शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

यश रूपी सुगंध के फैलने से कपूर गोत्र की उत्‍पत्ति नहीं हुई है !!

बाल कृष्‍ण जी के खत्रीय इतिहास में कपूर की उत्‍पत्ति के बारे में जो कथा लिखी गयी है , उसके अनुसार एक खत्री महापुरूष अत्‍यंत उदार तथा परोपकारी थे। निर्धन और आवश्‍यकता पीडित व्‍यक्ति की वे खुले हाथ यथा शक्ति सहायता करते थे। शीघ्र ही दूर दूर तक उनकी यशोकीर्ति फैल गयी। चूंकि कपूर की सुगंधि शीघ्र ही फैल जाती है , इसी से लोगों ने उन्‍हें कपूर नाम से पुकारना शुरू कर दिया। उसके बाद उनके वंशज कपूर कहलाने लगे।

यह किंवदंती भी व्‍यक्तिवाचक है और इसके आधार पर अल्‍ल समूह की व्‍युत्‍पत्ति नहीं हो सकती। कपूर अल्‍ल सोम या चंद्र वंश के पर्यायवाची 'कर्पूर' के नाम से अत्‍यंत प्राचीन काल से प्रचलित था। अमर कोष तो चंद्र के सारे नामों को कर्पूर का नाम सिद्ध करती है। विष्‍णु धर्मोत्‍तर पुराण में भी कर्पूरायण शाखा वाले की चर्चा है। पं गोविंद नारायण मिश्र ने भी 'सारस्‍वत सर्वस्‍य' में लिखा है कि कार्पूरि गोत्र के कारण क्षत्रियों की संज्ञा कपूर हो गयी। पंजाबी भाषा में संस्‍कृत के संयुक्‍त 'र' का लोप हो जाने से यही कर्पूर शब्‍द बोलचाल में ही नहीं , लिखने में भी कपूर हो गया। अत: यह भी सप्रमाण अत्‍यंत प्राचीन काल से ही सिद्ध हैं कि कपूर अल्‍ल सूर्यवंशी मेहरोत्रा अल्‍ल की भांति ही चंद्र वंश की कपूर नाम से ज्ञात प्रमुख शाखा है , जिसका आरंभ सोम पुत्र बुध के पुत्र राजा पुरूरवा से माना जाता है।

लेखक ... खत्री सीता राम टंडन




2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

जानकारी का आभार,

राज भाटिय़ा ने कहा…

चलिये पता चला इन कपूर साहब के बारे भी, अच्छी जान्कारी के लिये धन्यवाद

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