द्र , महेरे , मांटे , मांडजे , मांधु , मागडे , माटिर , मातपोतरे , माधी , माधुर , मानकटाहर , मानकटोह , मामतुर , मामतोरा , मामलातुरा , मयनये , मारी , मामलडि , मालगुर , मालदार , मालन , मालवंती , मालवी , मालापुरे , मालिया , माहमी , माही , मित्रा , मिनकती , मिनकेति , मिनरिया , मिरजकर , मिरैया , मिसकीन , मिमियाल , मुंह , मुंहचगा , मुहवंगा , मुकताली , मकेर , मुखाइये , मुगलानी , मुच्‍छ , मुडिया , मुथरा , मुदिया , मुनहि , मुनारा , मुरगई , मुरगाई , मुरझाने , मुर्झाना , मुरल , मुरादाबादी , मुगलन  , मुलबीजे , मुलहान , मुलिये , मूंगे , मूचर , मूता , मूलरिया , मेगजी , मेकमदन , मेघराज , मेत्राणी , मेदिया , मेधिया , मेधिआ , मेर , मेलिये , मेहंदी , मेहता , मेहरवाडे , मेहवीरता ,मेहन , मेहरवाडे , मेहरा , मेहरोत्रा , मिहरोत्र , मिहरोत्रा , मैनराव , मैनरिया , मैलवार , मोगा , मोइये , मोखाना , मोगर , मोदर , मोडरी , मोदन , मोदा ,मोदिया , मोदी , मोदे , मोनी , मोरनिया , मोरपंखी , मोरे , मोलरे , मोलीवाड , मोहण , मोहरा , मोहरे , मोजवर , मौनवार , मौनसिल , मौना , म्‍हेर , म्‍हाणेवाढा ।






शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

खत्रियों के अल्‍ल ( पं से बौ) ...खत्री हरिमोहन दास टंडन जी.)

पंखौ , पंगे , पंचपकालि , पंचवेदी , पंचाल , पंचु , पंचे , पंच्‍छे , पंजमने , पंजरंडे , पंजाजडी , पंजाबे , पंजाभूत , पंडेरे , पखुरा , पचंडे , पजैला , पटपटिया , पतोला , पट्टीखर , पट्टण , पडतने , पडाल , पडीआ , पडेर , पतमी , पत्‍ता , पतोला , पथरा , पदवासी , पधीजे , पधौला , पधैला , पनवार , पनवारो , पनवानी , पनहारी , पनेरह , पन्‍नी , पयोलल्‍ला , परचंडा , परमली , परासी , परेम , परेयानी , परोथी , पलटा , पलथन , पलपजलते , पलाई , पलाही , पलाहा , पवार , पवेजे , पशीमन , पसरा , पसरेचे , पहलते , पहवा , पहोजा , पहोलर , पहोचे पांचरा , पांजडा , पांजिया , पांडू , पांदा , पांदी , पाकर , पाखर , पागढे , पाटन , पाटील , पाडा , पातलिया , पातार , पाधा , पानागी , पापा , पायलाजी , पायोलल्‍ला , पारा , पाराशर , पाल , पालसिया , पालेकर , पालोज , पालोय , पासी , पासंग्‍या , पिढारी , पिनझारी , पिनाकी , पिशावरे , पडिकेर , पुंछी , पुंछरी , पुडेकर , पुथरेजे , पुनतीजे , पुम्‍हनी , पुराग , पुरी , पुरोमनी , पुल्‍याणी , पुशकरी , पुहली , पूजारी , पूल , पृथु , पेंक्‍ट , पेंटू , पेडी , पेतरमेढर , पेनचढूरिया , पेलान , पैबू , पैगे , पोंजी , पोखल , पोछक्‍या , पोजरी , पोथंगा , पोथा , पोपल , पोपलाया , पोपा , पोलपुअर , पोलावल , पोलियार , पोहली , पोहा , पौछक्‍का , पौ‍हारी , प्रमाणी , प्रोरधा , फक्‍कर , फक्‍कड , फखयार , फटखार , फपणीया , फलकिया , फलचढा , फलदा , फलवहे , फल्‍ले , फांकिपा , फाडके , फुतीले , फुनकमर , फरकना , फुरकने , फलदा , फूलपकार , फूलवालिये , फुला ,फुलिया , फुलीभल , फूलोवालिये , ुवलीवाल , फूकमार ,फूल , फूलपंखी , फूलमाल , फूलर ,फूला , फूले , फेसिमा , फोलती , फोहिया , फौजी ,फौलारी , बंकापुर , बंकामुख , बंगुठला , बगता , बगरिया , बगाई बग्‍गा , बघावन , बघेले , बजबजा , बजाज , बजाह , बटल , बठले , बठेजा , बडंडा , बडतने , बडवा ,बडी ,बदी , बडहोत्रा , बडेडो , बतवनी , बतरा , बतरे , बत्‍ते , बत्‍था , बदवा , बदहरे , बदानी , बेदराजे , बद्दी , बधावन , बनासिया , बनिहाना , बनेलिसे , बपैत , बबर , बबलनीधू , बम्‍हौ , बरतोरा , बराठ , बरेया , बरोपद , बर्द्धवान , बलंदी , बलगुर , बलाते , बलनिधु बलवंता , बलवेजे , बलसुहाई , बलहोत्रा , बलियार , बलिये , बलूचे , बसंती , बसव , बसुदे , बसेजे , बस्‍सी , बहकी , बहदरिया , बहवी , बहियार , बहालिये , बहुरंगे , बहुरे , बहेन ब्रह्मचर , बांका , बांगपाइये , बांगे , बांदा , बांदे ,बाबी , बाकले , बांकले , बाखरे , बाखिंदे , बारतुरे , बागीचा , बाजरी , बाजूनेगे, बाडा , बाणिये , बाद , बानथरी , बावेजी , बावले , बार , बारड , बारडे , बारभि , बारभिया , बारहोत्री , बारे बालखीरन , बालगीर , बालबीरन ,बाल्मिकी , बाल्मिकि , बालाजी , बासल , बासिया , बारड , बाहगुरू , बाहरी , बाही , बिक्‍कवा , बिछुवे , बिज , बिदराल , बिछ्री , बिनहरा , बिवोडी , बिरंच , बीरमाल,  बिलाया , बिल्‍ले , बिसार , बिपभा , बिहारी , बीछी , बुंटी , बुखारे , बुखीज , बंधरेजे , बुधवार , बुद्धवार , बुद्धवाल , बंधवला , बुरबुरे , बूचकी , बूछड , बेगल , बेघर , बेदराल , बेदा , बेबिनकट्टी , बेराय , बेराया , बेरी , बेसी , बेहर , बैदरा , बैनी , बोचगेरि , बोटी , बोटे , बोबडे , बोमडे , बोसिया , बोरी , बोरोच्‍चा , बोलबिहा , बोसमिया , बोहरा ,बोहरे , ब्रजमनि , ब्रजसर , ब्रीमि।।








गुरुवार, 5 अगस्त 2010

खत्रियों के अल्‍ल ( दं से नौ ...खत्री हरिमोहन दास टंडन जी.)

दंगली , दंदोसी , दउयाणी , दगचंद , दगड , दगभरीला , दगीचा , दगिया , दतडा , दत्‍थल , दधिया , दनडा , दमतकरे , दमाम , दमौडा , दबकने , दबरैल , दबरल , दयानी , दरगन , दरज , दरधिया , दरया , दलबंजन , दलही , दलानिया , दलिये , दल्‍लालिया , दशवाल , दसू , दस्‍सू , दहके , दहगलानी , दहतारिये , दहरानी , दहल , दहिका , दहोचा , दहीजे , दहोरा , दांदरा , दंधिडा , दाणेज , दादरे ,दादसुना , दादीपोता , दानि , दामडी , दामन , दामुसा , दास्‍वहर , दारीला , दावडीहा , दावडे , दासा , दाहडे , दाहवले , दिक्‍कन , दिवरा , दीवरा , दीक्षण , दीदाबंद , दीदिया , दुबोहल , दुआ , दुखरे , दुगल , दुगगल , दुमोरा , दुमोहरा , दुरेच , दुर्गन , दुलिया , दुवण , दुहावन , दूतिया , दूधावने , देंचे , देयाणी , देगरा , देगी , देमला , देरया , देवडे , देवपाल , देवल , देसर , दोखरे , दोदीय , दोबरेजे , दोलडे , दोहरा , दोलतमनी , द्रोदीया , द्रोर , धंकसरी , धंतापुरी , धंधरा , धंधारी , धखड , धखानी , धडंगे , धडा , धणदै , धतवा , धन , धनकिया , धनदेई , धनदेन्‍या , धनरिये , धनाक्षरी , धनिया , धनुके , धनुर्धर , धनोरधच ,धफंजखत , धमीजे , धरकबंदिये , धरकमार , धररे , धरादे , धरेज , धरेटिा , धरीड , धर्मदास , धर्मीरे , धर्रे , धवन , धवरिया , धवीरन , धांगड , धांधा , धारी , धींगडे , धींतीये , धिवाया , धींणीया , धीपे ,धीमा , धीरवीर , धीवन , धुतारा , धुनी , धुमन , धुलेरा , धुवाना , धुमन , धुरिया , धेगडे , धेला , धोकडे , धोखाया , धोंगडी , धोंडाले , धोना , धोयन , धौन , धौखिल , नंदचाहत , नंदवाने , नंदवार , नंदा , नंदे , नकबेसर , नकतुर , नखतुरा , नखराना , नगरि , नगरानी , नगरि , नगरानी , नगराया , नगरेजे , नगिया , नगिए , नगौरा , नचयां ,नचाती , नजडा , नटोरा , नदरा , नमण , नेमण , नरदे , नरूकमरू , नरेश , नलौरा , नवलखा , नशकीडे , नहछिद्दा , नहनगनी , नहरानी , नहियन , नहियप , नहिसाबाढ , नाहेसरबाढ , नाकूपत , नाकोड , नाग , नागन , नागपाल , नागर , नागिन , नागिये , नागे नागौन , नाजर , नादरा , नान , नानगुरू , नानसी , नारंगे , नारंग , नारोले , नाल , नालवा , नालौरा , नासा , निचाणी , निडरे , निरंजन , निरत्नियां , निर्मण , निर्मणभूत , निशीन , निशां त , निहावन , नीमक , नुनहारी , नुनहारा , नूरजे , नृसिंह , नेकूख , नेगु , नेपर , नेमी , नैगल , नैनाथी , नैमहले , नौमहले , नैमिख , नैमिब , नैगर , नैर , नौगरे , नौगराही , नौनछोर , नोनछोर , न्‍याहिये , न्‍योले !!












क्‍या ईश्‍वर ने शूद्रो को सेवा करने के लिए ही जन्‍म दिया था ??

शूद्र कौन थे प्रारम्भ में वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर थी, पर धीरे-धीरे यह व्यवस्था जन्म आधारित होने लगी । पहले वर्ण के लोग विद्या , द...